Request a call back

Join NOW to get access to exclusive study material for best results

ICSE Class 9 Saaransh Lekhan Sakhi (Sahitya Sagar)

ICSE Class 9 Textbook Solutions, Videos, Sample Papers & More

Sakhi Synopsis

सारांश

 

प्रस्तुत साखी कबीरदास द्वारा रचित है। यहाँ पर पाँच साखियाँ दी गई है। प्रत्येक साखी में कबीरदास ने नीतिपरक शिक्षा देने का प्रयास किया है।

प्रथम साखी में कवि ने गुरु के महत्त्व को प्रतिपादित किया है कि यदि गुरु और गोविंद दोनों उनके सामने खड़े हो तो वे पहले गुरु के चरण स्पर्श करेंगे कारण गुरु ने ही उन्हें ईश्वर का ज्ञान दिया है।

दूसरी साखी में कवि ने कहा है कि अहंकार को मिटाकर की ईश्वर की प्राप्ति हो सकती है।

तीसरी साखी में कवि ने मुसलमानों पर व्यंग करते हुए कहा है कि ईश्वर की उपासना शांत रहकर भी की जा सकती है।

चौथी साखी में कवि ने हिन्दुओं की मूर्ति पूजा का खंडन किया है कि पत्थर पूजने से भगवान की प्राप्ति नहीं हो सकती है।

पाँचवी साखी में कवि ने ईश्वर को अनंत बताया है। कवि के अनुसार ईश्वर की महिमा का बखान नहीं किया जा सकता।

 

भावार्थ/ व्याख्या


गुरू गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पांय।

बलिहारी गुरू अपने गोविन्द दियो बताय।।



भावार्थ- कबीरदास कहते हैं कि जब गुरू और गोविंद अर्थात् ईश्वर एक साथ खड़े हों तो किसे प्रणाम करना चाहिए– गुरू को अथवा गोविंद को? ऐसी स्थिति में कबीरदास कहते हैं कि गुरू के श्रीचरणों में शीश झुकाना उत्तम है जिनकी कृपा रूपी प्रसाद से गोविंद का दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।


जब मैं था तब हरि नहीं अब हरि है मैं नाहीं।

प्रेम गली अति सांकरी जामें दो न समाहीं॥



भावार्थ- कबीरदास कहते हैं कि जब तक मन में अहंकार था तब तक ईश्वर का साक्षात्कार न हुआ, जब अहंकार (अहम्) समाप्त हुआ तभी प्रभु मिले। जब ईश्वर का साक्षात्कार हुआ, तब अहंकार स्वत: ही नष्ट हो गया।
प्रेम की गली अत्यंत तंग होती है। जिस प्रकार किसी तंग गली में दो व्यक्तियों को स्थान नहीं दिया जा सकता ठीक उसी प्रकार प्रेम की गली में अहंकार और ईश्वर इन दोनों चीज़ों को स्थान नहीं मिल सकता है। भाव यह है कि यदि ईश्वर का साक्षात्कार करना हो तो अहंकार का त्याग करना आवश्यक है। वैसे तो ईश्वर प्राप्ति के लिए अनेक प्रकार के कृत्यों की आवश्यकता होती है परंतु कबीर के अनुसार अहंकार का त्याग सबसे महत्त्वपूर्ण कृत्य है। अहंकारी व्यक्ति के लिए ईश्वर को पाना कठिन है। अहंकारहीन व्यक्ति सरल हृदय का हो जाता है और ऐसे व्यक्ति को ईश्वर तुरंत प्राप्त हो जाते हैं।

 

काँकर पाथर जोरि कै, मसजिद लई बनाय।

ता चढ़ि मुल्ला बाँग दे, क्या बहरा हुआ खुदाय॥


भावार्थ- प्रस्तुत दोहे में कबीर ने इस्लाम की धार्मिक कुरीतियों पर कटाक्ष किया है। कबीर के अनुसार मनुष्य को सच्ची भक्ति करनी चाहिए क्योंकि ढोंग पाखंड दिखावे से ईश्वर नहीं प्राप्त होते। कबीर कहते हैं कि कंकड़ पत्थर एकत्रित करके मनुष्य ने मस्जिद बना ली। उसी मस्जिद में मौलवी जोर जोर से चिल्लाकर नमाज़ अदा करता है अर्थात मुर्गे की तरह बाँग देता है तथा ईश्वर का आह्वान करता है। इसी रूढ़िवादिता पर व्यंग करते हुए वे मानव समाज से प्रश्न करते हैं कि क्या खुदा बहरा है? जो हमें इस तरह से चिल्लाने की आवश्यकता पड़ रही है। क्या शांति से की गयी एवं मन ही मन में की गयी प्रार्थना ईश्वर तक नहीं पहुँचती है? वे इस दोहे में ढोंग आडंबर तथा पाखंड का विरोध करते हुए नज़र आते हैं। ईश्वर तो सर्वज्ञ हैं।


पाहन पूजे हरि मिले, तो मैं पूजूँ पहार।

ताते ये चाकी भली, पीस खाय संसार॥

 

भावार्थ- इस दोहे द्वारा कबीरदास ने मूर्ति-पूजा जैसे बाह्य आडंबरों का विरोध किया है। कबीर के अनुसार यदि ईश्वर पत्थर पूजने से मिलता तो वे पहाड़ों की पूजा करना शुरू कर देते परन्तु ऐसा संभव नहीं है। कबीर मूर्ति पूजा के स्थान पर घर की चक्की को पूजने कहते है जिससे अन्न पीसकर खाते हैं। जिसमें अन्न पीस कर लोग अपना पेट भरते हैं।


सात समंद की मसि करौं, लेखनि सब बरनाय।

सब धरती कागद करौं, हरि गुन लिखा न जाय।।


भावार्थ- कबीरदास कहते हैं कि इस पूरी धरती के बराबर बड़ा कागज, दुनिया के सभी वृक्षों की कलम और सातों समुद्रों की के बराबर स्याही बनाकर भी हरि के गुणों का बखान नहीं कर सकता।

Get Latest Study Material for Academic year 24-25 Click here
×