CBSE Class 7 Saaransh Lekhan Daadi Maa
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Daadi Maa Synopsis
सारांश
प्रस्तुत कहानी में लेखक अपनी दादी की मृत्यु के बाद, उनके साथ बिताए हुए समय को याद करते हैं। लेखक अपने बचपन के उन दिनों को याद करते हैं जब उनके गाँव में बरसात का पानी बहकर अपने साथ मोठा, साई, अधगली घास, घेउर, बनप्याज की जड़ें और विविध प्रकार के बरसाती घासों के बीजों को ले आता था। रास्तों में कीचड़ सूख जाता था। इससे गाँव के लड़के किनारों पर भरे जलाशयों में धमाके से कूदते थे। लेखक ऐसे ही जलाशय में दो-एक दिन भी नहीं कूद पाए थे कि बीमार पड़ गए। दिनभर चादर लपेटे सोये रहे। लेखक की दादी बड़ी चिंतित हो जाती है और दिनभर लेखक की चारपाई के पास बैठकर पंखा झलती, सर पर दालचीनी रखती, बीसों पर सिर पर हाथ फेरती रहती।
लेखक की दादी को गाँव की पचासों किस्म की दवाओं के नाम याद थे। लेखक के गाँव में कोई भी बीमार होता तो दादी उसके पास पहुँच जाती और उसकी देखभाल करती। उन्हें भूत से लेकर मलेरिया, सरनाम, निमोनिया तक का ज्ञान था।
लेखक के पास आज आधुनिक सुख-सुविधाएँ हैं लेकिन उसमें दादी जैसा स्नेह है। किशन भैया की शादी में दादी के खुशी का ठिकाना ही नहीं था। सारा कामकाज उन्हीं की देख-रेख में हुआ।
लेखक ने एक दिन देखा कि उनकी दादी रामू की चाची पर बिगड़ रही थी कि उसने अभी तक फसल कट चुकने पर भी दादी के पैसे क्यों नहीं चुकाए। इधर बिटिया की शादी के कारण वह अपना उधार चुकाने में असमर्थ थी। कई दिन बाद लेखक ने इसी रामू की चाची को देखा तो बहुत खुश नजर आ रही थी कारण जानने पर पता चला कि दादी ने न केवल उसका उधार माफ़ कर दिया बल्कि उसे 10 रुपए भी दिए।
किशन भैया की शादी की याद करते हुए लेखक कहते हैं कि विवाह के पहले चार-पाँच रोज पहले औरतें रात-भर गीत गाती है। विवाह की रात को अभिनय भी होता है। जिसमें विवाह से लेकर पुत्र-उत्पत्ति के सारे प्रसंग का अभिनय किया जाता है। सारे पात्र औरतें की करती है। लेखक बीमार होने के कारण पास में ही चारपाई पर सुला दिया गया था। इस पर सबने ऐतराज किया तब दादी ने आकर बीच–बचाव किया था।
दादा की मृत्यु के बाद दादी उदास रहने लगी। संसार उन्हें धोखे से भरा मालूम पड़ रहा था। दादाजी के श्राद्ध में दादी माँ के मना करने के बावजूद लेखक के पिता ने बहुत अधिक खर्च कर दिया जिसके कारण परिवार पर कर्ज हो गया। दादी ने ऐसे बुरे समय में भी अपने परिवार की निशानी सोने के कंगन पिताजी को कर्ज चुकाने के लिए दिए। उस समय लेखक को उनकी दादी कोई शापभ्रष्ट देवी-सी लगी।
दादी को याद करते-करते लेखक अपने वर्तमान में लौट आते हैं और किशन भैया का पत्र अब भी उनके हाथ में हैं और उन्हें अब भी विश्वास नहीं होता कि सचमुच उनकी दादी नहीं रही।