NCERT Solutions for Class 9 Hindi Chapter 6 - Diye Jal Uthe
Chapter 6 - Diye Jal Uthe Exercise बोध-प्रश्न
दांडी-कूच की तैयारी के सिलसिले में वल्लभभाई पटेल ७ मार्च को रास पहुँचे थे। उन्हें वहाँ भाषण नहीं देना था लेकिन पटेल ने लोगों के आग्रह पर 'दो शब्द' कहना स्वीकार कर लिया। उन्होंने लोगों से सत्याग्रह के लिए तैयार होने के लिए कहा। इस कार्य को शासन के विरुद्ध माना गया था। यही कारण था कि स्थानीय कलेक्टर ने पटेल को गिरफ़्तार करने का आदेश दिया।
सरदार पटेल को गिरफ़्तार करके पुलिस के पहरे में ही बोरसद की अदालत में लाया गया। जज किस धारा के तहत और कितनी सजा सुनाएँ फैसला नहीं कर पा रहे थे क्योंकि अपराध तो कोई था ही नहीं और गिरफ़्तार हुई थी साथ ही सरदार पटेल ने अपराध स्वयं स्वीकार कर लिया था।
इसलिए उन्हें आठ लाइन का फैसला देने में डेढ़ घंटा लगा दिया।
पटेल के कथन का आशय उद्धत पाठ के संदर्भ में यह है कि उन्हें सरकार ने अकारण गिरफ्तार कर लिया था। तब उन्होंने कहा मैं जानता हूँ कि मेरे जाने से यह यात्रा नहीं टलेगी। मुझे हटाया जाएगा, तो और वल्लभभाई खड़े हो जाएँगे। उन्हें पता था गांधीजी इस आन्दोलन को आगे बढाएँगे। इसलिए उन्हें सम्बोधित करते हुए उन्होंने कहा - मैं चलता हूँ। अब आपकी बारी है।
गांधी जी एक बार रास गए। वहाँ उनका भव्य स्वागत हुआ। रास समुदाय के लोग इसमें सबसे आगे थे। जो दरबार कहलाते हैं। ये रियासतदार होते हैं। गोपालदास और रविशंकर महाराज जो दरबार थे, वहाँ मौजूद थे। ये दरबार लोग अपना सब कुछ छोड़कर यहाँ आकर बस गए थे। उनका यह त्याग एवं हिम्मत सराहनीय है। गांधी जी ने इन्हीं के जीवन से प्रेरणा लेने को लोगों से कहा कि इनसे आप लोग त्याग और हिम्मत सीखें। धैर्य, त्याग और साहस के द्वारा ही अंग्रेजी शासन को बाहर खदेड़ा जा सकता है।
'कैसी भी कठिन परिस्थिति हो उसका सामना तात्कालिक सूझबूझ और आपसी मेलजोल से किया जा सकता है।' इस कथन पर प्रकाश डालने के लिए पाठ का एक प्रसंग - गांधी जी अपनी दांडी यात्रा पर थे। उन्हें मही नदी पार करनी थी। ब्रिटिश सरकार ने नदी के तट के सारे नमक भंडार हटा दिए थे। वे अपनी यह यात्रा किसी राजघराने के इलाके से नहीं करना चाहते थे। जब वे कनकपुरा पहुँचे तो एक घंटा देर हो गई। इसलिए गांधी जी ने कार्यक्रम में परिवर्तन करने का निश्चय किया कि नदी को आधी रात में समुद्र में पानी चढ़ने पर पार किया जाए ताकि कीचड़ और दलदल में कम से कम चलना पड़े। तट पर अँधेरा था। इसके लिए लोगों ने सूझबूझ से काम लिया और थोड़ी ही देर में हज़ारों दिए जल गए। हर एक के हाथ में दीया था। इससे अँधेरा मिट गया। दूसरे किनारे भी इसी तरह लोग हाथों में दीये लेकर खड़े थे। गांधी जी के मिलन और सूझबूझ ने कठिन परिस्थितियों पर काबू पाकर लोगों के ह्दय में स्थान बना लिया।
रात के १२ बजे महिसागर नदी के दोनों किनारों पर हज़ारों लोग अपने हाथों में जलते दिये लेकर खड़े थे क्योंकि वे गांधी जी का और सत्याग्रहियों के आने का इंतज़ार कर रहे थे। उस समय अँधेरा था। गांधी जी को भी रोशनी की आवश्यकता थी। चारों ओर' महात्मा गांधी की जय, सरदार पटेल की जय और जवाहर लाल नेहरु की जय के नारे गूँज रहे थे। इन्हीं नारों के बीच गांधी जी की नाव रवाना हुई।गांधीजी के नदी पार करने के बाद भी तट पर दिये लेकर खड़े लोग अन्य सत्याग्रहियों की प्रतीक्षा में खड़े ही रह गए।
"यह धर्मयात्रा है। चलकर पूरी करूँगा।" गांधीजी का यह कथन उनके अटूट साहस, उत्साह और तीव्र लगन का परिचय देता है। गांधी जी धर्म यात्रा के लिए वाहनों का प्रयोग नहीं करना चाहते थे। उनके अनुसार यात्रा में कष्ट सहना पड़ता है। लोगों का दर्द समझना पड़ता है। तभी यात्रा सफल होती है। गांधी जी सत्यवादी, अहिंसाप्रिय, सदाचारी, देशभक्त, धार्मिक, विद्वान, कर्तव्यनिष्ठ, दृढ़ निश्चयी व्यक्ति थे।
गांधी जी सत्यवादी, अहिंसाप्रिय, सदाचारी, देशभक्त, धार्मिक, विद्वान, कर्तव्यनिष्ठ, दृढ़ निश्चयी व्यक्ति थे। उनकी इन्हीं व्यक्तित्व विशेषताओं से वरिष्ठ अधिकारी भी परिचित थे कि गाँधीजी कोई भी काम चोरी से नहीं करेंगे।
ब्रिटिश शासकों में एक वर्ग ऐसा था जिसे लग रहा था गांधी जी और उनके सत्याग्रही मही नदी के किनारे अचानक पहुँचकर कानून तोड़ देंगे। इसलिए उन्होंने एतियाहत के तौर पर नदी के तट पर बने हुए सारे नमक के भण्डारों को नष्ट कर दिया।
गांधीजी के नदी पार करने के बाद भी तट पर दिये लेकर खड़े लोग अन्य सत्याग्रहियों की प्रतीक्षा में खड़े थे। क्योंकि गाँधीजी की तरह अन्य सत्याग्रहियों को भी नदी पार करवानी थी।
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