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ICSE Class 9 Saaransh Lekhan Matr Bumi Ka Maan (Eakanki Sanchay)

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Matr Bumi Ka Maan Synopsis

 

सारांश

प्रस्तुत एकांकी ‘मातृभूमि का मान’ श्री हरिकृष्ण ‘प्रेमी’ द्वारा रचित है। इस पूरी एकांकी में राजपूतों की मातृभूमि के प्रति एकनिष्ठा को दर्शाया है।

इस एकांकी में कुल पाँच पात्र हैं- राव हेमू- जो बूँदी के शासक हैं, अभयसिंह- जो मेवाड़ का सेनापति हैं, महाराणा लाखा- जो मेवाड़ का शासक हैं, वीरसिंह,जो मेवाड़ की सेना का एक सिपाही है परंतु उसकी मातृभूमि बूँदी है और चारणी। साथ ही एकांकी में वीर सिंह के साथियों का भी वर्णन है।

 

एकांकी में राजपूत शक्ति की एकसूत्रता के लिए महाराणा चाहते थे कि बूँदी उनकी अधीनता स्वीकार कर ले। इसलिए मेवाड़ नरेश महाराणा लाखा ने अपने सेनापति अभय सिंह से बूँदी के राव हेमू के पास यह संदेश भिजवाया कि बूँदी मेवाड़ की अधीनता स्वीकार करे ताकि राजपूतों की असंगठित शक्ति को संगठित करके एक सूत्र में बाँधा जा सके।

 

परंतु राव ने यह कहकर प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया कि बूँदी महाराणाओं का आदर तो करता है, पर स्वतंत्र रहना चाहता है। वे शक्ति नहीं प्रेम का अनुशासन करना चाहते हैं। वे स्वतंत्र राज्य और स्वतंत्र रहकर महाराणाओं का आदर कर सकता है परंतु किसी के अधीन रहकर सेवा करना उसे पसंद नहीं है।

 

यह सुन कर राणा लाखा ने बूँदी पर आक्रमण कर दिया।  परंतु मेवाड़ के शासक महाराणा लाखा को नीमरा के इस युद्ध के मैदान में बूँदी के राव हेमू से पराजित होकर भागना पड़ता है, इसलिए अपने को धिक्कारते हैं, और आत्मग्लानि अनुभव करने के कारण जनसभा में भी नहीं जाना चाहते।

  

वे अब किसी भी तरह हाड़ाओं को हराकर अपने माथे पर लगे पराजय को कलंक को धोना चाहते हैं इसलिए महाराणा आवेश में आकर प्रतिज्ञा कर बैठते है कि जब तक वे बूँदी के दुर्ग में ससैन्य प्रवेश नहीं करेंगे, तब तक वे अन्न जल ग्रहण नहीं करेंगे।

अब महाराणा लाखा ने गुस्से में प्रतिज्ञा तो कर ली थी पर प्रतिज्ञा पूरी कैसे हो ऐसे में महाराणा को चारिणी ने उन्हें सलाह दी कि वे नकली दुर्ग का विध्वंस करके अपनी प्रतिज्ञा पूर्ण कर ले। महाराणा ने यह प्रस्ताव स्वीकार किया क्योंकि वे हाड़ाओं को उनकी उदण्डता का दंड देना चाहते थे तथा अपने व्रत का भी पालन करना चाहते थे।

 

महाराणा की प्रतिज्ञा को पूरी करने के लिए बूँदी का नकली किला बनवाया गया और उस किले को जीतने के लिए नकली युद्ध की योजना भी बनाई गई।

इस तरह नकली युद्ध करने के लिए वीरसिंह और उसके साथियों को दुर्ग में भेज दिया जाता है। परंतु वीरसिंह को नकली युद्ध में भी अपनी मातृभूमि का अपमान देखना मंजूर न था। क्योंकि वीरसिंह की मातृभूमि बूँदी थी। वह मेवाड़ में इसलिए रहता था क्योंकि वह महाराणा लाखा की सेना नौकरी करता था।

 

उसने उस नकली युद्ध को भी असली युद्ध में बदल दिया। वीरसिंह ने अपनी मातृभूमि बूँदी के नकली दुर्ग को बचाने के लिए अपने साथियों के साथ प्रतिज्ञा ली कि प्राणों के होते हुए वे इस नकली दुर्ग पर मेवाड़ की राज्य पताका को स्थापित न होने देंगे और हाड़ा जाति के सैनिक प्राणपण से युद्ध लड़ने लगे थे और महाराणा के सिपाहियों पर भारी पड़ रहे थे। जिसके कारण महाराणा के सिपाही नकली किले पर अपना अधिकार जमाने में असमर्थ हो रहे थे। परंतु अंत में दुर्ग की रक्षा के लिए वीरसिंह ने प्राण की आहुति दे दी।

 

उस समय मेवाड़ के महाराणा लाखा चारणी से कहते हैं कि उन्हें वीर सिंह की मृत्यु के कारण अब पश्चाताप हो रहा है कि उनके झूठे दंभ के कारण उन्होंने न केवल मातृभूमि से प्यार करने वाले एक सच्चे वीर के साथ और न जाने कितने कितने निर्दोष वीरों की जान ले ली। क्या अब बूँदी के राव हेमू तथा हाड़ा-वंश का प्रत्येक राजपूत आज की इस दुर्घटना को भूल सकेगा?

 

ठीक उसी समय राव हेमू का प्रवेश होता है और वे कहते हैं कि बूँदी के हाड़ा सुख दुःख दोनों में ही मेवाड़ के साथ रहे थे और आगे भी रहेंगे। वीरसिंह के इस बलिदान ने सभी को मातृभूमि का मान रखना सिखाया है। एकांकी के अंत में सभी वीरसिंह के शव के आगे अपना सिर झुकाते हैं।