NCERT Solutions for Class 9 Hindi Chapter 2 - Smriti
Chapter 2 - Smriti Exercise बोध-प्रश्न
जब लेखक झरबेरी से बेर तोड़ रहा था तभी एक आदमी ने पुकार कर कहा कि तुम्हारे भाई बुला रहे हैं, शीघ्र चले आओ। यह सुनकर लेखक घर की ओर लौटने लगा। पर लेखक के मन में भाई साहब की मार का डर था। इसलिए वह सहमा-सहमा जा रहा था। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि उससे कौन-सा कसूर हो गया। उसे आशंका थी कि कहीं बेर खाने के अपराध में उसकी पेशी न हो रही हो। वह अज्ञात डर से डरते-डरते घर में घुसा।
मक्खनपुर पढ़ने जाने वाले बच्चों की टोली पूरी वानर टोली थी। उन बच्चों को पता था कि कुएँ में साँप रहता है। लेखक ढेला फेंककर साँप से फुसकार करवा लेना बड़ा काम समझता था। बच्चों में ढेला फेंककर फुसकार सुनने की प्रवृत्ति जाग्रत हो गई थी। कुएँ में ढेला फेंककर उसकी आवाज तथा उससे सुनने के बाद अपनी बोली सुनने की प्रतिध्वनि सुनने की लालसा उनके मन में रहती थी।
यह घटना १९०८ में घटी थी और लेखक ने इसे अपनी माँ को १९१५ में सात साल बाद बताया था। उन्होंने इसे लिखा तो और भी बाद में होगा। अतः उन्हें पूरी घटना का स्मरण नहीं। लेखक ने जब ढेला उठाकर कुएँ में साँप पर फेंका तब टोपी में रखी चिट्ठियाँ कुएँ में गिर गई। यह देखकर दोनों भाई घबरा गए और रोने लगे। लेखक को भाई की पिटाई का डर था। तब उन्हें माँ की गोद याद आ रही थी। अब वह और भी भयभीत हो गए थे। इस वजह से उन्हें यह बात अब याद नहीं कि 'साँप ने फुफकार मारी या नहीं, ढेला उसे लगा या नहीं'।
लेखक को चिट्ठियाँ बड़े भाई ने दी थी। डाकखाने जाते वक्त जैसे ही कुआँ सामने आया और लेखक ने ढेला उठाकर कुएँ में साँप पर फेंका तब टोपी में रखी चिट्ठियाँ कुएँ में गिर गई। यह देखकर दोनों भाई घबरा गए और रोने लगे। लेखक को भाई की पिटाई का डर सताने लगा था। अब वह और भी भयभीत हो गए थे। इसी मनःस्थिति में उसने कुएँ से चिट्ठियों को निकालने का निर्णय लिया।
साँप का ध्यान बाँटने के लिए लेखक ने निम्नलिखित युक्तियाँ अपनाई -
1. उसने डंडे से साँप को दबाने का ख्याल छोड़ दिया।
2. उसने साँप का फन पीछे होते ही अपना डंडा चिट्ठियों की ओर कर दिया और लिफाफा उठाने की चेष्टा की।
3. डंडा लेखक की ओर खीच आने से साँप का आसन बदल गया और लेखक ने तुरंत लिफाफे और पोस्टकार्ड चुन लिए और उन्हें अपनी धोती के छोर में बाँध लिया।
चिट्ठियाँ सूखे कुएँ में गिर पड़ी थीं। कुएँ में साँप था। कुएँ में उतरकर चिट्ठियाँ लाना बड़ा ही साहस का कार्य था। लेखक ने इस चुनौती का स्वीकार किया। लेखक ने छः धोतियों को जोड़कर डंडा बाँधा और एक सिरे को कुएँ में डालकर उसके दूसरे सिरे को कुएँ के चारों ओर घुमाने के बाद गाँठ लगाकर अपने छोटे भाई को पकड़ा दिया। लेखक इसी धोती के सहारे कुएँ में उतरा। जब वह धरातल के चार-पाँच गज उपर था, उसने साँप को फन फैलाए देखा। वह कुछ हाथ ऊपर धोती पकड़े लटका रहा ताकि वह उसके आक्रमण से बच जाए। साँप को धोती पर लटककर मारना संभव नहीं था और डंडा चलाने के लिए पर्याप्त जगह नहीं थी। उसने डंडे से चिट्ठियों को खिसकाने का प्रयास किया कि साँप डंडे से चिपक गया। साँप का पिछला हिस्सा लेखक के हाथ को छू गया। लेखक ने डंडा फेंक दिया। डंडा लेखक की ओर खीच आने से साँप का आसन बदल गया और लेखक ने तुरंत लिफाफे और पोस्टकार्ड चुन लिए और उन्हें अपनी धोती के छोर में बाँध लिया।
इस पाठ को पढ़ने के बाद निम्नलिखित बाल-सुलभ शरारतों के विषय में पता चलता है -
• बच्चे झरबेरी के बेर तोड़कर खाने का आनंद लेते हैं।
• स्कूल जाते समय रास्ते में शरारतें करते हैं।
• कठिन एंव जोखिम पूर्ण कार्य करते हैं।
• जानवरों एंव जीव-जन्तुओं को तंग करते हैं।
• कुएँ में ढेला फेंककर खुश होते हैं।
• माली से छिपकर फल तोड़ना पसंद करते हैं।
• गलत काम करने के बाद सज़ा मिलने से डरते हैं।
इस कथन का आशय है कि मनुष्य हर स्थिति से निपटने के लिए तरह-तरह के अनुमान लगता है और भावी योजनाएँ बनाता है। परंतु उसकी सारी योजनाएँ सफल नहीं होती। उसे कभी सफलता मिलती है तो कभी विफलता। इससे कई बार मनुष्य निराश हो जाता है। इस पाठ के लेखक ने कुएँ से चिट्ठियाँ निकालने के तरह तरह के अनुमान लगाए, योजनाएँ बनायीं और उसमे फेर-बदल भी करना पड़ा, अंततः उसे सफलता मिली।
मनुष्य तो कर्म करता है, पर उसे फल देने का काम ईश्वर करता है। मनचाहे फल को पाना मनुष्य के बस की बात नहीं है। यह तो उस शक्ति पर ही निर्भर करता है जो फल देती है। इस पाठ के लेखक ने कुएँ से चिट्ठियाँ निकालने के तरह-तरह के अनुमान लगाए, योजनाएँ बनायीं और उसमे फेर-बदल भी करना पड़ा, अंततः उसे सफलता मिली। गीता में भी कर्म के महत्व को दर्शाया गया है-' कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन्'।
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