Maharashtra Class 10 Answered
निम्न आधार पर अपने दिए गए विषय को लिखने का प्रयास करें-
यदि लोकतन्त्र नहीं होता
व्यक्ति की सभ्यता के साथ ही राज्य का जन्म हो गया था। व्यक्ति की प्रथम आवश्यकता उसकी सुरक्षा एवं उसके मूलभूत मानवीय अधिकार हैं। इसके लिए ही व्यक्ति ने राज्य जैसी संस्था को जन्म दिया होगा। राज्य के शासन का स्वरूप आदिकाल से ही परिवर्तित होता आया हैं। कभी यह साम्यवादी स्वरूप रहा तो कभी राजतन्त्र, गणतन्त्र, अधिनायकत्व, तानाशाही आदि विभिन्न स्वरूपों में सामने आता रहा हैं। लेकिन राज्य के शासन का लोकतन्त्र स्वरूप वर्तमान में स्वस्वीकार्य हैं। शासन के हर स्वरूप की अपनी कमजोरियाँ एवं अच्छाइयाँ होती हैं। पर यदि हम कल्पना करें कि लोकतन्त्र न होता तो लोकतन्त्र व्यक्ति की व्यक्तिगत स्वतन्त्र को महत्त्व देता हैं। व्यक्ति की स्वतन्त्रता लिए लोकतन्त्र से बेहतर कोई शासन नहीं हो सकता हैं लोककल्याणकारी राज्य की अवधारणा केवल लोकतन्त्र में ही संभव हैं। अन्य किसी शासनतन्त्र का आधार लोककल्याण नहीं हो सकता। व्यक्ति के मूल अधिकारों का संरक्षण केवल लोकतन्त्र में ही संभव हैं। यह समानता, स्वतन्त्रता और सामाजिक आर्थिक न्याय की स्थापना के लिए आवश्यक हैं कमजोर और निम्न वर्ग को संरक्षण केवल लोकतन्त्र में ही संभव हैं। अवसर की समता और आर्थिक न्याय की स्थापना लोकतन्त्र के बिना संभव नहीं थी। शासन की शक्तियों का विकेन्द्रीकरण लोकतन्त्र में ही संभव हैं।शक्ति पृथ्थकरण का सिद्धान्त जिसमें कार्यपालिका, व्यवस्थापिका एवं न्यायपालिका में शक्तियों का विभाजन लोकतन्त्र में ही संभव हैं इस प्रकार यदि लोकतन्त्र न होता तो हम इन सभी संवैधानिक और मानवीय मूल्यों से वंचित होना पड़ता।
आतंकवाद की ओर बढ़ते कदम
आतंकवाद एक हिंसात्मक कुकृत्य है जिसको अंजाम देने वाले समूह को आतंकवादी कहते हैं। वो बहुत साधारण लोग होते हैं और दूसरों के द्वारा उनके साथ घटित हुये कुछ गलत घटनाओं और या कुछ प्राकृतिक आपदाओं के कारण वो किसी तरह अपने दिमाग पर से अपना नियंत्रण खो देते हैं जो उनकी इच्छाओं को सामान्य या स्वीकृत तरीके से पूरा करने के में अक्षम बना देता है। धीरे-धीरे वो समाज के कुछ बुरे लोगों के प्रभाव में आ जाते हैं जहाँ उनकी सभी इच्छाओं को पूरा करने का वादा किया जाता है। वो सभी एक साथ मिलते हैं और एक आतंकवादी समूह बनाते हैं जो कि अपने ही राष्ट्र, समाज और समुदाय से लड़ता है। आतंकवाद, देश के सभी युवाओं के विकास और वृद्धि को प्रभावित करता है।
ये राष्ट्र को उचित विकास से कई वर्ष पीछे ढकेल देता है। आतंकवाद देश पर अंग्रेजों की तरह राज कर रहा है, जिससे हमें फिर से आजाद होने की जरुरत है। हालाँकि, ऐसा प्रतीत होता है कि आतंकवाद हमेशा अपने जड़ को गहराई से फैलाता रहेगा क्योंकि अपने अनैतिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिये राष्ट्र के कुछ अमीर लोग अभी-भी इसको समर्थन दे रहें हैं।
