NCERT Solutions for Class 9 Hindi Chapter 7 - Kabir
Chapter 9 - Kabir Exercise प्रश्न -अभ्यास
मानसरोवर से कवि का अभिप्राय है - मनरूपी पवित्र सरोवर, जिसमें स्वच्छ विचारधारा रूपी जल भरा है तथा हंस रूपी जीवात्मा प्रभु भक्ति में लीन होकर मुक्तिरूपी मुक्ताफल चुगते हैं।
कवि ने सच्चे प्रेमी की कसौटी बताते हुए यह बताया है कि सच्चा प्रेमी अर्थात् जो ईश्वर को ही अपना प्रेमी समझकर उसे पाने का प्रयास करता है। सच्चा प्रेमी ईश्वर के अलावा किसी से कोई मोह नहीं रखता है। उसे मोह और संसार के बंधन भी नहीं बाँध सकते।
तीसरे दोहे में कवि ने अनुभव से प्राप्त ज्ञान को महत्त्व दिया है।
कबीर के अनुसार सच्चा संत वही कहलाता है जो साम्प्रदायिक भेदभाव, सांसारिक मोह माया से दूर, सभी स्तिथियों में समभाव (सुख दुःख, लाभ-हानि, ऊँच-नीच, अच्छा-बुरा) तथा निश्छल भाव से प्रभु भक्ति में लीन रहता है।
अंतिम दो दोहों में दो तरह की संकीर्णता की ओर संकेत किया है -
1. अपने अपने धर्म को श्रेष्ठ सिद्ध करना और दूसरे के धर्म की निंदा करना।
2. ऊँचे कुल के गर्व में जीने की संकीर्णता। मनुष्य केवल ऊँचे कुल में जन्म लेने से बड़ा नहीं होता वह बड़ा बनता है तो अपने अच्छे कर्मों से।
राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर आदि राजा केवल ऊँचे कुल में जन्म लेने के कारण महान नहीं बने वे महान बने तो अपने उच्च कर्मों से। इसके विपरीत कबीर, सूर, तुलसी बहुत ही सामान्य घरों में पैदा हुए परन्तु संसार भर में अपने कर्मों के कारण प्रसिद्ध हुए। अत: हम कह सकते है कि व्यक्ति की पहचान ऊँचे कर्मों से होती है, कुल से नहीं।
भाव सौंदर्य - यहाँ पर कवि ने ज्ञान को महत्त्व को प्रतिपादित करते हुए बताया है कि ज्ञान की प्राप्ति करनेवाला साधक हाथी पर चले जा रहा है और संसार रूपी कुत्ते अर्थात् आलोचना करनेवाले भौंक-भौंककर शांत हो जाते हैं।
शिल्प सौंदर्य - रचना में भक्ति रस की प्रधानता है। सधुक्कड़ी भाषा का प्रयोग किया गया है।
हस्ती, स्वान, ज्ञान आदि तत्सम शब्दों का प्रयोग हुआ है।
हिन्दू अपने ईश्वर को मंदिर तथा पवित्र तीर्थ स्थलों में ढूँढता है तो मुस्लिम अपने अल्लाह को काबे या मस्जिद में और मनुष्य ईश्वर को योग,वैराग्य तथा अनेक प्रकार की धार्मिक क्रियाओं में खोजता फिरता है ।
कबीर ने ईश्वर प्राप्ति के लिए प्रचलित विश्वास जैसे मंदिर, मस्जिद में जाकर पूजा अर्चना करना या नमाज पढ़ना अथवा योग, वैराग्य जैसी क्रियाएँ, पवित्र तीर्थ स्थलों की यात्रा करना, आडम्बर युक्त भक्ति करके ईश्वर प्राप्ति की इच्छा करना इन सभी प्रचलित मान्यताओं का खंडन किया है।
Chapter 9 - Kabir Exercise रचना और अभिव्यक्ति
कबीर ने अपने विचारों दवारा जन मानस की आँखों पर धर्म तथा संप्रदाय के नाम पर पड़े परदे को खोलने का प्रयास किया है कबीर ने हिन्दू और मुसलमान की पूजा पद्धति के कारण उत्पन्न सांप्रदायिकता को लक्ष्य बनाते हुए राम और रहीम को एक मानकर मनुष्य को सच्ची भक्ति के लिए प्रेरित किया है। कबीर ने हर एक मनुष्य को किसी एक मत, संप्रदाय, धर्म आदि में न पड़ने की सलाह दी है। ये सारी चीजें मनुष्य को राह से भटकाने तथा बँटवारे की और ले जाती है अत:कबीर के अनुसार हमें इन सब चक्करों में नहीं पड़ना चाहिए। मनुष्य को चाहिए की वह निष्काम तथा निश्छल भाव से प्रभु की आराधना करें।
Chapter 9 - Kabir Exercise भाषा -अध्ययन
तद्भव |
तत्सम |
पखापखी |
पक्ष-विपक्ष |
अनत, |
अनंत |
जोग |
योग |
जुगति |
युक्ति |
बैराग |
वैराग्य |
निरपख |
निरपेक्ष / निष्पक्ष |
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