NCERT Solutions for Class 10 Hindi Chapter 3 - Bihari [Poem]
Chapter Poem 3 - Bihari Exercise प्रश्न-अभ्यास
ग्रीष्म के जेठ मास की दोपहर में धूप इतनी तेज होती है कि सिर पर आने लगती है जिससे वस्तुओं की छाया छोटी होती जाती है। इसलिए कवि का कहना है कि जेठ की दुपहरी की भीषण गर्मी में छाया भी त्रस्त होकर छाया ढूँढ़ने लगती है।
बिहारी की नायिका अपने प्रिय को पत्र द्वारा संदेश देना चाहती है पर कागज पर लिखते समय कँपकँपी और आँसू आ जाते हैं। नायिका विरह की अग्नि में जल रही है। लिखते समय वह अपने मन की बात बताने में खुद को असमर्थ पाती है। किसी के साथ संदेश भेजेगी तो कहते लज्जा आएगी। इसलिए वह सोचती है कि जो विरह अवस्था उसकी है, वही उसके प्रिय की भी होगी। अतः वह कहती है कि अपने हृदय की वेदना से मेरी वेदना को समझ जाएँगे। कुछ कहने सुनने की जरूरत नहीं रह जाती।
बिहारी जी के अनुसार भक्ति का सच्चा रूप हृदय की सच्चाई में निहित है। बिहारी जी ईश्वर प्राप्ति के लिए धर्म कर्मकांड को दिखावा समझते थे। माला जपने, छापे लगवाना, माथे पर तिलक लगवाने से प्रभु नहीं मिलते। जो इन व्यर्थ के आडंबरों में भटकते रहते हैं वे झूठा प्रदर्शन करके दुनिया को धोखा दे सकते हैं, परन्तु भगवान राम तो सच्चे मन की भक्ति से ही प्रसन्न होते हैं।
कृष्ण जी को अपनी बाँसुरी बहुत प्रिय है। वे उसे बजाते ही रहते हैं। गोपियाँ कृष्ण से बातें करना चाहती हैं। वे कृष्ण को रिझाना चाहती हैं। उनका ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए मुरली छिपा देती हैं। ताकि बाँसुरी के बहाने कृष्ण उनसे बातें करें और अधिक समय तक वे उनके निकट रह पाए।
बिहारी ने बताया है कि घर में सबकी उपस्थिति में नायक और नायिका इशारों में अपने मन की बात करते हैं। नायक ने सबकी उपस्थिति में नायिका को इशारा किया। नायिका ने इशारे से मना किया। नायिका के मना करने के तरीके पर नायक रीझ गया। इस रीझ पर नायिका खीज उठी। दोनों के नेत्र मिल जाने पर आँखों में प्रेम स्वीकृति का भाव आता हैा। इस पर नायक प्रसन्न हो जाता है और नायिका की आँखों में लजा जाती है।
इस पंक्ति में कृष्ण के सौंदर्य का वर्णन है। कृष्ण के नीले शरीर पर पीले रंग के वस्त्र हैं। वे देखने में ऐसे प्रतीत होते हैं मानों नीलमणी पर्वत पर सुबह का सूर्य जगमगा उठा हो।
इस पंक्ति का आशय है कि ग्रीष्म ऋतु की भीषण गर्मी से पूरा जंगल तपोवन जैसा पवित्र बन गया है। सबकी आपसी दुश्मनी समाप्त हो गई है। साँप, हिरण और सिंह सभी गर्मी से बचने के लिए साथ रह रहे हैं। ऐसा प्रतीत होता है जैसे तपस्वी का सानिध्य पाकर ये आपसी वैर-भाव भूल गए हैं।
इन पंक्तियों द्वारा कवि ने बाहरी आडंबरों का खंडन करके भगवान की सच्ची भक्ति करने पर बल दिया है। इसका भाव है कि माला जपने, छापे लगवाना, माथे पर तिलक लगवाने से एक भी काम नहीं बनता। कच्चे मन वालों का हृदय डोलता रहता है। वे ही ऐसा करते हैं। जो इन व्यर्थ के आडंबरों में भटकते रहते हैं वे झूठा प्रदर्शन करके दुनिया को धोखा दे सकते हैं, परन्तु भगवान राम तो सच्चे मन की भक्ति से ही प्रसन्न होते हैं। राम तो सच्चे मन से याद करने वाले के हृदय में रहते हैं।
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