NCERT Solutions for Class 9 Hindi Chapter 3 - Maativali
Chapter 4 - Maativali Exercise प्रश्न-अभ्यास
शहरवासी माटी वाली तथा उसके कनस्तर को इसलिए जानते होंगे क्योंकि पूरे टिहरी शहर में केवल वही अकेली माटी वाली थी। उसका कोई प्रतियोगी नहीं था। माटीवाली की लाल मिट्टी हर घर की आवश्यकता थी, जिससे चूल्हे-चौके की पुताई की जाती थी। इसके बिना किसी काम नहीं चलता था। इसलिए सभी उसे जानते थे तथा उसके ग्राहक थे। वह पिछले अनेक वर्षों से शहर की सेवा कर रही थी। साथ ही माटीवाली एक हँसमुख स्वभाव वाली महिला थी। इस कारण स्वाभाविक रूप से सभी लोग उसे जानते थे।
माटीवाली अपनी आर्थिक और पारिवारिक उलझनों में उलझी, निम्न स्तर का जीवन जीने वाली महिला थी। अपना तथा बुड्ढे का पेट पालना ही उसके सामने सबसे बड़ी समस्या थी। सुबह उठकर माटाखाना जाना और दिनभर उस मिट्टी को बेचना इसी में उसका सारा समय बीत जाता था। अपनी इसी दिनचर्या को वह नियति मानकर चले जा रही थी। ऐसे में माटीवाली के पास अच्छे और बुरे भाग्य के बारे में सोचने का समय नहीं था।
भूख और भोजन का आपस में गहरा सम्बन्ध है। स्वाद भोजन में नहीं बल्कि मनुष्य को लगने वाली भूख से होता है। भूख लगने पर रूखा-सूखा भोजन भी स्वादिष्ट लगता है। भूख न होने पर स्वादिष्ट भोजन भी बे-स्वाद लगता है।
हमारे पुरखों ने अनेकों संघर्ष के बाद चीजों को पाया है। इन वस्तुओं का मूल्य हम धन से नहीं आँक सकते हैं। हम चाहे इन वस्तुओं में वृद्धि न कर पाएँ परन्तु इन वस्तुओं को कौडियों के दाम पर तो न बेचे। कुछ लोग स्वार्थवश इसे औने-पौने दामों में बेच देते हैं, जो कभी भी उचित नहीं है। हमें इनके पीछे छिपी भावना को समझना चाहिए। यहाँ पर घर की मालकिन के विचार वाकई में प्रशंशा के काबिल हैं जो अभी तक अपने पुरखों की विरासत को संभाले हुए है।
माटी वाली का रोटियों का हिसाब लगाना उसकी गरीबी, फटेहाली और आवश्यकता की मजबूरी को प्रकट करता है। माटीवाली दिनभर के अथक परिश्रम के बाद भी इतना नहीं कमा पाती थी कि जिससे वह अपना तथा अपने बूढ़े बीमार पति का पेट भर सकें। यह माटीवाली की विवशता ही थी कि रोटियों का हिसाब लगाकर वह स्वयं खाती थी तथा बाकी बची रोटियाँ अपने बीमार बूढ़े पति के लिए रख लेती थी।
माटीवाली का अपने पति के लिए रोटियाँ बचाकर ले जाना और उसे साग के साथ खिलाना उसके अपने जीवनसाथी के प्रति अटूट प्रेम, समपर्ण तथा निष्ठा के भावों को बताता है। वह अपने पति के स्वाद एवं स्वास्थ्य दोनों के प्रति चिंता करती है। वह हर हाल में बूढ़े को खुश देखना चाहती है। उसे बूढ़े के प्रति दया, वात्सल्य और सहानुभूति है।
गरीब आदमी का श्मशान नहीं उजड़ना चाहिए - इस कथन का आशय यह है कि गरीबों के रहने का आसरा नहीं छिनना चाहिए। माटीवाली जब एक दिन मजदूरी करके घर पहुँचती है तो उसके पति की मृत्यु हो चुकी होती है। अब उसके सामने विस्थापन से ज्यादा पति के अंतिम संस्कार की चिंता होती है, बाँध के कारण सारे श्मशान पानी में डूब चूके होते हैं। उसके लिए घर और श्मशान में कोई अंतर नहीं रह जाता है। इसी दुःख के आवेश में वह यह वाक्य कहती है।
विस्थापन का अर्थ है किसी स्थान पर बसे हुए लोगों को कहीं से बलपूर्वक हटाना और वह जगह उनसे खाली करा लेना। आज विकास और प्रगति के नाम पर कई लोगों को अपनी जड़ों को छोड़कर जाना पड़ता है। उनके सामने रोजगार और घर की समस्या उत्पन्न हो जाती है। ऐसा नहीं है कि सरकार विस्थापितों को बसाने के लिए कोई कदम नहीं उठाती परन्तु ये सारी सुविधाएँ अपर्याप्त होती हैं।
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