ICSE Class 9 Saaransh Lekhan Do Kalakaar (Sahitya Sagar)
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Do Kalakaar Synopsis
सारांश
‘दो कलाकार’ कहानी अत्यंत मर्मस्पर्शी कहानी है। इस कहानी द्वारा लेखिका ने यह समझाने का प्रयास किया है कि निर्धन और असहाय लोगों की मदद करनी चाहिए। इस कहानी द्वारा सच्चे कलाकार की परिभाषा को भी परिभाषित करने का प्रयास किया गया है। लेखिका के अनुसार सच्चा कलाकार वह होता है जो समाज के साथ सहानुभूति और सरोकार रखता हो। चित्रा जहाँ अनाथ बच्चों का चित्र बनाकर अपने कर्तव्य से इतिश्री कर लेती है। वहीँ अरुणा उन बच्चों को अपना कर सामाजिक आदर्श का अनुपम उदाहरण बनती है।
कहानी का सार इस प्रकार है-
चित्रा एक चित्रकार है और अरुणा उसकी अभिन्न मित्र दोनों पिछले छह वर्षों से हॉस्टल में साथ-साथ रहते हैं। चित्रा ने अभी-अभी कुछ समय पहले उसने एक चित्र पूरा किया था जिसे वह अपनी मित्र अरुणा को दिखाना चाहती थी इसलिए चित्रा ने अरुणा को नींद से जगा दिया। चित्रा ने अरुणा को जब चित्र दिखाया तो तो उसमें सड़क, आदमी, ट्राम, बस, मोटर, मकान सब एक-दूसरे पर चढ़ रहे थे। मानो सबकी खिचड़ी पकाकर रख दी गई हो। इसलिए अरुणा ने उस चित्र को घनचक्कर कहा। चित्रा ने उस चित्र को कन्फ्यूजन का प्रतीक कहा क्योंकि उस चित्र में सड़क, आदमी, ट्राम, बस, मोटर, मकान सब एक-दूसरे पर चढ़ रहे थे।
अभी ये दोनों बात ही कर रहे थे कि उनके कमरे के बाहर तीन-चार बच्चे अरुणा की प्रतीक्षा कर रहे थे। ये बच्चे अरुणा और चित्रा के छात्रावास के पास में बस्ती में रहने वाले चौकीदारों, चपरासियों और नौकरों के बच्चे हैं।
इन बच्चों को अरुणा पढ़ाती थी और इस समय वे अरुणा से पढ़ने के लिए ही आये हैं।
दूसरे दिन चित्रा चाय पर अरुणा का इंतजार कर रही होती है। इतने में अरुणा का आगमन होता है और चित्रा उसे बताती है कि उसके पिता का पत्र आया है, जिसमें आगे की पढ़ाई के लिए उसे विदेश जाने की अनुमति मिल गई है।
चित्रा चित्रकार होने के नाते केवल अपने चित्रों के बारे में ही सोचती रहती है। दुनिया में बड़ी-से-बड़ी घटना क्यों न घट जाय यदि चित्रा को उसमें चित्रकारी के लिए मॉडल नहीं मिलता तो उसके लिए वह घटना बेमानी होती है।
चित्रा दुनिया से कोई मतलब नहीं रखती थी। वह बस चौबीसों घंटे अपने रंग और तूलिकाओं में डूबी रहती थी। दुनिया में कितनी भी बड़ी घटना घट जाए, पर यदि उसमें चित्रा के चित्र के लिए कोई आइडिया नहीं तो वह उसके लिए कोई महत्त्व नहीं रखती थी। वह हर जगह, हर चीज में अपने चित्रों के लिए मॉडल ढूँढा करती थी। इसलिए अरुणा ने आवेश में आकर चित्रा को यह तक कह दिया किस काम की ऐसी कला जो आदमी को आदमी न रहने दें।
अरुणा के अनुसार चित्रा अमीर पिता की बेटी है उसके पास साधनों और पैसे की कोई कमी नहीं है अत: वह उन साधनों से किसी की जिंदगी सँवार सकती है।
चित्रा को चित्रकला के संबंध में विदेश जाना था इसलिए वह अपने गुरु से मिल कर घर लौट रही थी। घर लौटते समय उसने देखा कि पेड़ के नीचे एक भिखारिन मरी पड़ी थी और उसके दोनों बच्चे उसके सूखे हुए शरीर से चिपक कर बुरी तरह रो रहे थे। उस दृश्य को चित्रा अपने केनवास पर उतारने लग गई इसलिए उसे घर लौटने में देर हो गई।
इस तरह चित्रा विदेश पहुँच जाती है और तन-मन से अपने काम में जुट जाती है।
चित्रा ने भिखारिन और उसके शरीर से चिपके उसके बच्चों का चित्र बनाया था जिसे उसने ‘अनाथ’ शीर्षक दिया था। विदेश में उसका यही ‘अनाथ’ शीर्षक वाला चित्र अनेक प्रतियोगिताओं में प्रथम पुरस्कार प्राप्त कर चुका था।
तीन साल के बाद चित्रा भारत लौटती है। उसके पिता उसकी सफलता पर प्रसन्न थे। दिल्ली में उसके चित्रों की प्रदर्शनी का आयोजन किया गया था और उसे ही उद्घाटन के लिए बुलाया गया था। उसी प्रदर्शनी में चित्रा की भेंट अपनी अभिन्न मित्र अरुणा से एक बार फिर भेंट होती है। एक-दूसरे से मिलने के बाद चित्रा अरुणा के साथ में आये बच्चों के विषय में पूछती है तो अरुणा उसी भिखारिन वाले चित्र पर ऊँगली रखकर बताती है कि वे उसी भिखारिन के बच्चे हैं जिसके बारे में स्वयं उस दिन चित्रा ने उसे बताया था। अरुणा दोनों बच्चों को अपने घर ले आईं थीं और उन्हें गोद लेकर उनका पालन-पोषण करने लगी है। यह सुनकर चित्रा की आँखें विस्मय से फ़ैल जाती है।