NCERT Solutions for Class 9 Hindi Chapter 9 - Raidaas [Poem]
Chapter 9 - Raidaas प्रश्न-अभ्यास
पहले पद में भगवान और भक्त की तुलना चंदन-पानी, घन-वन-मोर, चन्द्र-चकोर, दीपक-बाती, मोती-धागा, सोना-सुहागा आदि से की गई है।
तुकांत शब्द - पानी-समानी, मोरा-चकोरा, बाती-राती, धागा-सुहागा, दासा-रैदासा।
दीपक-बाती, मोती-धागा, स्वामी-दासा, चन्द्र-चकोरा, चंदन-पानी।
दूसरे पद में 'गरीब निवाजु' ईश्वर को कहा गया है। ईश्वर को 'निवाजु ईश्वर' कहने का कारण यह है कि वे निम्न जाति के भक्तों को भी समभाव स्थान देते हैं, गरीबों का उद्धार करते हैं, उन्हें सम्मान दिलाते हैं, सबके कष्ट हरते हैं और भवसागर से पार उतारते हैं।
इस पंक्ति का आशय यह है कि गरीब और निम्नवर्ग के लोगों को समाज सम्मान नहीं देता। उनसे दूर रहता है। परन्तु ईश्वर कोई भेदभाव न करके उन पर दया करते हैं, उनकी सहायता करते हैं, उनकी पीड़ा हरते हैं।
रैदास ने अपने स्वामी को गुसईया, गरीब, निवाजु, लाल, गोबिंद, हरि, प्रभु आदि नामों से पुकारा है।
मोरा |
मोर |
चंद |
चाँद |
बाती |
बत्ती |
जोति |
ज्योति |
बरै |
जले |
राती |
रात |
छत्रु |
छत्र |
धरै |
धारण |
छोति |
छुआछूत |
तुहीं |
तुम ही |
गुसइआ |
गोसाईं |
इस पंक्ति का भाव यह है कि जैसे चंदन के संपर्क में रहने से पानी में उसकी सुगंध फैल जाती है, उसी प्रकार एक भक्त के तन मन में ईश्वर भक्ति की सुगंध व्याप्त हो गई है।
इस पंक्ति का भाव यह है कि जैसे चकोर पक्षी सदा अपने चन्द्रमा की ओर ताकता रहता है उसी भाँति मैं (भक्त) भी सदा तुम्हारा प्रेम पाने के लिए तरसता रहता हूँ।
इस पंक्ति का भाव यह है कि कवि स्वयं को दिए की बाती और ईश्वर को दीपक मानते है। ऐसा दीपक जो दिन-रात जलता रहता है।
इस पंक्ति का भाव यह है कि ईश्वर से बढ़कर इस संसार में निम्न लोगों को सम्मान देनेवाला कोई नहीं है। समाज के निम्न वर्ग को उचित सम्मान नहीं दिया जाता है परन्तु ईश्वर किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं करते हैं। अछूतों को समभाव से देखते हुए उच्च पद पर आसीन करते हैं ।
इस पंक्ति का भाव यह है कि ईश्वर हर कार्य को करने में समर्थ हैं। वे नीच को भी ऊँचा बना लेता है। उनकी कृपा से निम्न जाति में जन्म लेने के उपरांत भी उच्च जाति जैसा सम्मान मिल जाता है।
पहला पद - रैदास के पहले पद का केंद्रीय भाव यह है कि वे उनके प्रभु के अनन्य भक्त हैं। वे अपने ईश्वर से कुछ इस प्रकार से घुलमिल गए हैं कि उन्हें अपने प्रभु से अलग करके देखा ही नहीं जा सकता।
दूसरा पद - रैदास के दूसरे पद का केंद्रीय भाव यह है कि उसके प्रभु सर्वगुण संपन्न, दयालु और समदर्शी हैं। वे निडर है तथा गरीबों के रखवाले हैं। ईश्वर अछूतों के उद्धारक हैं तथा नीच को भी ऊँचा बनाने की क्षमता रखनेवाले सर्वशक्तिमान हैं।
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