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CBSE Class 7 Saaransh Lekhan Bhor Aur Barkha

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Bhor Aur Barkha Synopsis

सारांश


भोर और बरखा’ मीरा बाई द्वारा रचित है। इसमें दो पद हैं। पहले पद में मीराबाई ने ब्रज की भोर का सुंदर वर्णन किया है। दूसरे पद में सावन ऋतु का वर्णन है।

पहले पद में माता यशोदा श्रीकृष्ण को संबोधित करते हुए 'बंसीवारे ललना', 'मोरे प्यार', 'लाल जी', उपर्युक्त कथन कहते हुए अपने पुत्र श्रीकृष्ण को जगाने का प्रयास कर रही हैं।
माता यशोदा श्रीकृष्ण को जगाने के अपने प्रयास में कृष्ण से निम्न बातें कहती हैं कि रात बीत चुकी है, सभी के दरवाजें खुल चुके हैं, देखो गोपियाँ दही बिलो कर तुम्हारा मनपसंद माखन निकाल रही है, द्वार पर देव और मानव सभी तुम्हारे दर्शन की प्रतीक्षा में खड़े हैं, तुम्हारे मित्रगण भी तुम्हारी जय-जयकार कर रहें हैं, सभी अपने हाथ में माखन रोटी लेकर गाएँ चराने के लिए तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहें हैं। अत: तुम जल्दी उठ जाओ।

दूसरे पद में सावन का बड़ा ही मनोहारी वर्णन किया गया है। सावन के महीने में मनभावन वर्षा हो रही है। बादल उमड़-घुमड़कर कर चारों दिशाओं में फैल जाते हैं। बिजली चमकने लगती हैं। वर्षा की झड़ी लग जाती है। वर्षा की नन्हीं-नन्हीं बूंदें गिरने लगती हैं पवन भी शीतल और सुहावनी हो जाती है। सावन का महीना मीरा को श्रीकृष्ण की भनक अर्थात् श्रीकृष्ण के आने का अहसास कराता है।

भावार्थ

जागो बंसीवारे ललना!
जागो मोरे प्यारे!
रजनी बीती, भोर भयो है, घर-घर खुले किंवारे।
गोपी दही मथत, सुनियत हैं कंगना के झनकारे।।
उठो लालजी! भोर भयो है, सुर-नर ठाढ़े द्वारे।
ग्वाल-बाल सब करत कुलाहल, जय-जय सबद उचारै।।
माखन-रोटी हाथ मँह लीनी, गउवन के रखवारे।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर, सरण आयाँ को तारै।।
भावार्थ- मीरा बाई के इस पद में वो यशोदा माँ द्वारा कान्हा जी को सुबह जगाने के दृश्य का वर्णन कर रही हैं।
यशोदा माता कान्हा जी से कहती हैं कि ‘उठो कान्हा! रात ख़त्म हो गयी है और सभी लोगों के घरों के दरवाजे खुल गए हैं। ज़रा देखो, सभी गोपियाँ दही को मथकर तुम्हारा मनपसंद मक्खन निकाल रही हैं। हमारे दरवाज़े पर देवता और सभी मनुष्य तुम्हारे दर्शन करने के लिए इंतज़ार कर रहे हैं। तुम्हारे सभी ग्वाल-मित्र हाथ में माखन-रोटी लिए द्वार पर खड़े हैं और तुम्हारी जय-जयकार कर रहे हैं। वो सब गाय चराने जाने के लिए तुम्हारा इंतज़ार कर रहे हैं। इसलिए उठ जाओ कान्हा!


बरसे बदरिया सावन की।
सावन की, मन-भावन की।।
सावन में उमग्यो मेरो मनवा, भनक सुनी हरि आवन की।
उमड़-घुमड़ चहुँदिस से आया, दामिन दमकै झर लावन की।।
नन्हीं-नन्हीं बूँदन मेहा बरसे, शीतल पवन सुहावन की।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर! आनंद-मंगल गावन की।।

भावार्थ- अपने दूसरे पद में मीराबाई सावन का बड़ा ही मनमोहक चित्रण कर रही हैं। पद में उन्होंने बताया है कि सावन के महीने में मनमोहक बरसात हो रही है। उमड़-घुमड़ कर बादल आसमान में चारों तरफ फैल जाते हैं, आसमान में बिजली भी कड़क रही है। आसमान से बरसात की नन्ही-नन्ही बूँदें गिर रही हैं। ठंडी हवाएँ बह रही हैं, जो मीराबाई को ऐसा महसूस करवाती हैं, मानो श्रीकृष्ण ख़ुद चलकर उनके वास आ रहे हैं।

 

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