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Class 12-science NCERT Solutions Hindi Chapter 7 - Surykant Tripathi Nirala

Surykant Tripathi Nirala Exercise प्रश्न-अभ्यास

Solution 1

'अस्थिर सुख पर दुख की छाया' 'अस्थिर सुख पर दुख की छाया' क्रांति या विनाश की आशंका को कहा गया है। क्राति की हुंकार से पूँजीपति घबरा उठते हैं, वे अपनी सुख-सुविधा खोने के डर से दिल थाम कर रह जाते हैं। उनका सुख अस्थिर है, उन्हें क्रांति में दुःख की छाया दिखाई देती हैं ।

Solution 2

'अशनि-पात से शापित उन्नत शत-शत वीर' पंक्ति में क्रांति विरोधी गर्वीले वीरों की ओर संकेत करती है जो क्रांति के वज्राघात से घायल होकर क्षत-विक्षत हो जाते हैं। बादलों की गर्जना और मूसलाधार वर्षा में बड़े-बड़े पर्वत वृक्ष क्षत-विक्षत हो जाते हैं। उसी प्रकार क्रांति की हुंकार से पूँजीपति का घन, संपत्ति तथा वैभव आदि का विनाश हो जाता है।

Solution 3

'विप्लव-रव से छोटे ही हैं शोभा पाते' पंक्ति में विप्लव-रव से तात्पर्य है - क्रांति। क्रांति जब आती है तब गरीब वर्ग आशा से भर जाता है एवं धनी वर्ग अपने विनाश की आशंका से भयभीत हो उठता है। छोटे लोगों के पास खोने के लिए कुछ है ही नहीं उन्हें सिर्फ़ इससे लाभ होगा। इसीलिए कहा गया है कि 'छोटे ही हैं शोभा पाते' 

Solution 4

बादलों के आगमन से प्रकृति में निम्नलिखित परिवर्तन होते है।  

 समीर बहने लगती है। 

 बादल गरजने लगते है।  

 मूसलाधार वर्षा होती है।  

 बिजली चमकने लगती है।  

 छोटे-छोटे पौधे खिल उठते हैं।  

 गर्मी के कारण दुखी प्राणी बादलों को देखकर प्रसन्न हो जाता है। 

Solution 5 - क

कवि बादल को संबोधित करते हुए कहता है कि हे क्रांति दूत रूपी बादल। तुम आकाश में ऐसे मंडराते रहते हो जैसे पवन रूपी सागर पर नौका तैर रही हो। छाया 'उसी प्रकार पूंजीपतियों के वैभव पर क्रांति की छाया मंडरा रही है इसीलिए कहा गया है 'अस्थिर सुख पर दुख की छाया'

कवि ने बादलों को विप्लवकारी योद्धा, उसके विशाल रूप को रण-नौका तथा गर्जन-तर्जन को रणभेरी के रूप में दिखाया है। कवि कहते है कि हे बादल! तेरी भारी-भरकम गर्जना से धरती के गर्भ में सोए हुए अंकुर सजग हो जाते हैं अर्थात् कमजोर व् निष्क्रिय व्यक्ति भी संघर्ष के लिए तैयार हो जाते हैं 

Solution 5 - ख

कवि कहते है कि पूँजीपतियों के ऊँचे-ऊँचे भवन मात्र भवन नहीं हैं अपितु ये गरीबों को आतंकित करने वाले भवन हैं। इसमें रहनेवाले लोग महान नहीं हैं। ये तो भयग्रस्त हैं। जल की विनाशलीला तो सदा पंक को ही डुबोती है, कीचड़ को कोई फ़र्क नहीं पड़ता। उसी प्रकार क्रांति की ज्वाला में धनी लोग ही जलते है, गरीबों को कुछ खोने का डर ही नहीं।

Solution 6

कविता में प्रकृति का मानवीकरण किया गया है। 

मुझे का गर्जन कर क्रांति लानेवाला रूप पसंद है। क्योंकि जिस प्रकार बादलों की गर्जना और मूसलाधार वर्षा में बड़े-बड़े पर्वत वृक्ष घबरा जाते हैं। उनको उखड़कर गिर जाने का भय होता है। उसी प्रकार क्राति की हुंकार से पूँजीपति घबरा उठते हैं, वे दिल थाम कर रह जाते हैं। उन्हें अपनी संपत्ति एवं सत्ता के छिन जाने का भय होता है।

....ऐ विप्लव के बादल!  

फिर-फिर

बार -बार गर्जन

वर्षण है मूसलधार,

हृदय थाम लेता संसार,

सुन-सुन घोर वज्र हुंकार।

Solution 7

 तिरती है समीर-सागर पर  

 अस्थिर सुख पर दुःख की छाया 

 यह तेरी रण-तरी 

 भेरी-गर्जन से सजग सुप्त अंकुर

 ऐ विप्लव के बादल! 

 ऐ जीवन के पारावार  

Solution 8

कवि इन संबंधों द्वारा कविता की सार्थकता को बढ़ाना चाहते हैं। बादलों के लिए किए संबोधनों की व्याख्या इस प्रकार है - 

अरे वर्ष के हर्ष! 

खुशी का प्रतीक  

मेरे पागल बादल! 

मदमस्ती का प्रतीक  

ऐ निर्बंध! 

बंधनहीन  

ऐ स्वच्छंद! 

स्वतंत्रता से घूमने वाले  

ऐ उद्दाम! 

भयहीन  

ऐ सम्राट! 

सर्वशक्तिशाली  

ऐ विप्लव के प्लावन! 

प्रलय या क्रांति  

ऐ अनंत के चंचल शिशु सुकुमार! 

बच्चों के समान चंचल  

 

Solution 9

कवि बादलों को क्रांति के प्रतीक रूप में देखता है। मैं बादल को किसानों के मसीहा के रूप में देखता हूँ। 

कब आएगा बादल नभ में 

बूँद- बूँद को अन्न ये तरसे 

अब तू बरखा लाएगा 

इनका जीवन सफल कर जाएगा 

Solution 10

कवि ने कविता में निम्नलिखित विशेषणों का प्रयोग किया है - 

निर्दय विप्लव  

विप्लव (विनाश) के साथ निर्दय विशेषण लगने से विनाश और अधिक क्रूर हो गया है 

दग्ध हृदय  

दुःख की अधिकता व संतपत्ता हेतु दग्ध विशेषण 

सुप्त अंकुर  

सुप्त विशेषण अंकुरों की मिट्टी में दबी हुई स्थिति का घोतक है 

गगन-स्पर्शी  

बादलों की अत्याधिक ऊँचाई बताने हेतु गगन 

जीर्ण बाहु  

भुजाओं की दुर्बलता 

रुद्ध कोष  

भरें हुए खजानों हेतु 

 

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