Request a call back

Join NOW to get access to exclusive study material for best results

Class 12-commerce NCERT Solutions Hindi Chapter 14: Fanishwar Nath Renu

Fanishwar Nath Renu Exercise प्रश्न-अभ्यास

Solution 1

कुश्ती के समय ढोल की आवाज़ और लुट्टन के दाँव-पेंच में अद्भुत सामंजस्य था। लुट्टन को ढोल की प्रत्येक थाप एक नया दाँव-पेंच सिखाती थी। 

लुट्टन की ढोल और दाँव-पेंच में निम्नलिखित तालमेल था। 

1. चट धा, गिड़ धा- आजा भिड़ जा। 

2. चटाक चट धा- उठाकर पटक दे। 

3. चट गिड़ धा- मत डरना। 

4. धाक धिना तिरकट तिना- दाँव काटो,बाहर हो जाओ।

5. धिना धिना, धिक धिना- चित करो। 

ढोल के ध्वन्यात्मक शब्द हमारे मन में उत्साह के संचार के साथ आनंद का संचार भी करते हैं।

Solution 2

कहानी में लुट्टन के जीवन में अनेक परिवर्तन आए - 

1. माता-पिता का बचपन में देहांत होना। 

2. सास द्वारा उसका पालन-पोषण किया जाना और सास पर हुए अत्याचारों का बदला लेने के लिए पहलवान बनना। 

3. बिना गुरु के कुश्ती सीखना। ढोलक को अपना गुरु समझना। 

4. पत्नी की मृत्यु का दुःख सहना और दो छोटे बच्चों का भार संभालना। 

5. जीवन के पंद्रह वर्ष राजा की छत्रछाया में बिताना परंतु राजा के निधन के बाद उनके पुत्र द्वारा राजमहल से निकाला जाना। 

6. गाँव के बच्चों को पहलवानी सिखाना। 

7. अपने बच्चों की मृत्यु के असहनीय दुःख को सहना। 

8. महामारी के समय अपनी ढोलक द्वारा लोगों में उत्साह का संचार करना। 

Solution 3

लुट्टन ने कुश्ती के दाँव-पेंच किसी गुरु से नहीं बल्कि ढोल की आवाज से सीखे थे। ढोल से निकली हुई ध्वनियाँ उसे दाँव-पेच सिखाती हुई और आदेश देती हुई प्रतीत होती थी। जब ढोल पर थाप पड़ती थी तो पहलवान की नसें उत्तेजित हो जाती थी वह लड़ने के लिए मचलने लगता था। इसलिए लुट्टन पहलवान ने ऐसा कहा होगा कि मेरा गुरु कोई पहलवान नहीं, यही ढोल है।

Solution 4

गाँव में महामारी और सूखे के कारण निराशाजनक माहौल तथा मृत्यु का सन्नाटा छाया हुआ था। इसी प्रकार का सन्नाटा पहलवान के मन में अपने बेटों की मृत्यु के कारण छाया था। ऐसे दुःख के समय में पहलवान की ढोलक निराश गाँव वालों के मन में उमंग जागती थी। ढोलक जैसे उन्हें महामारी से लड़ने की प्रेरणा देती थी। इसलिए शायद गाँव में महामारी फैलने और अपने बेटों के देहांत के बावजूद लुट्टन पहलवान महामारी को चुनौती, अपने बेटों का दुःख कम करने और गाँव वालों को लड़ने की प्रेरणा देने के लिए ढोल बजाता रहा।

Solution 5

ढोलक की आवाज़ से रात की विभीषिका और सन्नाटा कम होता था महामारी से पीड़ित लोगों की नसों में बिजली सी दौड़ जाती थी, उनकी आँखों के सामने दंगल का दृश्य साकार हो जाता था और वे अपनी पीड़ा भूल खुशी-खुशी मौत को गले लगा लेते थे। इस प्रकार ढोल की आवाज, मृतप्राय गाँववालों की नसों में संजीवनी शक्ति को भर बीमारी से लड़ने की प्रेरणा देती थी।

Solution 6

महामारी फैलने के बाद गाँव में सूर्योदय और सूर्यास्त के दृश्य में बड़ा अंतर होता था। सूर्योदय के समय कलरव, हाहाकार तथा हृदय विदारक रुदन के बावजूद भी लोगों के चेहरे पर चमक होती थी लोग एक-दूसरे को सांत्वना बँधाते रहते थे परन्तु सूर्यास्त होते ही सारा परिदृश्य बदल जाता था। लोग अपने घरों में दुबक कर बैठ जाते थे। तब वे चूँ भी नहीं कर सकते थे। यहाँ तक कि माताएँ अपने दम तोड़ते पुत्र को 'बेटा' भी कह नहीं पाती थी। ऐसे समय में केवल पहलवान की ढोलक की आवाज सुनाई देती थी जैसे वह महामारी को चुनौती दे रही हो।

