ICSE Class 9 Saaransh Lekhan Chalna Humara Kaam (Sahitya Sagar)
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Chalna Humara Kaam Synopsis
सारांश
प्रस्तुत कविता में कवि कहता है कि उसके पैरों में प्रबल गति है तो वह क्यों विराम ले। रास्ते में तुमसे मुलाकात होने से कुछ रास्ता कट गया। अब अपना परिचय क्या दूँ, राही ही मेरा नाम है और चलना ही काम है। यहाँ पर कवि के कहने का भाव यह है कि रास्ते में आपको कई लोग मिलेंगे जिनके साथ चलने से आपका रास्ता कट जाता है।
कवि कहते हैं कि जीवन का सफर कभी पूर्ण नहीं होता पग-पग पर रोड़े अटकते रहते हैं सुख-दुःख के भाव से हम जीवन जीते रहते हैं क्योंकि सुख-दुःख आशा-निराशा चाहे जो भी हो हमें चलते रहना चाहिए। जीवन के इस रास्ते में कुछ साथ बीच में ही लौट पड़ते हैं तो कुछ छूट जाते हैं परंतु सफलता उसे ही मिलती है जो जीवन पथ पर चलते रहते हैं
मानव को विघ्न-बाधाओं पर विजय प्राप्त करते हुए निरन्तर आगे बढ़ते रहना चाहिए। गति ही जीवन है। जीवन में सफलता-असफलता, सुख-दुख आते रहते हैं। जीवन में हार-जीत, आशा-निराशा लगी रहती है। अत: सभी परिस्थितियों में आत्मविश्वास बनाए रखते हुए जीवन में गतिशीलता बनाए रखनी चाहिए।
भावार्थ/ व्याख्या
गति प्रबल पैरों में भरी
फिर क्यों रहूँ दर दर खडा
जब आज मेरे सामने
है रास्ता इतना पडा
जब तक न मंजिल पा सकूँ,
तब तक मुझे न विराम है,
चलना हमारा काम है।
कुछ कह लिया, कुछ सुन लिया
कुछ बोझ अपना बँट गया
अच्छा हुआ, तुम मिल गई
कुछ रास्ता ही कट गया
क्या राह में परिचय कहूँ,
राही हमारा नाम है,
चलना हमारा काम है।
भावार्थ- कवि कहते हैं कि जब तक जीवन में सफलता न मिल जाय तब तक रुकना नहीं चाहिए अर्थात् कर्म करते रहना चाहिए। कर्म करते समय हमें समस्याओं का सामना करना पड़ता है परन्तु हमें समस्याओं से घबराना नहीं चाहिए। अत: चलना हमारा काम है। इसलिए सदैव कर्म पथ पर चलते रहना चाहिए। हमें सुख-दुःख को भूलकर अपने मन को हल्का कर लेना चाहिए। हम सब जीवन पथ के पथिक हैं। रास्ते में अनेक साथी मिलते हैं और सभी का साथ लेकर हमें अपने लक्ष्य की और बढ़ना है।
जीवन अपूर्ण लिए हुए
पाता कभी खोता कभी
आशा निराशा से घिरा,
हँसता कभी रोता कभी
गति-मति न हो अवरूद्ध,
इसका ध्यान आठो याम है,
चलना हमारा काम है।
इस विशद विश्व-प्रहार में
किसको नहीं बहना पडा
सुख-दुख हमारी ही तरह,
किसको नहीं सहना पडा
फिर व्यर्थ क्यों कहता फिरूँ,
मुझ पर विधाता वाम है,
चलना हमारा काम है।
भावार्थ- कवि का मानना है कि मनुष्य जीवन में कुछ भी पूर्ण नहीं है। मनुष्य कभी पाता है तो कभी खोता है इसलिए सफलता मिलने पर मुस्कुरा उठता है तो असफल होने पर निराश भी हो जाता है। सब दिन एक समान नहीं होते हैं। कभी सुख मिलता है तो कभी दुःख। इसलिए कवि ईश्वर से प्रार्थना करता है कि उसकी गति न रूके और न ही कभी उसके विचारों
में बाधा आए। कवि का कहना है कि सभी के जीवन में सुख दुःख समान गति से आते जाते रहते हैं। सुख-दुःख जीवन के अनिवार्य अंग है। एक हम ही इस जीवन में अकेले नहीं है जिसके जीवन में सुख दुःख आते हैं इसलिए जीवन की कठिनाइयों को सहते हुए आगे बढे रहना चाहिए।
मैं पूर्णता की खोज में
दर-दर भटकता ही रहा
प्रत्येक पग पर कुछ न कुछ
रोडा अटकता ही रहा
निराशा क्यों मुझे?
जीवन इसी का नाम है,
चलना हमारा काम है।
साथ में चलते रहे
कुछ बीच ही से फिर गए
गति न जीवन की रूकी
जो गिर गए सो गिर गए
रहे हर दम,
उसी की सफलता अभिराम है,
चलना हमारा काम है।
भावार्थ- कवि कहता है कि इस जीवन में कुछ भी पूर्ण नहीं है। इस पूर्णता को पाने के लिए मनुष्य को राह के अनेक रोड़ों को पार करना पड़ता है। ऐसे में निराश होने से क्या लाभ क्योंकि जीवन इसी का नाम है। मार्ग में कुछ साथी ऐसे मिले जिन्होंने साथ दिया तो कुछ ऐसे भी मिले जिन्होंने बीच में ही साथ छोड़ दिया। इस तरह जीवन में अनेक साथी मिलते हैं लक्ष्य प्राप्ति के लिए उन पर निर्भर नहीं रहा जा सकता। जीवन में सफलता का सुख वाही प्राप्त कर सकता है जो निरंतर कर्म पथ पर चलता रहा।