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CBSE Class 10 Vyakran Revision Notes for Compound Words

समास

[Compound Word]

समास- समास का तात्पर्य होता है- संक्षिप्तीकरण। इसका शाब्दिक अर्थ होता है छोटा रूप। अर्थात् जब दो या दो से अधिक शब्दों से मिलकर जो नया और छोटा शब्द बनता है उस शब्द को समास कहते हैं। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो जहाँ पर कम-से-कम शब्दों में अधिक से अधिक अर्थ को प्रकट किया जाए वह समास कहलाता है।

जैसे- नील और कमल - नीलकमल

गिरह को काटने वाला - गिरहकट

गंगा का जल- गंगाजल

शक्ति के अनुसार यथाशक्ति

 

पूर्वपद- उत्तरपद- समास रचना में दो पद होते हैं, पहले पद को ‘पूर्वपद’ कहा जाता है और दूसरे पद को ‘उत्तरपद’ कहा जाता है। इन दोनों से जो नया शब्द बनता है वो समस्त पद कहलाता है।
जैसे- राज पुत्र  पूर्वपद-राज, उत्तरपद-पुत्र

 

सामासिक पद- समास के नियमों से निर्मित शब्द सामासिक शब्द कहलाता है। इसे समस्तपद भी कहा जाता है। समास होने के बाद विभक्तियों के चिह्न गायब हो जाते हैं।
जैसे- रसोईघर, नवरत्न, नमक-मिर्च, पीतांबर आदि।

 

समास-विग्रह- सामासिक शब्दों के बीच के संबंध को स्पष्ट करने को समास-विग्रह कहते है।
जैसे- राहखर्च - राह के लिए खर्च

जनप्रिय- जन को प्रिय
नीलकंठ - नीला है जो कंठ
दो पहर - दो पहरों का समाहार

  

समास के भेद

समास के चार भेद हैं-


1.  अव्ययीभाव समास [Adverbial Compound]


जिस समास में पूर्वपद अव्यय हो उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं। जैसे-

समस्त पद

पूर्व पद

उत्तर पद

समास विग्रह

प्रतिदिन

 प्रति

दिन

दिन-दिन

यथाशक्ति

 यथा

शक्ति

शक्ति के अनुसार

अनुरुप

अनु

रूप

रुप के योग्य

रातोंरात

रातों

रात

रात ही रात में

भरपेट

भर

पेट

पेट भर

अकारण

कारण

बिना कारण

यथाक्रम

यथा

क्रम

क्रम के अनुसार

आजन्म

जन्म

जन्म से लेकर

प्रतिवर्ष

प्रति

वर्ष

हर वर्ष

बेशक

बे

शक

शक के बिना


अव्ययीभाव समास की पहचान-

इसमें समस्त पद अव्यय बन जाता है और उसी रुप में प्रयुक्त होता है।


2. तत्पुरुष समास [Determinative Compound]

इस समास में उत्तरपद प्रधान होता है तथा समस्त पदों में विभक्तियों / परसर्गों का लोप हो जाता है। अर्थात् दोनों पदों के बीच का कारक चिह्न लुप्त हो जाता है। जैसे-
देश का वासी = देशवासी
ग्रामगत = ग्राम को गत
हस्त लिखित = हस्त से लिखित
देशभक्त = देश का भक्त

दो शब्दों के बीच में लगने वाली विभक्तियों के नाम के अनुसार इसके छह भेद हैं।
i. कर्म तत्पुरुष
ii. करण तत्पुरुष 
iii.  संप्रदान तत्पुरुष
iv. अपादान तत्पुरुष
v.  संबंध तत्पुरुष
vi. अधिकरण तत्पुरुष

कर्म तत्पुरुष- जिसके पहले पद के साथ कर्म कारक चिह्न [को] लगा हो।           उसे कर्म तत्पुरुष कहते हैं। जैसे-

समस्त पद

पूर्व पद

उत्तर पद

विभक्ति चिह्न

समास विग्रह

स्वर्गप्राप्त

स्वर्ग

प्राप्त

को

स्वर्ग को प्राप्त

गृहागत

गृह

आगत

को

गृह को आगत

रथचालक

रथ

चालक

को

रथ को चलाने वाला

जेबकतरा

जेब

कतरा

को

जेब को कतरने वाला




करण तत्पुरुष-  जिसके पहले पद के साथ करण कारक चिह्न [से/द्वारा] लगा     हो। उसे करण तत्पुरुष कहते हैं। जैसे-

