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Class 10 NCERT Solutions Hindi Chapter 3 - Sana Sana Hath Jodi

Sana Sana Hath Jodi Exercise प्रश्न-अभ्यास

Solution 1

रात्रि के समय आसमान ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो सारे तारे बिखरकर नीचे टिमटिमा रहे थे। दूर ढलान लेती तराई पर सितारों के गुच्छे रोशनियों की एक झालर-सी बना रहे थे। रात के अन्धकार में सितारों से झिलमिलाता गंतोक लेखिका को जादुई एहसास करा रहा था। उसे यह जादू ऐसा सम्मोहित कर रहा था कि मानो उसका आस्तित्व स्थगित सा हो गया हो, सब कुछ अर्थहीन सा था। उसकी चेतना शून्यता को प्राप्त कर रही थी। वह सुख की अतींद्रियता में डूबी हुई उस जादुई उजाले में नहा रही थी जो उसे आत्मिक सुख प्रदान कर रही थी।

Solution 2

गंतोक को सुंदर बनाने के लिए वहाँ के निवासियों ने विपरीत परिस्थितियों में अत्यधिक श्रम किया है। पहाड़ी क्षेत्र के कारण पहाड़ों को काटकर रास्ता बनाना पड़ता है। पत्थरों पर बैठकर औरतें पत्थर तोड़ती हैं। उनके हाथों में कुदाल व हथौड़े होते हैं। कईयों की पीठ पर बँधी टोकरी में उनके बच्चे भी बँधे रहते हैं और वे काम करते रहते हैं। हरे-भरे बागानों में युवतियाँ बोकु पहने चाय की पत्तियाँ तोड़ती हैं। बच्चे भी अपनी माँ के साथ काम करते हैं। यहाँ जीवन बेहद कठिन है पर यहाँ के लोगों ने इन कठिनाईयों के बावजूद भी शहर के हर पल को खुबसूरत बना दिया है। इसलिए लेखिका ने इसे 'मेहनतकश बादशाहों का शहर' कहा है।

Solution 3

सफ़ेद बौद्ध पताकाएँ शांति व अहिंसा की प्रतीक हैं, इन पर मंत्र लिखे होते हैं। यदि किसी बुद्धिस्ट की मृत्यु होती है तो उसकी आत्मा की शांति के लिए 108 श्वेत पताकाएँ फहराई जाती हैं। कई बार किसी नए कार्य के अवसर पर रंगीन पताकाएँ फहराई जाती हैं। इसलिए ये पताकाएँ, शोक व नए कार्य के शुभांरभ की ओर संकेत करते हैं।

Solution 4

१) नार्गे के अनुसार सिक्किम में घाटियाँ, सारे रास्ते हिमालय की गहनतम घाटियाँ और फूलों से लदी वादियाँ मिलेंगी।

२) घाटियों का सौंदर्य देखते ही बनता हैं। नार्गे ने बताया कि वहाँ की खूबसूरती, स्विट्ज़रलैंड की खूबसूरती से तुलना की जा सकती है।

३) नार्गे के अनुसार पहाड़ी रास्तों पर फहराई गई ध्वजा बुद्धिस्ट की मृत्यु व नए कार्य की शुरूआत पर फहराए जाते हैं। ध्वजा का रंग श्वेत व रंग-बिरंगा होता है।

४) सिक्किम में भी भारत की ही तरह घूमते चक्र के रूप मे आस्थाएँ, विश्वास, अंधविश्वास पाप-पुण्य की अवधारणाएँ व कल्पनाएँ एक जैसी थीं।

५) वहाँ की युवतियाँ बोकु नाम का सिक्किम का परिधान डालती हैं। जिसमें उनके सौंदर्य की छटा निराली होती है। वहाँ के घर, घाटियों में ताश के घरों की तरह पेड़ के बीच छोटे-छोटे होते हैं।

