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ICSE Class 9 Saaransh Lekhan Kundaliyan (Sahitya Sagar)

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Kundaliyan Synopsis

सारांश

गिरिधर कविराय ने नीति, वैराग्य, अध्यात्म तथा जीवन के विविध प्रसंगों से संबंधित अपने भावों को कुंडलियों के माध्यम से प्रस्तुत किया है।

पहली और दूसरी कुंडली में कवि ने लाठी और कंबल के महत्त्व को दर्शाया है। कविराय कहते है कि लाठी और कंबल हमारे बड़े ही काम आते हैं। लाठी हमें संकट, नदी और कुत्तों से बचाती हैं वहीँ कंबल बहुत ही सस्ते दामों में मिलता है परन्तु वह हमारे ओढने, बिछाने आदि सभी कामों में आता है।

तीसरी कुंडली में कविराय कहते हैं कि गुण के हजारों ग्राहक होते हैं परंतु बिना गुण वाले को कोई नहीं पूछता। जिस प्रकार कौवा और कोयल रूप-रंग में समान होते हैं किन्तु दोनों की वाणी में ज़मीन-आसमान का फ़र्क है। कोयल की वाणी मधुर होने के कारण वह जनमानस में प्रिय है। वहीं दूसरी ओर कौवा अपनी कर्कश वाणी के कारण सभी को अप्रिय है।

चौथी कुंडली में गिरिधर कविराय ने समाज की रीति पर व्यंग्य किया है तथा स्वार्थी मित्र के संबंध में बताया है। कवि कहते हैं कि इस संसार में सभी मतलबी हैं। बिना स्वार्थ के कोई किसी से मित्रता नहीं करता है।

पाँचवी कुंडली में गिरिधर कविराय ने पेड़ के माध्यम से अनुभवी व्यक्ति की विशेषता बताई है।

छठी कुंडली में कविराय कहते हैं कि धन-दौलत बढ़ जाने पर हमें उसे भलाई के काम में लगा दिया जाना चाहिए।

अंतिम कुंडली में कविराय में कुछ नीतिगत बातों को बताया है जैसे राजा के दरबार में सही समय पर ही जाना चाहिए। ऐसी जगह नहीं बैठना चाहिए जहाँ से आपको कोई उठा दे, किसी के पूछने पर ही बताना चाहिए। बिना मतलब हँसना नहीं चाहिए और सभी काम ठीक समय पर ही करने चाहिए।

 

भावार्थ/ व्याख्या

लाठी में हैं गुण बहुत, सदा रखिये संग।

गहरि नदी, नाली जहाँ, तहाँ बचावै अंग।।

तहाँ बचावै अंग, झपटि कुत्ता कहँ मारे।

दुश्मन दावागीर होय, तिनहूँ को झारै।।

कह गिरिधर कविराय, सुनो हे दूर के बाठी।

सब हथियार छाँडि, हाथ महँ लीजै लाठी।।


भावार्थ- कवि गिरिधर कविराय ने उपर्युक्त कुंडली में लाठी के महत्त्व की ओर संकेत किया है। हमें हमेशा अपने पास लाठी रखनी चाहिए क्योंकि संकट के समय वह हमारी सहायता करती है। गहरी नदी और नाले को पार करते समय मददगार साबित होती है। यदि कोई कुत्ता हमारे ऊपर झपटे तो लाठी से हम अपना बचाव कर सकते हैं। जब दुश्मन अपना अधिकार दिखाकर हमें धमकाने की कोशिश करे तब लाठी के द्‌वारा हम अपना बचाव कर सकते हैं। अत: कवि पथिक को संकेत करते हुए कहते हैं कि हमें सभी हथियारों को त्यागकर सदैव अपने हाथ में लाठी रखनी चाहिए क्योंकि वह हर संकट से उबरने में हमारी मदद कर सकता है।


कमरी थोरे दाम की,बहुतै आवै काम।

खासा मलमल वाफ्ता, उनकर राखै मान॥

उनकर राखै मान, बँद जहँ आड़े आवै।

बकुचा बाँधे मोट, राति को झारि बिछावै॥

कह गिरिधर कविराय, मिलत है थोरे दमरी।

सब दिन राखै साथ, बड़ी मर्यादा कमरी॥


भावार्थ- उपर्युक्त कुंडली में गिरिधर कविराय ने कंबल के महत्त्व को प्रतिपादित करने का प्रयास किया है। कंबल बहुत ही सस्ते दामों में मिलता है परन्तु वह हमारे ओढने, बिछाने आदि सभी कामों में आता है। वहीं दूसरी तरफ मलमल की रज़ाई देखने में सुंदर और मुलायम होती है किन्तु यात्रा करते समय उसे साथ रखने में बड़ी परेशानी होती है। कंबल को किसी भी तरह बाँधकर उसकी छोटी-सी गठरी बनाकर अपने पास रख सकते हैं और ज़रूरत पड़ने पर रात में उसे बिछाकर सो सकते हैं। अत: कवि कहते हैं कि भले ही कंबल की कीमत कम है परन्तु उसे साथ रखने पर हम सुविधानुसार समय-समय पर उसका प्रयोग कर सकते हैं।


