जल और मानव जीवन का संबंध अत्यंत घनिष्ठ है। वास्तव में जल ही जीवन है। विश्व की प्रमुख संस्कृतियों का जन्म बड़ी-बड़ी नदियों के किनारे ही हुआ है। बचपन से ही हम जल की उपयोगिता, शीतलता और निर्मलता के कारण उसकी ओर आकर्षित होते रहे हैं। किंतु नल के नीचे नहाने और जलाशय में डुबकी लगाने में ज़मीन आसमान का अंतर है। हम जलाशयों को देखते ही मचल उठते हैं, उनमें तैरने के लिए। आज सर्वत्र सहस्रों व्यक्ति प्रतिदिन सागरों, झीलों और नदियों में तरकर मनोविनोद करते हैं और साथ ही अपना शरीर भी स्वस्थ रखते हैं। स्वच्छ और शीतल जल में तैरना तन को स्फूर्ति ही नहीं, मन को शांति भी प्रदान करता है।
1
तैराकी आनंद की वस्तु होने के साथ-साथ हमारी आवश्यकता भी है। नदियों के आस-पास के गाँव के लोग सड़क मार्ग न होने पर एक-दूसरे से तभी मिल सकते हैं जब उन्हें तैरना आता हो अथवा नदियों में नावें हों। प्राचीनकाल में नावें कहाँ थीं? तब तो आदमी को तैरकर ही नदियों को पार करना पड़ता था। किंतु तैरने के लिए। आदिम मनुष्य को निश्चय ही प्रयत्न और परिश्रम करना पड़ा होगा क्योंकि उसमें अन्य प्राणियों की तरह तैरने की जन्मजात क्षमता नहीं है। जल में मछली आदि जलजीवों को स्वच्छंद विचरण करते देखमनुष्य ने उसी प्रकार तैरना सीखने का प्रयत्न किया है और धीरे-धीरे इस कार्य में इतनी निपुणता प्राप्त कर ली है कि आज तैराकी एक कला के रूप में गिनी जाने लगी है। विश्व में जो खेल प्रतियोगिताएँ - आयोजित की जाती हैं, उनमें तैराकी प्रतियोगिता अनिवार्य रूप से सम्मिलित की जाती है।
(क) हम जल की ओर आकर्षित क्यों होते रहे हैं?
2
(ख) तैराकी के क्या-क्या लाभ होते हैं?
2
(ग) प्राचीनकाल में आवागमन के साधनों की क्या स्थिति थी तथा मानव ने इसके लिए क्या उपाय खोजा ?
2
(घ) वर्तमान समय में तैराकी की क्या स्थिति है?
(ङ) जलाशयों को देखते ही मानव की क्या इच्छा होती है?
(च) गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
We're sorry, but this browser is not supported by TopperLearning.
To get the best experince using TopperLearning, we recommend that you use Google Chrome. Continue, I understand this browser is not compatible.