६) वहाँ के लोग मेहनतकश लोग हैं व जीवन काफी मुश्किलों भरा है।

७) स्त्रियाँ व बच्चे सब काम करते हैं। स्त्रियाँ स्वेटर बुनती हैं, घर सँभालती हैं, खेती करती हैं, पत्थर तोड़-तोड़ कर सड़कें बनाती हैं। चाय की पत्तियाँ चुनने बाग़ में जाती हैं। बच्चों को अपनी कमर पर कपड़े में बाँधकर रखती हैं।

८) बच्चों को बहुत ऊँचाई पर पढ़ाई वे लिए जाना पड़ता है क्योंकि दूर-दूर तक कोई स्कूल नहीं है। इन सब के विषय में नार्गे लेखिका को बताता चला गया।

Solution 5

लेखिका सिक्किम में घूमती हुई कवी-लोंग स्टॉक नाम की जगह पर गई। लोंग स्टॉक के घूमते चक्र के बारे में जितेन ने बताया कि यह धर्म चक्र हैइसको घुमाने से सारे पाप धुल जाते हैं। मैदानी क्षेत्र में गंगा के विषय में ऐसी ही धारणा है। लेखिका को लगा कि चाहे मैदान हो या पहाड़, तमाम वैज्ञानिक प्रगतियों के बावजूद इस देश की आत्मा एक जैसी है। यहाँ लोगों की आस्थाएँ, विश्वास, पाप-पुण्य की अवधारणाएँ और कल्पनाएँ एक जैसी हैं। यही विश्वास पूरे भारत को एक ही सूत्र में बाँध देता है।

Solution 6

नार्गे एक कुशल गाइड था। वह अपने पेशे के प्रति पूरा समर्पित था। उसे सिक्किम के हर कोने के विषय में भरपूर जानकारी प्राप्त थी इसलिए वह एक अच्छा गाइड था। एक कुशल गाइड में निम्नलिखित गुणों का होना आवश्यक है -

१) एक गाइड अपने देश व इलाके के कोने-कोने से भली भाँति परिचित होता है, अर्थात् उसे सम्पूर्ण जानकारी होनी चाहिए।

२) उसे वहाँ की भौगोलिक स्थिति, जलवायु व इतिहास की सम्पूर्ण जानकारी होनी चाहिए।

३) एक कुशल गाइड को चाहिए कि वो अपने भ्रमणकर्ता के हर प्रश्नों के उत्तर देने में सक्षम हो।

४) एक कुशल गाइड को अपनी विश्वसनीयता का विश्वास अपने भ्रमणकर्ता को दिलाना आवश्यक है। तभी वह एक आत्मीय रिश्ता कायम कर अपने कार्य को कर सकता है।

५) गाइड को कुशल व बुद्धिमान व्यक्ति होना आवश्यक है। ताकि समय पड़ने पर वह विषम परिस्थितियों का सामना अपनी कुशलता व बुद्धिमानी से कर सके व अपने भ्रमणकर्ता की सुरक्षा कर सके।

६) एक कुशल गाइड की वाणी को प्रभावशाली होना आवश्यक है इससे पूरी यात्रा प्रभावशाली बनती है और भ्रमणकर्ता की यात्रा में रूचि भी बनी रहती है।