समस्त पद

पूर्व पद

उत्तर पद

विभक्ति चिह्न

समास विग्रह

मुँहमाँगा

मुँह 

माँगा

से

रेखा से अंकित

शोकग्रस्त

शोक

ग्रस्त

से

शोक से ग्रस्त

रसभरा

रस 

भरा

से

मद से अंधा

मनचाहा

मन

चाहा

से

मन से चाहा

सूररचित

सूर

रचित

से

सूर द्वारा रचित



सम्प्रदान तत्पुरुष-  जिसके पहले पद के साथ सम्प्रदान कारक चिह्न [को / के लिए] लगा हो। उसे सम्प्रदान तत्पुरुष कहते हैं। जैसे-

समस्त पद

पूर्व पद

उत्तर पद

विभक्ति चिह्न

समास विग्रह

राहखर्च

राह

खर्च

के लिए

राह के लिए खर्च 

पुत्र शोक

 पुत्र

शोक

के लिए

शोक से ग्रस्त

स्नानघर

स्नान  

घर 

के लिए

स्नान के लिए घर

यज्ञशाला

यज्ञ

शाला

के लिए 

यज्ञ के लिए शाला

डाकगाड़ी

डाक

गाड़ी

के लिए

डाक के लिए गाड़ी



अपादान तत्पुरुष- जिसके पहले पद के अपादान कारक चिह्न [से] लगा      हो। उसे अपादान तत्पुरुष कहते हैं। जैसे-

समस्त पद

पूर्व पद

उत्तर पद

विभक्ति चिह्न

समास विग्रह

देशनिकाला

देश

निकाला

से

देश से निकाला  

कामचोरी

 काम

चोरी

से 

काम से जी चुराने वाला 

धनहीन

धन  

हीन

से

धन से हीन

पापमुक्त

पाप 

मुक्त

से 

पाप से मुक्त 

जलहीन 

जल

हीन

से

जल से हीन



सम्बन्ध तत्पुरुष- जिसके पहले पद में सम्बन्ध कारक चिह्न [का,की,के] लगा हो। उसे सम्बन्ध तत्पुरुष कहते हैं। जैसे-

समस्त पद

पूर्व पद

उत्तर पद

विभक्ति चिह्न

समास विग्रह

राजभवन 

राज 

भवन 

का

राजा का भवन   

राजपुत्र 

 राज 

पुत्र 

का

राजा का पुत्र

देश रक्षा

देश   

रक्षा 

की

देश की रक्षा

शिवालय 

शिव  

आलय

का 

शिव का आलय

गृहस्वामी  

गृह 

स्वामी

का

गृह का स्वामी



अधिकरण तत्पुरुष- जिसके पहले पद के अधिकरण कारक चिह्न [में/ पर] लगा हो। उसे अधिकरण तत्पुरुष कहते हैं। जैसे-

समस्त पद

पूर्व पद

उत्तर पद

विभक्ति चिह्न

समास विग्रह

आप बीती  

आप 

बीती  

पर 

आप पर बीती  

दीनदयाल 

 दीन 

दयाल

पर

 दीनों पर दयाल

वनवास

वन   

वास 

में

वन में वास 

जलमग्न

जल   

मग्न 

में 

जल में मग्न

कार्यकुशल  

कार्य 

कुशल 

में 

कार्य में कुशल



तत्पुरुष समास के तीन उपभेद हैं



  • नञ तत्पुरुष समास- जिस समास में पूर्व पद निषेधात्मक हो, उसे नञ तत्पुरुष समास कहते हैं। जैसे
    समस्त पद     समास-विग्रह
    अभाव          न भाव
    अनहोनी        न होनी
    अनंत           न अंत
    असभ्य          न सभ्य


  • कर्मधारय समास [Oppositional Determinative Compound]
    जिस समास का पूर्व पद विशेषण और उत्तरपद विशेष्य हो तथा पूर्व पद और उत्तरपद में उपमान-उपमेय का संबंध हो, वह कर्मधारय समास कहलाता है।
    जैसे –
    समस्त पद         समास-विग्रह
    नीलगाय            नीली है जो गाय
    कुसुमकोमल       कुसुम के समान कोमल
    चंद्रमुख             चंद्र जैसा मुख
    नीलकमल          नीला कमल
    पीतांबर            पीला अंबर; वस्त्र
    नरसिंह            नरों में सिंह के समान

विशेषण– विशेषता बताने वाला शब्द

विशेष्य- जिसकी विशेषता बताई जाए

उपमान – जिससे उपमा दी जाए

उपमेय- जिसकी उपमा दी जाए


  • द्विगु समास [Numeral Compound]
    जिस समास का पूर्वपद संख्यावाचक विशेषण हो, उसे द्विगु समास कहते हैं। तथा समस्त पद समाहार या समूह का बोध कराता है। जैसे –
    समस्त पद        समास विग्रह
    सतसई           सात सौ दोहों का समूह
    त्रिरंगा            तीन रंगों का समाहार
    सप्तसिंधू           सात सिंधूओं का समूह
    नवग्रह           नौ ग्रहों का समूह
    अठन्नी           आठ आनों का समूह
    दोपहर          दो पहरों का समाहार

