ICSE Class 10 Answered
‘जहाँ सुमति तहँ संपति नाना; जहाँ कुमति तहाँ बिपति निदाना’ उक्ति पर आधारित कहानी
एकबार एक सेठ ने एक रात को स्वप्न में देखा कि एक स्त्री उनके घर के दरवाजे से निकलकर बाहर जा रही है। उन्होंने पूछा. “हे देवी आप कौन हैं? मेरे घर में आप कब आयीं और मेरा घर छोडकर आप क्यों और कहाँ जा रही हैं? वह स्त्री बोली’ ‘‘मैं तुम्हारे घर की लक्ष्मी हूँ। कई वर्षों से मैं तुम्हारे घर में वास करती आ रही हूँ। किंतु अब मेरा समय यहाँ पर समाप्त हो गया है इसलिए मैं यह घर छोड़कर जा रही हूँ । मैं तुम पर अत्यंत प्रसन्न हूँ क्योंकि जितना समय मैं तुम्हारे पास रही, तुमने मेरा सदुपयोग किया। संतों को घर पर आमंत्रित करके उनकी सेवा की, गरीबों को भोजन कराया, धर्मार्थ कुएँ-तालाब बनवाये, गौशाला व प्याऊ बनवायी। तुमने लोक-कल्याण के कई कार्य किये। अब जाते समय मैं तुम्हें वरदान देना चाहती हूँ। जो चाहे मुझसे माँग लो।”
यह सुनकर सेठ को पहले तो कुछ समझ नहीं आया सोच-विचार उन्होंने कहा कि आप कल आइएगा मैं अपनी पत्नी और बहू से पूछकर आपको बताऊँगा।
सुबह उठते ही सेठ ने अपनी पत्नी और बहू को रात का सारा किस्सा सुनाया। पत्नी बोली, “ तुम लक्ष्मी से सोना-चाँदी और अनाज से भरे गोदाम माँग लो।” सेठ की बहू धार्मिक कुटुंब से आयी थी। बचपन से ही सत्संग में जाया करती थी, उसने कहा, “पिताजी! लक्ष्मीजी को जाना है तो जाएगी ही और जो भी वस्तुएँ हम उनसे माँगेंगे वे भी सदा नहीं टिकेंगी। यदि सोने-चाँदी, रुपये-पैसों के ढेर माँगेगें तो हमारी आनेवाली पीढ़ी के बच्चे अहंकार और आलस में अपना जीवन बिगाड देंगे। इसलिए आप लक्ष्मीजी से कहना कि वे जाना चाहती हैं तो अवश्य जायें किन्तु हमें यह वरदान दें कि हमारे घर में सज्जनों की सेवा-पूजा, हरि-कथा सदा होती रहे तथा हमारे परिवार के सदस्यों में आपसी प्रेम बना रहे क्योंकि परिवार में प्रेम होगा तो विपत्ति के दिन भी आसानी से कट जायेंगे।
दूसरे दिन रात को लक्ष्मीजी ने स्वप्न में आकर सेठ से पूछा, ‘”तुमने अपनी परिवार वालों से से सलाह-मशवरा कर लिया? क्या चाहिए तुम्हें ? सेठ ने कहा, “हे माँ लक्ष्मी! आपको जाना है तो प्रसन्नता से जाइए परंतु मुझे यह वरदान दीजिए कि मेरे घर में हमेशा हरि-कथा और संतों की सेवा होती रहे तथा परिवार के सदस्यों में परस्पर प्रेम बना रहे।”
यह सुनकर लक्ष्मीजी चौंक गयीं और बोलीं, “यह तुमने क्या माँग लिया। जिस घर में हरि-कथा और संतो की सेवा होती हो तथा परिवार के सदस्यों में परस्पर प्रीति रहे वहाँ तो साक्षात् नारायण का निवास होता है और जहाँ नारायण रहते हैं, वाही मेरा भी निवास होता है और मैं चाहकर भी उस घर को छोड़कर नहीं जा सकती। यह वरदान माँगकर तुमने मुझे यहाँ रहने के लिए विवश कर दिया है।” इसलिए तो कहते हैं ‘जहाँ सुमति तहँ संपति नाना; जहाँ कुमति तहाँ बिपति निदाना’।