NCERT Solutions for Class 10 Hindi Chapter 9 - Raveerndrnaath Thakur [Poem]
Chapter Poem 9 - Raveerndrnaath Thakur Exercise प्रश्न-अभ्यास
कवि करुणामय ईश्वर से प्रार्थना कर रहा है कि उसे जीवन की विपदाओं से दूर चाहे ना रखे पर इतनी शक्ति दे कि इन मुश्किलों पर विजय पा सके। दुखों में भी ईश्वर को न भूले, उसका विश्वास अटल रहे।
कवि का कहना है कि हे ईश्वर मैं यह नहीं कहता कि मुझ पर कोई विपदा न आए, मेरे जीवन में कोई दुख न आए बल्कि मैं यह चाहता हूँ कि मैं मुसीबत तथा दुखों से घबराऊँ नहीं, बल्कि आत्म-विश्वास के साथ निर्भीक होकर हर परिस्थितियों का सामना करने का साहस मुझ में आ जाए।
विपरीत परिस्थितियों के समय सहायक के न मिलने पर कवि ईश्वर से प्रार्थना करता है कि उसका बल पौरुष न हिले, वह सदा बना रहे और कोई भी कष्ट वह धैर्य से सह ले।
इस पूरी कविता में कवि ने ईश्वर से साहस और आत्मबल माँगा है अंत में कवि अनुनय करता है कि चाहे सब लोग उसे धोखा दे, सब दुख उसे घेर ले पर ईश्वर के प्रति उसकी आस्था कम न हो, उसका विश्वास बना रहे। उसका ईश्वर के प्रति विश्वास कभी न डगमगाए। सुखों के आने पर भी ईश्वर को हर क्षण याद करता रहें।
आत्मत्राण का अर्थ है आत्मा का त्राण अर्थात् आत्मा या मन के भय का निवारण, उससे मुक्ति। त्राण शब्द का प्रयोग इस कविता के संदर्भ में बचाव, आश्रय और भय निवारण के अर्थ में किया जा सकता है। कवि चाहता है कि जीवन में आने वाले दुखों को वह निर्भय होकर सहन करे। दुख न मिले ऐसी प्रार्थना वह नहीं करता बल्कि मिले हुए दुखों को सहने, उसे झेलने की शाक्ति के लिए प्रार्थना करता है। कवि ईश्वर से प्रार्थना करता है कि उसका बल पौरुष न हिले, वह सदा बना रहे और कोई भी कष्ट वह धैर्य से सह ले इसलिए यह शीर्षक पूर्णतया सार्थक है।
अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना के अतिरिक्त हम निम्नलिखित प्रयास करते हैं -
१) कठिन परिश्रम और संघर्ष करते हैं।
२) सफलता प्राप्त होने तक धैर्य धारण करते हैं।
यह प्रार्थना अन्य प्रार्थना गीतों से भिन्न है क्योंकि अन्य प्रार्थना गीतों में दास्य भाव, आत्म समर्पण, समस्त दुखों को दूर करके सुखशांति की प्रार्थना, कल्याण, मानवता का विकास, ईश्वर सभी कार्य पूरे करें ऐसी प्रार्थनाएँ होती हैं परन्तु इस कविता में कष्टों से छुटकारा नहीं कष्टों को सहने की शक्ति के लिए प्रार्थना की गई है। कवि ईश्वर से प्रार्थना करता है कि उसका बल पौरुष न हिले, वह सदा बना रहे और कोई भी कष्ट वह धैर्य से सह ले। यहाँ ईश्वर में आस्था बनी रहे, कर्मशील बने रहने की प्रार्थना की गई है। यह प्रार्थना किसी सांसारिक या भौतिक सुख की कामना के लिए नहीं है।
इन पंक्तियों में कवि कहना चाहता है कि वह सुख के दिनों में भी परमात्मा को हर पल श्रद्धा भाव से याद रखना चाहता है, वह एक पल भी ईश्वर को भुलाना नहीं चाहता। कवि दुख-सुख दोनों में ही प्रभु को सम भाव से याद करना चाहते हैं।
कवि ईश्वर से प्रार्थना करता है कि जीवन में उसे लाभ मिले या हानि ही उठानी पड़े तब भी वह अपना मनोबल न खोए। हर परिस्थिति का सहर्ष सामना कर सके।
कवि इस संसार रूपी भवसागर को स्वयं पार करना चाहते हैं। वह यह नहीं चाहता कि ईश्वर उसे इस दुख के भार को कम कर दे या सांत्वना दे। वह अपने जीवन की ज़िम्मेदारियों को कम करने के लिए नहीं कहता बल्कि उससे संघर्ष करने, उसे सहने की शक्ति के लिए प्रार्थना करता है।
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