७) वह यात्रियों को रास्तें में आने वाले दर्शनीय स्थलों की जानकारी देता रहे।

८) वहाँ के जन-जीवन की दिनचर्या से अवगत कराए।

९) रास्ते में आए प्रत्येक दृश्य से पर्यटकों को अवगत कराए।

Solution 7

इस यात्रा वृतांत में लेखिका ने हिमालय के पल-पल परिवर्तित होते रुप को देखा है। ज्यों-ज्यों ऊँचाई पर चढ़ते जाएँ हिमालय विशाल से विशालतर होता चला जाता है। हिमालय कहीं चटक हरे रंग का मोटा कालीन ओढ़े हुए, तो कहीं हल्का पीलापन लिए हुए प्रतीत होता है। चारों तरफ़ हिमालय की गहनतम वादियाँ और फूलों से लदी घाटियाँ थी। कहीं प्लास्टर उखड़ी दिवार की तरह पथरीला और देखते-ही-देखते सब कुछ समाप्त हो जाता है मानो किसी ने जादू की छडी घूमा दी हो। कभी बादलों की मोटी चादर के रूप में,सब कुछ बादलमय दिखाई देता है तो कभी कुछ और। कटाओ से आगे बढ़ने पर पूरी तरह बर्फ से ढके पहाड़ दिख रहे थे। चारों तरफ दूध की धार की तरह दिखने वाले जलप्रपात थे तो वहीं नीचे चाँदी की तरह कौंध मारती तिस्ता नदी। जिसने लेखिका के ह्रदय को आनन्द से भर दिया। स्वयं को इस पवित्र वातावरण में पाकर भावविभोर हो गई जिसने उनके ह्रदय को काव्यमय बना दिया।

Solution 8

हिमालय का स्वरुप पल-पल बदलता है। प्रकृति इतनी मोहक है कि लेखिका किसी बुत-सी माया और छाया के खेल को देखती रह जाती है। इस वातावरण में उसको अद्भुत शान्ति प्राप्त हो रही थी। इन अद्भुत व अनूठे नज़ारों ने लेखिका को पल मात्र में ही जीवन की शक्ति का अहसास करा दिया। उसे ऐसा लगने लगा जैसे वह देश व काल की सरहदों से दूर,बहती धारा बनकर बह रही हो और उसकी मन के सारा मैल और वासनाएँ इस निर्मल धारा में बह कर नष्ट हो गई हो। प्रकृति के उस अनंत और विराट स्वरुप को देखकर लेखिका को लगा कि इस सारे परिदृश्य को वह अपने अंदर समेट ले। उसे ऐसा अनुभव होने लगा वह चीरकाल तक इसी तरह बहते हुए असीम आत्मीय सुख का अनुभव करती रहे।

Solution 9

लेखिका हिमालय यात्रा के दौरान प्राकृतिक सौंदर्य के अलौकिक आनन्द में डूबी हुई थी परन्तु जीवन के कुछ सत्य जो वह इस आनन्द में भूल चूकी थी, अकस्मात् वहाँ के जनजीवन ने उसे झकझोर दिया। वहाँ कुछ पहाड़ी औरतें जो मार्ग बनाने के लिए पत्थरों पर बैठकर पत्थर तोड़ रही थीं। वे पत्थर तोड़कर सँकरे रास्तों को चौड़ा कर रही थीं। उनके कोमल हाथों में कुदाल व हथौड़े से ठाठे (निशान) पड़ गए थे। कईयों की पीठ पर बच्चे भी बँधे हुए थे। इनको देखकर लेखिका को बहुत दुख हुआ। वह सोचने लगी की यह पहाड़ी औरतें अपने जान की परवाह न करते हुए सैलानियों के भ्रमण तथा मनोरंजन के लिए हिमालय की इन दुर्गम घाटियों में मार्ग बनाने का कार्य कर रही है। सात आठ साल के बच्चों को रोज़ तीन-साढ़े तीन किलोमीटर का सफ़र तय कर स्कूल पढ़ने जाना पढ़ता है। यह देखकर लेखिका मन में सोचने लगी कि यहाँ के अलौकिक सौंदर्य के बीच भूख, मौत, दैन्य और जिजीविषा के बीच जंग जारी है।

Solution 10

सैलानियों को प्रकृति की अलौकिक छटा का अनुभव कराने में सबसे बड़ा हाथ एक कुशल गाइड का होता है। जो अपनी जानकारी व अनुभव से सैलानियों को प्रकृति व स्थान के दर्शन कराता है। कुशल गाइड इस बात का ध्यान रखता है कि भ्रमणकर्ता की रूचि पूरी यात्रा में बनी रहे ताकि भ्रमणकर्ता के भ्रमण करने का प्रयोजन सफल हो। अपने मित्रों व सहयात्रियों का साथ पाकर यात्रा और भी रोमांचकारी व आनन्दमयी बन जाती है। वहाँ के स्थानीय निवासियों व जन जीवन का भी महत्वपूर्ण स्थान होता है। उनके द्वारा ही इस छटा के सौंदर्य को बल मिलता है क्योंकि यदि ये ना हों तो वो स्थान नीरस व बेजान लगने लगते हैं। तथा सरकारी लोग जो व्यवस्था में संलग्न होते उनका महत्त्वपूर्ण योगदान होता हैं।