आतंकवाद के उत्पन्न होने के मूल कारण हैं गरीबी, बेरोजगारी, भुखमरी, और धार्मिक उन्माद। आतंकवाद की गतिविधियों को सबसे अधिक प्रोत्साहन धार्मिक कट्टरता से मिलता है। लोग धर्मों के नाम पर एक-दूसरे का गला काटने से भी पीछे नहीं हटते हैं। धर्म के विपक्षी लोग धर्म मानने वाले लोगो को सहन नहीं कर पाते हैं।
दुनियाभर में आतंकवाद एक प्रमुख राष्ट्रीय और विश्वव्यापी मुद्दे में बदल गया है। यह एक ऐसा विश्वव्यापी मुद्दा है जिसने दुनिया भर में हर एक देश को सीधे या अप्रत्यक्ष तरीके से प्रभावित किया है। कई देशों द्वारा आतंकवाद का विरोध करने का प्रयास किया गया है और इस रोकने के अब सारे राष्ट्र अपनी-अपनी तरफ से समुचित कदम उठा रहे हैं।
निम्न आधार पर अपने दिए गए विषय को लिखने का प्रयास करें
यदि लोकतन्त्र नहीं होता।
व्यक्ति की सभ्यता के साथ ही राज्य का जन्म हो गया था। व्यक्ति की प्रथम आवश्यकता उसकी सुरक्षा एवं उसके मूलभूत मानवीय अधिकार हैं। इसके लिए ही व्यक्ति ने राज्य जैसी संस्था को जन्म दिया होगा। राज्य के शासन का स्वरूप आदिकाल से ही परिवर्तित होता आया हैं। कभी यह साम्यवादी स्वरूप रहा तो कभी राजतन्त्र, गणतन्त्र, अधिनायकत्व, तानाशाही आदि विभिन्न स्वरूपों में सामने आता रहा हैं। लेकिन राज्य के शासन का लोकतन्त्र स्वरूप वर्तमान में स्वस्वीकार्य हैं।
शासन के हर स्वरूप की अपनी कमजोरियाँ एवं अच्छाइयाँ होती हैं। पर यदि हम कल्पना करें कि लोकतन्त्र न होता तो-
लोकतन्त्र व्यक्ति की व्यक्तिगत स्वतन्त्र को महत्त्व देता हैं। व्यक्ति की स्वतन्त्रता लिए लोकतन्त्र से बेहतर कोई शासन नहीं हो सकता हैं।
लोककल्याणकारी राज्य की अवधारणा केवल लोकतन्त्र में ही संभव हैं। अन्य किसी शासनतन्त्र का आधार लोककल्याण नहीं हो सकता।
व्यक्ति के मूल अधिकारों का संरक्षण केवल लोकतन्त्र में ही संभव हैं। यह समानता, स्वतन्त्रता और सामाजिक आर्थिक न्याय की स्थापना के लिए आवश्यक हैं।
कमजोर और निम्न वर्ग को संरक्षण केवल लोकतन्त्र में ही संभव हैं।
अवसर की समता और आर्थिक न्याय की स्थापना लोकतन्त्र के बिना संभव नहीं थी।
शासन की शक्तियों का विकेन्द्रीकरण लोकतन्त्र में ही संभव हैं।
शक्ति पृथ्थकरण का सिद्धान्त जिसमें कार्यपालिका, व्यवस्थापिका एवं न्यायपालिका में शक्तियों का विभाजन लोकतन्त्र में ही संभव हैं।
इस प्रकार यदि लोकतन्त्र न होता तो हम इन सभी संवैधानिक और मानवीय मूल्यों से वंचित होना पड़ता।
आतंकवाद की ओर बढ़ते कदम
