ICSE Class 9 Saaransh Lekhan Sukhi Daali (Eakanki Sanchay)
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Sukhi Daali Synopsis
सारांश
प्रस्तुत एकांकी ‘सूखी डाली श्री उपेन्द्रनाथ ‘अश्क’द्वारा रचित है। ‘सूखी डाली’ एकांकी संयुक्त परिवार के महत्त्व को दर्शाती है। कहानी के दादा मूलराज जहाँ संयुक्त परिवार के सदस्य हैं, वहीँ उनके पोते की बहू एकल परिवार में आस्था रखती है। अपने पोते की बहू बेला के मन में संयुक्त परिवार के प्रति आस्था जगाने के लिए वे अपने विचार उस पर थोपते नहीं हैं बल्कि उसकी भावनाओं की कद्र करते हुए समय स्वतंत्रता देते हैं जिससे अंत में उसे संयुक्त परिवार का महत्त्व समझ में आ जाता है। इस प्रकार यह एकांकी संयुक्त परिवार के महत्त्व को प्रतिपादित करती है।
इस एकांकी में कई पुरुष और स्त्री पात्र हैं। पुरुष पात्र- दादा मूलराज, कर्मचंद, परेश, भाषी और मल्लू है तो वहीँ स्त्री पात्र बेला, छोटी भाभी, मँझली भाभी, बड़ी बहू, पारो और रजवा है।
दादा मूलराज कहानी में घर के मुखिया हैं उनकी आयु 72 वर्ष है। दादा मूलराज अपने परिवार को एक बरगद का पेड़ समझते हैं और परिवार के हर एक सदस्य को बरगद के पेड़ से जुड़ी हुई डालियाँ। वे अपने परिवार की किसी एक डाली अर्थात् परिवार के सदस्य को पृथक नहीं देख सकते थे।
वे संयुक्त परिवार के उपासक होने के कारण अपने परिवार को टूटने से बचाने के लिए हर संभव प्रयास करते हैं। दादा घर के सभी सदस्यों को उचित स्वतंत्रता और सम्मान के पक्षधर हैं। वे अपने विचारों को किसी पर थोपने के बजाय उनके विचारों को समझने के लिए उचित वातावरण तैयार करते हैं। दादा अनुशासन प्रिय और परिवार के सदस्यों के बीच सम्मानीय भी हैं इसके कारण ही घर के प्रत्येक सदस्य उनकी कही बातों का अक्षरशः पालन करते हैं। दादा समझदार और दूरदर्शी भी हैं उनके समझदारी के कारण ही परिवार आज संपन्नता के शिखर पर हैं।
ऐसे में नयी बहू बेला के आगमन से परिवार में अलगाव की स्थिति उत्पन्न हो जाती है जिसे दादा बड़ी कुशलता से सँभाल लेते हैं। बेला वह पढ़ी-लिखी सुसंकृत घराने से संबंध रखती है। उसका विवाह परेश से हुआ है जो कि नायाब तहसीलदार के पद पर कार्यरत हैं। इसलिए घर में वह छोटी बहू कहलाती है। छोटी बहू हर समय अपने मायके की ही तारीफ़ करती रहती है। इस कारण घर के सभी सदस्य उसे अभिमानी समझते हैं और उसकी बातों पर हँसते रहते हैं उसके घर और यहाँ के वातावरण में काफी अंतर होने के कारण वह घर के पारिवारिक सदस्यों के साथ ताल-मेल बैठाने में दिक्कत महसूस कर रही है। वहीँ घर के सदस्य उसे गर्वीली और अभिमानी समझते हैं और उसकी निंदा और उपहास करते रहते हैं। छोटी बहू बड़े घर की, अत्याधिक पढ़ी-लिखी बेटी थी। शादी के पूर्व वह अपने मायके में राज करती आई थी। परंतु अब उसे यहाँ पर अपने ससुराल में हर एक का आदर करना पड़ता था, हर एक से दबना पड़ता था, और हर एक का आदेश मानना पड़ता था इसलिए यहाँ उसका व्यक्तित्व एक प्रकार से दब-सा गया था और इसी कारण उसका मन नहीं लगता था।
घर को अलगाव से बचाने के लिए वक्ता ने घर के सभी सदस्यों को बुलाकर समझाया कि उन सभी को किस प्रकार से छोटी बहू के साथ व्यवहार करना चाहिए। उन्होंने सभी को समझाया कि घर के सभी सदस्यों को छोटी बहू से ज्ञानार्जन करना चाहिए न कि उसकी बातों का मज़ाक उड़ाना चाहिए। इस प्रकार दादाजी की बातों का घर के सभी सदस्यों पर असर पड़ा।
दादाजी ने सभी को समझाया कि कोई भी व्यक्ति उम्र या दर्जे से बड़ा नहीं होता। घर की छोटी बहू भले रिश्ते में सबसे छोटी हो परंतु अक्ल के मामले में सबसे बड़ी होने के कारण घर के सदस्यों को छोटी बहू की बुद्धि और उसकी योग्यता से लाभ उठाना चाहिए। घर के सभी सदस्य उसे सही आदर-सत्कार, उसकी राय को महत्त्व और पढ़ने के लिए समय दें। उसे ऐसा महसूस ही न होने दें कि वह किसी अन्य वातावरण में आ गई है।
दादा के कहे अनुसार घर के सभी सदस्य छोटी बहू बेला को कुछ अधिक ही आदर देने लगते हैं जिससे वह थोड़ी असहज महसूस करने लगती हैं क्योंकि वह भी परिवार में हिलमिलकर रहना चाहती थी। ऐसे में वह दादा से कहती है कि वह बरगद के पेड़ से किसी डाली को अलग नहीं देख सकते परंतु क्या वे यह देख पाएँगे कि कोई डाली पेड़ पर ही सूख गई हो। वह सूखी डाली नहीं बनना चाहती जो पेड़ के विकास में अपना सहयोग न दे पाएँ। इस तरह अंत में बेला भी संयुक्त परिवार में मिलजुलकर का रहना स्वीकार कर लेती है।