Solution 7

  1. पहले मनोरंजन के नवीनतम साधन अधिक न होने के कारण कुश्ती को मनोरंजन का अच्छा साधन माना जाता था इसलिए राजा-महाराजा कुश्ती के दंगलों का आयोजन करते रहते थे। जैसे-जैसे मनोरंजन के नवीन साधनों का चलन बढ़ता गया वैसे-वैसे कुश्ती की लोकप्रियता घटती गई और फिर पहले की तरह राजा-महाराजा भी नहीं रहे जो इस प्रकार के बड़े दंगलों का आयोजन करते। 
  2. आज कुश्ती के स्थान आधुनिक खेल, क्रिकेट, फुटबॉल, टेनिस आदि खेलों ने ले लिया। 
  3. कुश्ती को फिर से लोकप्रिय बनाने के लिए हमें एक बार पुन: कुश्ती के दंगल,पहलवानों को उचित प्रशिक्षण, उनके खान-पान का उचित ख्याल, खिलाड़ियों को उचित धनराशि तथा नौकरी में वरीयता,खेल का मीडिया में अधिक से अधिक प्रचार-प्रसार आदि कुछ उपाय कर सकते हैं। 

Solution 8

प्रस्तुत पंक्ति का आशय लोगों के असहनीय दुःख से है। तारे के माध्यम से लेखक कहना चाहता है कि अकाल और महामारी से त्रस्त गाँव वालों की पीड़ा को दूर करने वाला कोई नहीं था। प्रकृति भी गाँव वालों के दुःख से दुखी थी। आकाश से टूट कर यदि कोई भावुक तारा पृथ्वी पर आना भी चाहता तो उसकी ज्योति और शक्ति रास्ते में ही शेष हो जाती थी।लेखक के कहने का तात्पर्य यह है कि स्थिर तारे चमकते हुए प्रतीत होते हैं और टूटा तारा समाप्त हो जाता है।

Solution 9

    1. अँधेरी रात चुपचाप आँसू बहा रही थी।

      आशय - यहाँ पर रात का मानवीकरण किया गया है गाँव में हैजा और मलेरिया फैला हुआ था। महामारी की चपेट में आकार लोग मर रहे थे। चारों ओर मौत का सन्नाटा छाया था ऐसे में ओस की बूंदें आँसू बहाती सी प्रतीत हो रही थी।

    2. अन्य तारे अन्य तारे उसकी भावुकता अथवा असफलता पर खिलखिलाकर हँस पड़ते थे।

      आशय - यहाँ पर तारों को हँसता हुआ दिखाकर उनका मानवीकरण किया गया है। यहाँ पर तारे मज़ाक उड़ाते हुए प्रतीत हो रहें हैं।

Solution 10

पाठ में मलेरिया और हैजे से पीडि़त गाँव की दयनीय स्थिति को चित्रित किया गया है। आजकल 'मलेरिया और डेंगू' जैसी बीमारी ने आम जनता को अपने शिकंजे में कस लिया है। 

ऐसी स्थिति से निपटने के लिए मैं अपनी ओर से निम्न प्रयास करूँगा। 

1. लोगों को इन बीमारियों से अवगत करूँगा। 

2. इन बीमारियों से पीड़ित लोगों को उचित इलाज करवाने की सलाह दूँगा। 

3. स्वच्छता अभियान में सहायता करूँगा। 

Solution 11

कला व्‍यक्ति के मन में बसी हुई स्‍वार्थ, परिवार, धर्म, भाषा और जाति आदि की सीमाएँ को मिटाकर मानव मन को विस्‍तृता और व्‍यापकता प्रदान करती है। व्‍यक्ति के मन को उदात्‍त बनाती है।

