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CBSE Class 8 Saaransh Lekhan Kabir Ki Sakhiyan

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Kabir Ki Sakhiyan Synopsis

सारांश

इन दोहों में कबीर मानवीय प्रवृत्तियों को प्रस्तुत करते हैं। 

पहले दोहे में कवि कहते हैं कि मनुष्य की जाति उसके गुणों से बड़ी नहीं होती है। दूसरे में कहते हैं कि अपशब्द के बदले अपशब्द कहना कीचड़ में हाथ डालने जैसा है।
तीसरे दोहे में कवि अपने चंचल मन व्यंग कर रहें हैं कि माला और जीभ प्रभु के नाम जपते हैं पर मन अपनी चंचलता का त्याग नहीं करता।
चौथे में कहते हैं कि किसी को कमजोर समझकर दबाना नहीं चाहिए क्योंकि कभी-कभी यही हमारे लिए कष्टकारी हो जाता है। जैसे हाथी और चींटी। एक छोटी सी चींटी हाथी को भी बहुत परेशान कर सकती है।
पाँचवे दोहे का भाव यह हैं कि मनुष्य अपनी मानसिक कमजोरियों को दूर करके संसार को खुशहाल और दयावान बना सकता है।
भावार्थ
1. जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान।
मेल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।
नए शब्द/कठिन शब्द
साधु- साधू या सज्जन
ज्ञान- जानकारी
मेल- खरीदना
तरवार- तलवार
रहन- रहने
म्यान- जिसमे तलवार रखीं जाती है
भावार्थ- इसमें कबीरदास जी कहते हैं कि हमें सज्जन पुरुष से उसकी जाति नहीं पूछनी चाहिए अपितु उसका ज्ञान देखना चाहिए अर्थात मनुष्य को उसकी जाति के आधार पर नहीं उसके ज्ञान के आधार पर परखना चाहिए क्योंकि जब हम तलवार खरीदने जाते हैं तो उसकी कीमत म्यान देखकर नहीं लगाते हैं।


2. आवत गारी एक है, उलटत होइ अनेक।
कह कबीर नहिं उलटिए, वही एक की एक।
नए शब्द/कठिन शब्द
आवत- आते हुए
गारी- गाली
उलटत- पलटकर
होइ- होती
अनेक- बहुत सारी
भावार्थ- इसमें कबीरदास जी कहते हैं कि जब हमें कोई गाली देता है तब वह एक होती है पर हम पलटकर उसे भी देते हैं तो वो बढ़ते-बढ़ते अनेक हो जाती है इसलिय जब हम उसकी एक गाली पर ही ध्यान नहीं देंगे तो वह वहीं खत्म हो जाएगी अर्थात् वो एक की एक ही रह जायेगी।


3. माला तो कर में फिरै, जीभि फिरै मुख माँहि।
मनुवाँ तो दहुँ दिसि फिरै, यह तौ सुमिरन नाहिं।
नए शब्द/कठिन शब्द
माला तो कर- हाथ
फिरै- घूमना
जीभि- जीभ
मुख- मुँह
माँहि- में
मनुवाँ- मन
दहुँ- दसों
दिसि- दिशा
तौ तो
सुमिरन- स्मरण
भावार्थ- इसमें कबीरदास जी कहते हैं कि माला को हाथ में लेकर मनुष्य मन को को घुमाता है जीभ मुख के अंदर घूमती रहती है। परन्तु मनुष्य का चंचल मन सभी दिशाओं में घूमता रहता है। मानव मन गतिशील होता है जो बिना विचारे इधर-उधर घूमता रहता है परन्तु ये भगवान् का नाम क्यों नहीं लेता।


4. कबीर घास न नींदिए, जो पाऊँ तलि होइ।
उड़ि पड़ै जब आँखि मैं, खरी दुहेली होइ।
नए शब्द/कठिन शब्द
नींदिए- निंदा करना
पाऊँ- पाँव
तलि- नीचे
आँखि- आँख
खरी- कठिन
दुहेली- दुःख देने वाली
भावार्थ- इसमें कबीरदास जी कहते हैं कि हमें कभी घास को छोटा समझकर उसे दबाना नहीं चाहिए क्योंकि जब घास का एक छोटा सा तिनका भी आँख में गिर जाता है तो वह बहुत दुख देता है अर्थात हमें छोटा समझकर किसी पर अत्याचार नहीं करना चाहिए।


5. जग में बैरी कोइ नहीं, जो मन सीतल होय।
या आपा को डारि दे, दया करै सब कोय।
नए शब्द/कठिन शब्द
जग- संसार
बैरी- शत्रु
सीतल- शांति
आपा- स्वार्थ
भावार्थ- इसमें कबीरदास जी कहते हैं कि मनुष्य का मन अगर शांत है तो संसार में कोई शत्रु नहीं हो सकता। यदि सभी मनुष्य स्वार्थ का त्याग कर दें तो सभी दयावान बन सकते हैं। अर्थात मनुष्य को अपनी कमजोरियों को दूर करके संसार में प्रेम और दया फैलाना चाहिए।