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CBSE Class 7 Saaransh Lekhan कंचा (Kancha)

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Kancha Synopsis

सारांश


लेखक ने कंचा कहानी में बच्चों की कल्पना को बहुत अच्छे ढ़ंग से उतारा है। बच्चों को जीवन की वास्तविकता से कोई सरोकार नहीं होता। वह अपनी दुनिया में रहते हैं। लेखक इस कहानी के माध्यम से उनके बालमन को दिखाने में सफल हुए हैं।
कहानी का सार कुछ इस प्रकार है-
कहानी में अप्पू नाम का बालक है जिसे कंचों से बहुत अधिक प्यार होता है।
अप्पू बस्ता लटकाए सियार और कौए की कहानी याद करते-करते विद्यालय जा रहा होता है।
चलते-चलते वह एक दुकान के सामने पहुँचता है तो वहाँ एक जार में रखे हरी लकीर वाले सफेद कंचे, आँवले जैसे कंचे उसे अपनी और आकर्षित कर लेते हैं। वह कंचों की दुनिया में खो जाता है। उसे लगता है जिसे जार आसमान से भी बड़ा हो गया है। वह उसके अंदर चला जाता है। वहाँ पर कोई दूसरा बच्चा न होने के बावजूद उसे मजा आ रहा था। वैसे भी जब से उसकी छोटी बहन की मृत्यु हुई थी उसे अकेले खेलने की आदत से हो गई थी। वह कंचों से खेल ही रहा था कि तो दुकानदार की डाँट से उसकी तन्द्रा भंग हुई। दुकानदार ने उसे पूछा कि क्या उसे कंचे चाहिए पर अप्पू ने ना में सिर हिला दिया।

उसी समय घंटी बजने की आवाज आई और अप्पू अपने विद्यालय की और दौड़ पड़ा। विद्यालय में देर से पहुँचने वाले बच्चों को पीछे बैठना पड़ता था इसलिए आज अप्पू भी पीछे बैठा। अप्पू ने देखा सभी अपने जगह बैठे हुए थे। अप्पू अपने मित्र जॉर्ज को खोजने लगा क्योंकि कंचों का सबसे अच्छा खिलाड़ी था। अप्पू को याद आता है कि जॉर्ज को तो बुखार है। अप्पू का ध्यान कक्षा में नहीं था। मास्टरजी के आते ही उसने हड़बड़ी में पुस्तक खोल दी। मास्टरजी रेलगाड़ी के बारे में पढ़ा रहे थे। परन्तु अप्पू का ध्यान पढ़ाई की बजाय कंचों पर ही लगा हुआ था। मास्टरजी को पता चल गया कि अप्पू का ध्यान पढ़ाई में नहीं है इसलिए जब उन्होंने उससे सवाल पूछा तो अप्पू जवाब नहीं दे पाया। मास्टरजी ने सजा के रूप में उसे बेंच पर खड़ा कर दिया। सभी बच्चे अप्पू की हँसी उड़ाने लगे। बेंच पर खड़ा होकर भी अप्पू कंचों के बारे में और जॉर्ज के बारे में ही सोच रहा था कि जब जॉर्ज आएगा तो वह उसके साथ खेलेगा और दुकान में भी उसे ले जाएगा।

मास्टरजी अपनी क्लास समाप्त करके बच्चों को फीस भरने के लिए कहकर चले गए। बच्चे भी अपनी फीस भरने के लिए क्लर्क के पास चले गए। अप्पू भी फीस भरने के लिए पहुँचा परन्तु वह अभी भी कंचों के बारे में सोच रहा था। सभी बच्चे फीस भर कर अपनी कक्षा में पहुँच गए।
शाम को अप्पू इधर-उधर घूमता रहा। मोड़ पर उसी दुकान पर पहुँचकर शीशे के जार में रखे कंचों को देखने लगा। उसने अपने फीस के एक रूपया पचास पैसे से कंचे खरीद लिए। अप्पू अब इन कंचों को लेकर घर लौट रहा था तब उसने जैसे ही कंचों को देखने के लिए कागज पुड़िया को खोला वैसे ही सारे कंचे रास्ते पर बिखर गए। अप्पू का सारा ध्यान अब अपने बिखरे हुए कंचों को समेटने में लग गया। कंचों को समेटने के लिए वह अपने बस्ते से किताबें बाहर निकाल कर उसमें कंचें भरने लगा। तभी वहाँ पर एक गाड़ी आकर रुकती है। ड्राइवर को अप्पू पर बड़ा गुस्सा आता है पर अप्पू को को मुस्कुराता देखकर उसका गुस्सा गायब हो जाता है और वह चुपचाप निकल जाता है। अप्पू घर पहुँचकर कंचे अपनी माँ को दिखाता है। इतने सारे कंचे देखकेर माँ भी हैरान हो जाती है। अप्पू माँ को बताता है कि फीस के पैसे से उसने सारे कंचे खरीदे हैं। माँ उससे पूछती है वह खेलेगा किसके साथ और अपनी छोटी बेटी की याद में उसकी पलकें भीग उठती है। अप्पू अपने माँ के रोने की बात नहीं समझ पाता। अप्पू अपनी माँ से पूछता है कि उन्हें कंचे अच्छे नहीं लगे। माँ भी अप्पू की भावना को समझ जाती है और हँसकर अप्पू से कहती है कंचे बहुत ही अच्छे हैं।

 

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