कला ही है जिसमें मानव मन में संवेदनाएँ उभारने, प्रवृत्तियों को ढालने तथा चिंतन को मोड़ने, अभिरुचि को दिशा देने की अद्भुत क्षमता है। आत्मसंतोष एवं आनंद की अनुभूति भी इसके ज्ञानार्जन से ही होती है और इसके मंगलकारी प्रभाव से व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास होता है। जब यह कला संगीत के रुप में उभरती है तो कलाकार गायन और वादन से स्‍वयं को ही नहीं श्रोताओं को भी अभिभूत कर देता है। मनुष्‍य आत्‍मविस्‍मृत हो उठता है। दीपक राग से दीपक जल उठता है और मल्‍हार राग से मेघ बरसना यह कला की साधना का ही चरमोत्‍कर्ष है।

भाट और चारण भी जब युद्धस्‍थल में उमंग, जोश से सरोबार कविता-गान करते थे तो वीर योद्धाओं का उत्‍साह दोगुना हो जाता था तो युद्धक्षेत्र कहीं हाथी की चिंघाड़, तो कहीं घोड़ों की हिनहिनाहट तो कहीं शत्रु की चीत्‍कार से भर उठता था यह गायन कला की परिणति ही तो है। इसी प्रकार मानव कला के हर एक रूप काव्य, संगीत, नृत्य, चित्रकला, मूर्तिकला, स्थापत्य कला और रंगमंच से अटूट संबंध है।

Solution 12

कलाओं को फलने-फूलने के लिए भले व्यवस्था की जरुरत महसूस होती है परन्तु कलाओं का अस्तित्व केवल और केवल व्यवस्था का मोहताज नहीं होता है क्योंकि यदि कलाकार व्यवस्था द्वारा पोषित है और अपनी कला के प्रति समर्पित नहीं है तो वह कभी भी जनमानस में अपना स्थान नहीं बना पाएगा और कुछ ही समय बाद गायब हो जाएगा। किसी भी कला को विकसित होने में कलाकार का अपनी कला के प्रति एकनिष्ठ भाव, समर्पण भावना, उसकी अथक मेहनत और जन-सामान्य का प्यार, सरहाना आवश्यक तत्व होते हैं है। जिस किसी ने भी इन उपर्युक्त गुणों को पा लिया वह व्यवस्था के बिना भी सदैव अपने स्थान पर टिका रहता है।

Fanishwar Nath Renu Exercise भाषा की बात

Solution 1

 कुश्ती - दंगल, दाँव-पेंच, चित-पट। 

 चिकित्सा - डॉक्टर, नर्स, इलाज, परहेज, औषधि, जाँच। 

 क्रिकेट - बल्ला, गेंद, विकेट, अंपायर, चौका। 

 न्यायालय - जज, वकील, अभियुक्त, केस, जमानत। 

 विज्ञान - आविष्कार, वैज्ञानिक, जानकारी, उपकरण, पुरस्कार।

Solution 2

आज रामपुर का दंगल दर्शनीय था। पहलवान शमशेर और रघुवीर दोनों ही रत्तीभर भी एक दूसरे से कम न थे परंतु अचानक शमशेर ने बाज की तरह रघुवीर पर हमला बोल दिया और उसे चारों खाने चित्त कर दिया। दर्शकों ने अखाड़े को तालियों की चीत्कार से भर दिया। श्रोताओं में राजा साहब भी थे जिन्हें शमशेर ने अपनी कला से मंत्र-मुग्ध कर दिया था। राजा साहब ने भी अपनी स्नेह-दृष्टि ने उसकी प्रसिद्धि में चार चाँद लगा दिए। इस प्रकार शमशेर राज पहलवान घोषित होकर राजा की कृपा दृष्टि का पात्र बना और सुखमय जीवन व्यतीत करने लगा परंतु कुछ समय बाद ही पहलवान की स्त्री भी दो पहलवानों को पैदा करके स्वर्ग सिधार गई थी।

Solution 3

समानता 

असमानता 

  1. दोनों में ही खिलाड़ियों का परिचय दिया जाता है। 
  2. दोनों में हार-जीत बताई जाती है। 
  3. दोनों में ही निर्णायक होते हैं। 
  4. दोनों में खेल की स्थिति का वर्णन किया जाता है।
  1. क्रिकेट में बल्लेबाज, क्षेत्ररक्षण, गेंदबाजी आदि का वर्णन किया जाता है। जबकि कुश्ती में पहलवानों के दाँव-पेंचों का वर्णन किया जाता है। 
  2. क्रिकेट में खेल का स्कोर बताया जाता है और कुश्ती में चित या पट। 
  3. क्रिकेट में प्रशिक्षित कमेंटेटर होते हैं, जबकि कुश्ती में प्रशिक्षित कमेंटेटर निश्चित नहीं होते हैं।