3. द्वंद्व समास(Copulative Compound)

जिस समास के दोनों पद प्रधान होते हैं तथा विग्रह करने पर समुच्चयबोधक अव्यय [और,या,एवं] लगता है, वह द्वंद्व समास कहलाता है। इस समास के दोनों पदों को मिलाते समय इनके बीच का योजक चिह्न लुप्त हो जाता है। जैसे-

समस्त पद        समास-विग्रह

गंगा-यमुना        गंगा और यमुना

नर-नारी          नर और नारी

पाप-पुण्य          पाप और पुण्य  

ऊँच-नीच           ऊँच और नीच   

राधा-कृष्ण         राधा और कृष्ण

अन्न-जल          अन्न और जल

देश-विदेश          देश और विदेश

नदी-नाले           नदी और नाले

आगे-पीछे           आगे और पीछे

ठंडा-गर्म            ठंडा या गर्म

4. बहुव्रीहि समास

जिस समास के दोनों पद अप्रधान होते हैं। समस्तपद के अर्थ के अतिरिक्त कोई सांकेतिक अर्थ प्रधान होता हैं, उसे बहुव्रीहि समास कहते हैं। जैसे-

समस्त पद         समास-विग्रह

चतुभुर्ज       चार है भुजाएँ जिसकी अर्थात् विष्णु

तिरंगा        तीन रंगों वाला अर्थात् भारत का राष्ट्रीय ध्वज

सुलोचना      सुंदर है लोचन जिसके अर्थात् मेघनाद की पत्नी

पीतांबर       पीले है अम्बर; वस्त्र जिसके अर्थात् श्रीकृष्ण

लंबोदर        लंबा है उदर; पेट जिसका अर्थात् गणेशजी

दुरात्मा       बुरी आत्मा वाला; कोई दुष्ट

वीणापानी      वीणा है कर में जिसके अर्थात् सरस्वती

गिरिधर        गिरि को धारण करने वाला अर्थात् श्रीकृष्ण

निशाचर        निशा में विचरण करने वाला अर्थात् राक्षस

मृत्युंजय         मृत्यु को जितने वाला अर्थात् शिव

संधि और समास में अंतर

संधि

समास

दो शब्दों या शब्दांशों के मिलने से नया शब्द बनता है, तब उनमें जो विकार उत्पन्न होता है, उसे संधि कहते हैं।

समास का अर्थ है- संक्षेप। दो या दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए स्वतंत्र शब्द को समास कहते हैं।

जैसे-

विद्या + आलय = विद्यालय

गिरि + ईश = गिरीश 

जैसे –

रसोई के लिए घर - रसोईघर

देश से निकाला - देशनिकाला

संधि वर्णों में होती है।

समास दो पदों में होता है।

इसमें विभक्ति या शब्द का लोप नहीं होता है।

समास होने पर विभक्ति या शब्दों का लोप भी हो जाता है।


कर्मधारय और बहुव्रीहि समास में अंतर

कर्मधारय समास

बहुव्रीहि समास

जिस समास का पूर्व पद विशेषण और उत्तरपद विशेष्य हो तथा पूर्व पद और उत्तरपद में उपमान-उपमेय का संबंध हो, वह कर्मधारय समास कहलाता है।

जिस समास के दोनों पद अप्रधान होते हैं। समस्तपद के अर्थ के अतिरिक्त कोई सांकेतिक अर्थ प्रधान होता हैं, उसे बहुव्रीहि समास कहते हैं।

जैसे-

समस्त पद        समास-विग्रह

नीलगाय         नीली है जो गाय

जैसे-

समस्त पद             समास-विग्रह

चतुर्भुज     चार है भुजाएँ जिसकी -विष्णु


द्विगु और बहुव्रीहि समास में अंतर

द्विगु समास

बहुव्रीहि समास

द्विगु समास का पहला पद संख्यावाचक विशेषण होता है, तथा शेष पद उसका विशेष्य।

बहुव्रीहि समास में समस्त पद किसी संज्ञा के लिए विशेषण का कार्य करता है। जैसे

जैसे – अष्टाध्यायी-अष्ट (आठ)अध्यायों का समूह

आठ है अध्याय जिसके, पाणिनि का व्याकरण 

चारपाई – चार पायों का समूह

चार हैं पाए जिसके अर्थात् चारपाई




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