आतंकवाद एक हिंसात्मक कुकृत्य है जिसको अंजाम देने वाले समूह को आतंकवादी कहते हैं। वो बहुत साधारण लोग होते हैं और दूसरों के द्वारा उनके साथ घटित हुये कुछ गलत घटनाओं और या कुछ प्राकृतिक आपदाओं के कारण वो किसी तरह अपने दिमाग पर से अपना नियंत्रण खो देते हैं जो उनकी इच्छाओं को सामान्य या स्वीकृत तरीके से पूरा करने के में अक्षम बना देता है। धीरे-धीरे वो समाज के कुछ बुरे लोगों के प्रभाव में आ जाते हैं जहाँ उनकी सभी इच्छाओं को पूरा करने का वादा किया जाता है। वो सभी एक साथ मिलते हैं और एक आतंकवादी समूह बनाते हैं जो कि अपने ही राष्ट्र, समाज और समुदाय से लड़ता है। आतंकवाद, देश के सभी युवाओं के विकास और वृद्धि को प्रभावित करता है।
ये राष्ट्र को उचित विकास से कई वर्ष पीछे ढकेल देता है। आतंकवाद देश पर अंग्रेजों की तरह राज कर रहा है, जिससे हमें फिर से आजाद होने की जरुरत है। हालाँकि, ऐसा प्रतीत होता है कि आतंकवाद हमेशा अपने जड़ को गहराई से फैलाता रहेगा क्योंकि अपने अनैतिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिये राष्ट्र के कुछ अमीर लोग अभी-भी इसको समर्थन दे रहें हैं।
आतंकवाद के उत्पन्न होने के मूल कारण हैं गरीबी, बेरोजगारी, भुखमरी, और धार्मिक उन्माद। आतंकवाद की गतिविधियों को सबसे अधिक प्रोत्साहन धार्मिक कट्टरता से मिलता है। लोग धर्मों के नाम पर एक-दूसरे का गला काटने से भी पीछे नहीं हटते हैं। धर्म के विपक्षी लोग धर्म मानने वाले लोगो को सहन नहीं कर पाते हैं।
दुनियाभर में आतंकवाद एक प्रमुख राष्ट्रीय और विश्वव्यापी मुद्दे में बदल गया है। यह एक ऐसा विश्वव्यापी मुद्दा है जिसने दुनिया भर में हर एक देश को सीधे या अप्रत्यक्ष तरीके से प्रभावित किया है। कई देशों द्वारा आतंकवाद का विरोध करने का प्रयास किया गया है और इस रोकने के अब सारे राष्ट्र अपनी-अपनी तरफ से समुचित कदम उठा रहे हैं।
निम्न आधार पर अपने दिए गए विषय को लिखने का प्रयास करें
यदि लोकतन्त्र नहीं होता।
व्यक्ति की सभ्यता के साथ ही राज्य का जन्म हो गया था। व्यक्ति की प्रथम आवश्यकता उसकी सुरक्षा एवं उसके मूलभूत मानवीय अधिकार हैं। इसके लिए ही व्यक्ति ने राज्य जैसी संस्था को जन्म दिया होगा। राज्य के शासन का स्वरूप आदिकाल से ही परिवर्तित होता आया हैं। कभी यह साम्यवादी स्वरूप रहा तो कभी राजतन्त्र, गणतन्त्र, अधिनायकत्व, तानाशाही आदि विभिन्न स्वरूपों में सामने आता रहा हैं। लेकिन राज्य के शासन का लोकतन्त्र स्वरूप वर्तमान में स्वस्वीकार्य हैं।
शासन के हर स्वरूप की अपनी कमजोरियाँ एवं अच्छाइयाँ होती हैं। पर यदि हम कल्पना करें कि लोकतन्त्र न होता तो-
लोकतन्त्र व्यक्ति की व्यक्तिगत स्वतन्त्र को महत्त्व देता हैं। व्यक्ति की स्वतन्त्रता लिए लोकतन्त्र से बेहतर कोई शासन नहीं हो सकता हैं।