Solution 11

पत्थरों पर बैठकर श्रमिक महिलाएँ पत्थर तोड़ती हैं। उनके हाथों में कुदाल व हथौड़े होते हैं। कइयों की पीठ पर बँधी टोकरी में उनके बच्चे भी बँधे रहते हैं और वे काम करते रहते हैं। हरे-भरे बागानों में युवतियाँ बोकु पहने चाय की पत्तियाँ तोड़ती हैं। बच्चे भी अपनी माँ के साथ काम करते हैं। इन्ही की भाँति आम जनता भी अपनी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के प्रयास में जीविका रूप में देश और समाज के लिए बहुत कुछ करते हैं। सड़के, पहाड़ी मार्ग, नदियों, पुल आदि बनाना। खेतों में अन्न उपजाना, कपड़ा बुनना, खानों, कारखानों में कार्य करके अपनी सेवाओं से राष्ट्र आर्थिक सदृढ़ता प्रदान करके उसकी रीढ़ की हड्डी को मजबूत बनाते हैं।

हमारे देश की आम जनता जितना श्रम करती है, उसे उसका आधा भी प्राप्त नहीं होता परन्तु फिर भी वो असाध्य कार्य को अपना कर्तव्य समझ कर करते हैं। वो समाज का कल्याण करते हैं परन्तु बदले में उन्हें स्वयं नाममात्र का ही अंश प्राप्त होता है। देश की प्रगति का आधार यहीं आम जनता है जिसके प्रति सकारात्मक आत्मीय भावना भी नहीं होती। यदि ये आम जनता ना हो तो देश की प्रगति का पहिया रुक जाएगा।

Solution 12

प्रकृति के साथ खिलवाड़ करने के क्रम में आज की पीढ़ी पहाड़ी स्थलों को अपना विहार स्थान बना रही है। इससे वहाँ गंदगी बढ़ रही है। पर्वत अपनी स्वभाविक सुंदरता खो रहे है। कारखानों से निकलने वाले जल में खतरनाक कैमिकल व रसायन होते हैं जिसे नदी में प्रवाहित कर दिया जाता है। साथ में घरों से निकला दूषित जल भी नदियों में ही जाता है। जिसके कारण हमारी नदियाँ लगातार दूषित हो रही हैं।   वनों की अन्धांधुध कटाई से मृदा का कटाव होने लगा है जो बाढ़ को आमंत्रित कर रहा है। दूसरे अधिक पेड़ों की कटाई ने वातावरण में कार्बनडाइ आक्साइड की अधिकता बढ़ा दी है जिससे वायु प्रदूषित होती जा रही है।

हमें निम्नलिखित भूमिका निभानी चाहिए -

१) हम सबको मिलकर अधिक से अधिक पेड़ों को लगाना चाहिए।

२) पेड़ों को काटने से रोकने के लिए उचित कदम उठाने चाहिए ताकि वातावरण की शुद्धता बनी रहे।

३) हमें नदियों की निर्मलता व स्वच्छता को बनाए रखने के लिए कारखानों से निकलने वाले प्रदूर्षित जल को नदियों में डालने से रोकना चाहिए।

४) नदियों की स्वच्छता बनाए रखने के लिए, लोगों की जागरूकता के लिए अनेक कार्यक्रमों का आयोजन होना चाहिए।