गुनके गाहक सहस नर, बिन गुन लहै न कोय ।

जैसे कागा-कोकिला, शब्द सुनै सब कोय।

शब्द सुनै सब कोय, कोकिला सबे सुहावन।

को इक रंग, काग सब भये अपावन॥

कह गिरिधर कविराय, सुनौ हो ठाकुर मन के।

बिन गुन लहै न कोय, सहस नर गाहक गुनके॥


भावार्थ- गिरिधर कविराय ने मनुष्य के आंतरिक गुणों की चर्चा की है। मनुष्य की पहचान उसके गुणों से ही होती है, गुणी व्यक्ति को हजारों लोग स्वीकार करने को तैयार रहते हैं लेकिन बिना गुणों के समाज में उसकी कोई मह्त्ता नहीं।
कौए और कोयल के उदाहरण द्वारा कवि कहते है कि जिस प्रकार कौवा और कोयल रूप-रंग में समान होते हैं किन्तु दोनों की वाणी में ज़मीन-आसमान का फ़र्क है। कोयल की वाणी मधुर होने के कारण वह सबको प्रिय है। वहीं दूसरी ओर कौवा अपनी कर्कश वाणी के कारण सभी को अप्रिय है। अत: कवि कहते हैं कि बिना गुणों के समाज में व्यक्ति का कोई नहीं। इसलिए हमें अच्छे गुणों को अपनाना चाहिए।


संसार में, मतलब का व्यवहार।

जब लग पैसा गाँठ में, तब लग ताको यार॥

तब लग ताको यार, यार संग ही संग डोले।

पैसा रहे न पास, यार मुख से नहिं बोले॥

कह गिरिधर कविराय जगत यहि लेखा भाई।

करत बेगरजी प्रीति, यार बिरला कोई साँई॥


भावार्थ- प्रस्तुत कुंडली में गिरिधर कविराय ने समाज की रीति पर व्यंग्य किया है तथा स्वार्थी मित्र के संबंध में बताया है। कवि कहते हैं कि इस संसार में सभी मतलबी हैं। बिना स्वार्थ के कोई किसी से मित्रता नहीं करता है। जब तक मित्र के पास धन-दौलत है तब तक सारे मित्र उसके आस-पास घूमते हैं। मित्र के पास जैसे ही धन समाप्त हो जाता है सब उससे मुँह मोड़ लेते हैं। संकट के समय भी उसका साथ नहीं देते हैं। अत: कवि कहते हैं कि संसार का यही नियम है कि बिना स्वार्थ के कोई किसी का सगा-संबंधी नहीं होता।


रहिए लटपट काटि दिन, बरु घामे माँ सोय।

छाँह न बाकी बैठिये, जो तरु पतरो होय॥

जो तरु पतरो होय, एक दिन धोखा देहैं।

जा दिन बहै बयारि, टूटि तब जर से जैहैं॥

कह गिरिधर कविराय छाँह मोटे की गहिए।

पाती सब झरि जायँ, तऊ छाया में रहिए॥


भावार्थ- उपर्युक्त कुंडली में गिरिधर कविराय ने अनुभवी व्यक्ति की विशेषता बताई है। कवि के अनुसार हमें हमें सदैव मोटे और पुराने पेड़ों की छाया में आराम करना चाहिए क्योंकि उसके पत्ते झड़ जाने के बावज़ूद भी वह हमें शीतल छाया प्रदान करते हैं। हमें पतले पेड़ की छाया में कभी नहीं बैठना चाहिए क्योंकि वह आँधी-तूफ़ान के आने पर टूट कर हमें नुकसान पहुँचा सकते हैं। अत: हमें अनुभवी व्यक्तियों की संगति में रहना चाहिए क्योंकि अनुभवहीन व्यक्ति हमें पतन की ओर ले जा सकता है।

पानी बाढ़ै नाव में, घर में बाढ़े दाम।

दोऊ हाथ उलीचिए, यही सयानो काम॥

यही सयानो काम, राम को सुमिरन कीजै।

पर-स्वारथ के काज, शीश आगे धर दीजै॥

कह गिरिधर कविराय, बड़ेन की याही बानी।

चलिए चाल सुचाल, राखिए अपना पानी॥



भावार्थ- प्रस्तुत कुंडली में गिरिधर कविराय ने परोपकार का महत्त्व बताया है। कवि कहते हैं कि जिस प्रकार नाव में पानी बढ़ जाने पर दोनों हाथों से पानी बाहर निकालने का प्रयास करते हैं अन्यथा नाव के डूब जाने का भय रहता है। उसी प्रकार घर में ज्यादा धन-दौलत आ जाने पर हमें उसे परोपकार में लगाना चाहिए। कवि के अनुसार अच्छे और परोपकारी व्यक्तियों की यही विशेषता है कि वे धन का उपयोग दूसरों की भलाई के लिए करते हैं और समाज में अपना मान- सम्मान बनाए रखते हैं।


राजा के दरबार में, जैये समया पाय।

साँई तहाँ न बैठिये, जहँ कोउ देय उठाय॥

जहँ कोउ देय उठाय, बोल अनबोले रहिए।

हँसिये नहीं हहाय, बात पूछे ते कहिए॥

कह गिरिधर कविराय समय सों कीजै काजा।

अति आतुर नहिं होय, बहुरि अनखैहैं राजा॥


भावार्थ- प्रस्तुत कुंडली में गिरिधर कविराय ने बताया है कि हमें अपने सामर्थ्य अनुसार ही आचरण करना चाहिए। कवि कहते हैं कि जिस प्रकार राजा के दरबार में हमें समय पर ही जाना चाहिए और ऐसी जगह नहीं बैठना चाहिए जहाँ से कोई हमें उठा दे। बिना पूछे किसी प्रश्न का जवाब नहीं देना चाहिए और बिना मतलब के हँसना भी नहीं चाहिए। हमें अपना हर कार्य समयानुसार ही करना चाहिए। जल्दीबाज़ी में ऐसा कोई कार्य नहीं करना चाहिए जिससे राजा नाराज़ हो जाएँ।

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