ICSE Class 10 Saaransh Lekhan Pad (Sahitya Sagar)
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Pad Synopsis
सारांश
सूरदास के प्रस्तुत पदों में बाल-कृष्ण के सौन्दर्य, बाल-चेष्टाओं और क्रीड़ाओं की मनोहर झाँकी देखने को मिलती है जिसका प्रमुख उद्देश्य माता यशोदा का बाल-कृष्ण के प्रति अन्यतम वात्सल्य भाव की अभिव्यक्ति है। पहले पद में माता यशोदा बाल-कृष्ण को मधुर लोरी गाकर पालने में झुलाती है और सुलाने की ममतामयी चेष्टा करती है।
दूसरे पद में कृष्ण के मचलते हुए माखन खाने का बड़ा ही स्वाभाविक
वर्णन किया गया है। कृष्ण की बाल-लीलाओं पर मुग्ध माता यशोदा एक क्षण भी कृष्ण को स्वयं से अलग नहीं करना चाहती है।
तीसरे पद में बाल-कृष्ण चंद्रमा को खिलौना बनाकर उससे खेलने का हठ करते हैं। परन्तु माता यशोदा के यह कहने पर कि वह उनके लिए चन्द्रमा से भी अधिक सुन्दर दुल्हन लाएँगी, वह चन्द्रमा के लिए हठ छोड़कर तुरन्त विवाह करने को तैयार हो जाते हैं।
भावार्थ/ व्याख्या
जसोदा हरि पालनैं झुलावै।
हलरावै, दुलराइ मल्हावै, जोइ-जोइ कछु गावै॥
मेरे लाल कौं आउ निंदरिया, काहैं न आनि सुवावै।
तू काहैं नहिं बेगहिं आवै, तोकौं कान्ह बुलावै॥
कबहुँ पलक हरि मूँदि लेत हैं, कबहुँ अधर फरकावै।
सोवत जानि मौन ह्वै कै रहि, करि-करि सैन बतावै॥
इहिं अंतर अकुलाइ उठे हरि, जसुमति मधुरैं गावै।
जो सुख सूर अमर-मुनि दुरलभ, सो नँद-भामिनि पावै॥
भावार्थ- माँ यशोदा श्रीकृष्ण को पलने में झुला रही हैं। कभी झुलाती हैं, कभी प्यार करके पुचकारती हैं और चाहे जो कुछ गाती जा रही हैं। (वे गाते हुए कहती हैं-) निद्रा! तू मेरे लाल के पास आ! तू क्यों आकर इसे सुलाती नहीं है। तू झटपट क्यों नहीं आती? तुझे कन्हाई बुला रहा है।' श्यामसुन्दर कभी पलकें बंद कर लेते हैं, कभी अधर फड़काने लगते हैं। उन्हें सोते समझकर माता चुप हो रहती हैं और (दूसरी गोपियों को भी) संकेत करके समझाती हैं (कि यह सो रहा है, तुम सब भी चुप रहो)। इसी बीच में श्याम आकुल होकर जग जाते हैं, माँ यशोदा फिर मधुर स्वर से गाने लगती हैं। सूरदास जी कहते हैं कि जो सुख देवताओं तथा मुनियों के लिये भी दुर्लभ है, वही (श्याम को बालरूप में पाकर लालन-पालन तथा प्यार करने का) सुख श्रीनन्दपत्नी प्राप्त कर रही हैं।
खीझत जात माखन खात।
अरुन लोचन भौंह टेढ़ी बार बार जंभात॥
कबहुं रुनझुन चलत घुटुरुनि धूरि धूसर गात।
कबहुं झुकि कै अलक खैंच नैन जल भरि जात॥
कबहुं तोतर बोल बोलत कबहुं बोलत तात।
सूर हरि की निरखि सोभा निमिष तजत न मात॥
भावार्थ- यह पद राग रामकली में बद्ध है। एक बार श्रीकृष्ण माखन खाते-खाते रूठ गए और रूठे भी ऐसे कि रोते-रोते नेत्र लाल हो गए। भौंहें वक्र हो गई और बार-बार जंभाई लेने लगे। कभी वह घुटनों के बल चलते थे जिससे उनके पैरों में पड़ी पैंजनिया में से रुनझुन स्वर निकलते थे। घुटनों के बल चलकर ही उन्होंने सारे शरीर को धूल-धूसरित कर लिया। कभी श्रीकृष्ण अपने ही बालों को खींचते और नैनों में आँसू भर लाते। कभी तोतली बोली बोलते तो कभी तात ही बोलते। सूरदास कहते हैं कि श्रीकृष्ण की ऐसी शोभा को देखकर यशोदा उन्हें एक पल भी छोड़ने को न हुई अर्थात् श्रीकृष्ण की इन छोटी-छोटी लीलाओं में उन्हें अद्भुत रस आने लगा।
मैया मेरी,चंद्र खिलौना लैहों।।
धौरी को पय पान न करिहौ उर पर,बेनी सिर न गुथैहौं।
मोतिन माल न धरिहौ उर पर झुंगली कंठ न लैहौं।।
जैहों लोट अबहिं धरनी पर, तेरी गोद न एहौं।
लाल कहै हों नंद बबा को, तेरो सुत न कहैहौं।।
कान लाय कछु कहत जसोदा, दाउहिं नाहिं सुनैहौं।
चंदा हूँ ते अति सुंदर तोहिं,नवल दुलहिया ब्यैहौं।।
तेरी सौं मेरी सुन मैया, अबहीं ब्याहन जैहौं।
‘सूरदास’ सब सखा बराती, नूतन मंगल गैहौं।
भावार्थ- श्रीकृष्ण चन्द्रमा को देखते कहते हैं कि मैया मैं तो चाँद खिलौना लूँगा,वर्ना में गाय का दूध नहीं पिऊँगा, चोटी नहीं गुथावाऊँगा, मोतियों की माला नहीं पहनूँगा, अभी धरती पर लोट जाऊँगा पर तुम्हारी गोद में नहीं आऊँगा, तुम्हारा और नंद बाबा का बेटा भी नहीं कहलवाऊँगा। तब माँ यशोदा कृष्ण को बहकाते हुए कहती है कि पुत्र मेरी बात सुनो पर यह बात बलराम को भी न बताना मैं तुम्हारा ब्याह चंदा से भी अति सुंदर दुल्हन से करुँगी। यह सुनकर कृष्ण अपनी माँ यशोदा से कहते हैं कि माँ मुझे तुम्हारी सौगंध है मैं अभी ब्याह करने जाऊँगा। इस पर सूरदास कहते हैं कि वे कृष्ण की बारात में बाराती बनकर मंगल गीत गाएँगे।