Solution 13

आज की पीढ़ी के द्वारा प्रकृति को प्रदूषित किया जा रहा है। प्रदूषण का मौसम पर असर साफ दिखाई देने लगा है। प्रदूषण के चलते जलवायु पर भी बुरा प्रभाव पड़ रहा है। कहीं पर बारिश अतिरिक्त हो जाती है तो किसी स्थान पर अप्रत्याशित रूप से सूखा पड़ रहा है। गर्मी के मौसम में गर्मी की अधिकता देखते बनती है। कई बार तो पारा अपने सारे रिकार्ड को तोड़ चुका होता है। सर्दियों के समय में या तो कम सर्दी पड़ती है या कभी सर्दी का पता ही नहीं चलता। ये सब प्रदूषण के कारण ही सम्भव हो रहा है। प्रदूषण के कारण वायुमण्डल में कार्बनडाइआक्साइड की अधिकता बढ़ गई है जिसके कारण वायु प्रदूषित होती जा रही है। इससे साँस की अनेकों बीमारियाँ उत्पन्न होने लगी है। प्रदूषण के कारण पहाड़ी स्थानों का तापमान बढ़ गया है, जिससे स्नोफॉल कम हो गया। ध्वनि प्रदूषण से शांति भंग होती है। ध्वनि-प्रदूषण मानसिक अस्थिरता, बहरेपन तथा  अनिंद्रा जैसे रोगों का कारण बन रहा है। जलप्रदूषण के कारण स्वच्छ जल पीने को नहीं मिल पा रहा है और पेट सम्बन्धी अनेकों बीमारियाँ उत्पन्न हो रही हैं।

Solution 14

'कटाओ' पर किसी भी दुकान का न होना उसके लिए वरदान है क्योंकि अभी यह पर्यटक स्थल नहीं बना। यदि कोई दुकान होती तो वहाँ सैलानियों का अधिक आगमन शुरू हो जाएगा। और वे जमा होकर खाते-पीते, गंदगी फैलाते, इससे गंदगी तथा वहाँ पर वाहनों के अधिक प्रयोग से वायु में प्रदूषण बढ़ जाएगा। लेखिका को केवल यही स्थान मिला जहाँ पर वह स्नोफॉल देख पाई। इसका कारण यही था कि वहाँ प्रदूषण नहीं था। अतः 'कटाओ 'पर किसी भी दुकान का न होना उसके लिए एक प्रकार से वरदान ही है।

Solution 15

प्रकृति ने जल संचय की व्यवस्था नायाब ढंग से की है। प्रकृति सर्दियों में बर्फ के रूप में जल संग्रह कर लेती है और गर्मियों में पानी के लिए जब त्राहि-त्राहि मचती है, तो उस समय यही बर्फ शिलाएँ पिघलकर जलधारा बन के नदियों को भर देती है। नदियों के रूप में बहती यह जलधारा अपने किनारे बसे नगर तथा गावों में जल-संसाधन के रूप में तथा नहरों के द्वारा एक विस्तृत क्षेत्र में सिंचाई करती हैं और अंत में सागर में जाकर मिल जाती हैं। सागर से फिर से वाष्प के रूप में जल-चक्र की शुरुआत होती है। सचमुच प्रकृति ने जल संचय की कितनी अद्भुत व्यवस्था की है। 

Solution 16

'साना साना हाथ जोडि' पाठ में देश की सीमा पर तैनात फौजियों की चर्चा की गई है। वस्तुत: सैनिक अपने उत्तरदायित्व का निर्वाह ईमानदारी, समर्पण तथा अनुशासन से करते है। सैनिक देश की सीमाओं की रक्षा के लिए कटिबध्द रहते है। देश की सीमा पर बैठे फ़ौजी प्रकृति के प्रकोप को सहन करते हैं। हमारे सैनिकों (फौजी) भाईयों को उन बर्फ से भरी ठंड में ठिठुरना पड़ता है। जहाँ पर तापमान शून्य से भी नीचे गिर जाता है। वहाँ नसों में खून को जमा देने वाली ठंड होती है। वह वहाँ सीमा की रक्षा के लिए तैनात रहते हैं और हम आराम से अपने घरों पर बैठे रहते हैं। ये जवान हर पल कठिनाइयों से जूझते हैं और अपनी जान हथेली पर रखकर जीते हैं। हमें सदा उनकी सलामती की दुआ करनी चाहिए। उनके परिवारवालों के साथ हमेशा सहानुभूति, प्यार व सम्मान के साथ पेश आना चाहिए।

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