लोककल्याणकारी राज्य की अवधारणा केवल लोकतन्त्र में ही संभव हैं। अन्य किसी शासनतन्त्र का आधार लोककल्याण नहीं हो सकता।
व्यक्ति के मूल अधिकारों का संरक्षण केवल लोकतन्त्र में ही संभव हैं। यह समानता, स्वतन्त्रता और सामाजिक आर्थिक न्याय की स्थापना के लिए आवश्यक हैं।
कमजोर और निम्न वर्ग को संरक्षण केवल लोकतन्त्र में ही संभव हैं।
अवसर की समता और आर्थिक न्याय की स्थापना लोकतन्त्र के बिना संभव नहीं थी।
शासन की शक्तियों का विकेन्द्रीकरण लोकतन्त्र में ही संभव हैं।
शक्ति पृथ्थकरण का सिद्धान्त जिसमें कार्यपालिका, व्यवस्थापिका एवं न्यायपालिका में शक्तियों का विभाजन लोकतन्त्र में ही संभव हैं।
इस प्रकार यदि लोकतन्त्र न होता तो हम इन सभी संवैधानिक और मानवीय मूल्यों से वंचित होना पड़ता।
आतंकवाद की ओर बढ़ते कदम
आतंकवाद एक हिंसात्मक कुकृत्य है जिसको अंजाम देने वाले समूह को आतंकवादी कहते हैं। वो बहुत साधारण लोग होते हैं और दूसरों के द्वारा उनके साथ घटित हुये कुछ गलत घटनाओं और या कुछ प्राकृतिक आपदाओं के कारण वो किसी तरह अपने दिमाग पर से अपना नियंत्रण खो देते हैं जो उनकी इच्छाओं को सामान्य या स्वीकृत तरीके से पूरा करने के में अक्षम बना देता है। धीरे-धीरे वो समाज के कुछ बुरे लोगों के प्रभाव में आ जाते हैं जहाँ उनकी सभी इच्छाओं को पूरा करने का वादा किया जाता है। वो सभी एक साथ मिलते हैं और एक आतंकवादी समूह बनाते हैं जो कि अपने ही राष्ट्र, समाज और समुदाय से लड़ता है। आतंकवाद, देश के सभी युवाओं के विकास और वृद्धि को प्रभावित करता है।
ये राष्ट्र को उचित विकास से कई वर्ष पीछे ढकेल देता है। आतंकवाद देश पर अंग्रेजों की तरह राज कर रहा है, जिससे हमें फिर से आजाद होने की जरुरत है। हालाँकि, ऐसा प्रतीत होता है कि आतंकवाद हमेशा अपने जड़ को गहराई से फैलाता रहेगा क्योंकि अपने अनैतिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिये राष्ट्र के कुछ अमीर लोग अभी-भी इसको समर्थन दे रहें हैं।
आतंकवाद के उत्पन्न होने के मूल कारण हैं गरीबी, बेरोजगारी, भुखमरी, और धार्मिक उन्माद। आतंकवाद की गतिविधियों को सबसे अधिक प्रोत्साहन धार्मिक कट्टरता से मिलता है। लोग धर्मों के नाम पर एक-दूसरे का गला काटने से भी पीछे नहीं हटते हैं। धर्म के विपक्षी लोग धर्म मानने वाले लोगो को सहन नहीं कर पाते हैं।
दुनियाभर में आतंकवाद एक प्रमुख राष्ट्रीय और विश्वव्यापी मुद्दे में बदल गया है। यह एक ऐसा विश्वव्यापी मुद्दा है जिसने दुनिया भर में हर एक देश को सीधे या अप्रत्यक्ष तरीके से प्रभावित किया है। कई देशों द्वारा आतंकवाद का विरोध करने का प्रयास किया गया है और इस रोकने के अब सारे राष्ट्र अपनी-अपनी तरफ से समुचित कदम उठा रहे हैं।