NCERT Solutions for Class 11-science Hindi Chapter 2 - Meera [Poem]
Chapter 2 - Meera [Poem] Exercise प्रश्न-अभ्यास
मीरा श्रीकृष्ण को अपना सर्वस्व मानती हैं। वे स्वयं को उनकी दासी भी मानती है और श्रीकृष्ण की उपासना एक समर्पिता पत्नी के रूप में करती है।
मीरा के प्रभु सिर पर मोर-मुकुट धारण करने वाले मन को मोहनेवाले रूप के हैं।
भाव-सौंदर्य - इस पद में मीरा की भक्ति अपनी चरम सीमा पर है। मीरा ने अपने आँसुओं के जल से सींचकर- सींचकर कृष्ण रूपी प्रेम की बेल बोई है और अब उस प्रेमरूपी बेल में फल आने शुरू हो गए हैं अर्थात् मीरा को अब आनंदाभूति होने लगी है।
शिल्प-सौंदर्य - भाषा मधुर, संगीतमय और राजस्थान मिश्रित भाषा है। 'सींची-सींची' में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है। प्रेम-बेलि बोयी, आणंद-फल, अंसुवन जल में सांगरूपक अलंकार का बड़ी ही कुशलता से प्रयोग किया गया है।
भाव-सौंदर्य - इस पद में मीरा ने भक्ति की महिमा को बड़े ही सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया है। इस पद में भक्ति को मक्खन के समान महत्त्वपूर्ण तथा सांसारिक सुख को छाछ के समान असार माना गया है। इन काव्य पंक्तियों में मीरा संसार के सार तत्व को ग्रहण करने और व्यर्थ की बातों को छोड़ देने के लिए कहती है।
शिल्प-सौंदर्य - भाषा मधुर, संगीतमय और राजस्थान मिश्रित भाषा है। पद भक्ति रस से परिपूर्ण है। 'घी' और 'छाछ' शब्द प्रतीकात्मक रूप में लिए गए हैं। 'दूध की मथनियाँ...छोयी' में अन्योक्ति अलंकार है।
मीरा कृष्ण भक्ति में अपनी सुध-बुध खो चुकी थी। कृष्ण की भक्ति के लिए उसने राज-परिवार को भी त्याग दिया था। उसके इस कृत्य पर लोगों ने उसकी भरपूर निंदा की परंतु मीरा तो सब सांसारिकता को त्याग कर कृष्ण की अनन्य भक्ति में रम चुकी थी। मीरा की अनन्य कृष्णभक्ति की इसी पराकष्ठा को बावलेपन की संज्ञा दी गई है। इसी कारण लोग उन्हें बावरी कहते थे।
मीरा की कृष्ण भक्ति के कारण उसके पति परेशान रहते थे। उन्हें अपनी कुल की मर्यादा खतरे में मालूम पड़ती थी। अत: उन्होंने मीरा को मारने के लिए जहर का प्याला भेजा और मीरा ने भी उसे हँसते-हँसते पी लिया परंतु कृष्ण भक्ति के कारण जहर भी मीरा का कुछ न बिगाड़ पाया। इस तरह यहाँ पर विरोधियों पर व्यंग किया गया है कि वे कुछ भी क्यों न कर लें ईश्वर भक्ति करने वालों का बाल भी बाँका नहीं कर सकते हैं।
मीरा संसार में लोगों को मोह-माया में जकड़े हुए देखकर रोती है। मीरा के अनुसार संसार के सुख-दुःख ये सब मिथ्या हैं। मीरा सांसारिक सुख-दुःख को असार मानती है। उसे लगता है कि किस-प्रकार लोग सांसारिक मोह-माया को सच मान बैठे हैं और अपने जीवन को व्यर्थ की गँवा रहें हैं और इसी कारण वे जगत को देखकर रोती हैं।
प्रेम-प्राप्ति की राहें आसन नहीं होती। मीरा को भी प्रेम-प्राप्ति के लिए अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा होगा जैसे सर्वप्रथम तो उन्हें घर-परिवार का विरोध सहना पड़ा होगा। उन्हें रोकने के अनगिनत प्रयास किए गए होंगे। समाज के लोगों ने भी उस पर टीका-टिप्पणी की हो। यहाँ तक कि उन्हें रोकने के लिए मारने के प्रयास भी किए गए होंगे। इस तरह मीरा को प्रेम-प्राप्ति से विरक्त करने के लिए हर संभव प्रयास किए गए होंगे।
लोक लाज खोने का अभिप्राय परिवार की मर्यादा खोने से है। हर एक समाज की अपनी एक मर्यादा होती है और जब कोई व्यक्ति इसके विपरीत कार्य करता है तो उसे मर्यादा का उल्लंघन मानकर लोक-लाज खोने की बात की जाती है।
मीरा का विवाह राजपुताना परिवार में हुआ था। राज परिवार से संबंधित होने के कारण वहाँ महिलाओं को अनेकों प्रथाओं का पालन जैसे पर्दा प्रथा का पालन करना, पर-पुरूषों के सामने आना, मंदिरों में जाकर भजन-कीर्तन में शामिल होना आदि अनेकों बातों की मनाही थी। मीरा ने परिवार की इन झूठी मर्यादाओं की परवाह न की और कृष्ण की भक्ति, सत्संग-भजन, साधु संतों के साथ उठाना बैठना सभी निर्भय पूर्वक जारी रखा। इसी संदर्भ में मीरा के लोक लाज छोड़ने की बात की गई है।
मीरा ने प्रभु को अविनाशी कहा है। मीरा के अनुसार ऐसे अविनाशी प्रभु को पाने के लिए सच्चे मन से सहज भक्ति करनी पड़ती है। ऐसी सहज भक्ति से प्रभु प्रसन्न होकर भक्त को मिल जाते हैं।
समाज के लोग सांसारिक मोह-माया को वास्तविकता मानते हैं उनके लिए धन-संपत्ति, जमीन-जायदाद आदि बातें ही सत्य होती है और मीरा का इन सांसारिक सुखों का त्याग करना उनके अनुसार उसे बावली की संज्ञा में ला खड़ा करता है। उसके विपरीत परिवार वालों के अनुसार मीरा ने कुल-मर्यादा की परवाह न करते हुए मंदिरों में नाचना, साधु-संतों के साथ उठना-बैठना आदि कार्यों को जारी रखा अत: वे मीरा के इन कृत्यों को कुल का नाश करने वाला मानते हैं।
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