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ICSE Class 9 Saaransh Lekhan Bahu Ki Vida (Eakanki Sanchay)

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Bahu Ki Vida Synopsis

 

सारांश

प्रस्तुत एकांकी ‘बहू की विदा’ श्री विनोद रस्तोगी द्वारा रचित है। इस एकांकी के माध्यम से लेखक ने हमारे समाज में व्याप्त दहेज की समस्या को दर्शाया है।
इस एकांकी में कुल पाँच पात्र हैं- जीवन लाल, उनकी पत्नी राजेश्वरी, उनका बेटा रमेश, बहू कमला और प्रमोद जो कमला का भाई है।
प्रमोद की बहन कमला का विवाह जीवनलाल के पुत्र रमेश के साथ होता है। प्रमोद अपनी पारिवारिक हैसियत के हिसाब से दहेज देता है। जीवनलाल आशा के अनुरूप दहेज न मिलने से चिढ़ा हुआ रहता है।
विवाह के बाद पहला सावन आने पर बहू को उसके मायके भेजे जाने की एक रस्म होती है उसी रस्म को पूरी करने के लिए प्रमोद अपनी बहन कमला को विदा करने उसके ससुराल पहुँचता है परंतु कमला के ससुर जीवनलाल अपनी बहू की विदा नहीं करना चाहते। जीवनलाल के अनुसार बेटे की शादी में बहू कमला के परिवार वालों ने उनकी हैसियत के हिसाब से उनकी खातिरदारी नहीं की तथा कम दहेज दिया। इससे उनके मान पर धब्बा लगा है।
जीवनलाल प्रमोद पर व्यंग करते हुए यह भी कहता है कि जब उनकी मुँह माँगा दहेज़ देने का सामर्थ्य नहीं था तो अपनी बहन की शादी उनके के बेटे से क्यों करवाईं। अब जब तक दहेज की पूरी रकम अर्थात् पाँच हजार नहीं चुका दी जाती वह कमला को अपने मायके विदा नहीं करेगा।
प्रमोद जीवनलाल से अपनी बहन को मायके भेजने की प्रार्थना करता है और केवल लड़की वाला होने के कारण उस पर होने वाले अन्याय का विरोध करता है। इस पर जीवनलाल उसे अपनी बेटी गौरी के विवाह का उदाहरण देते हुए कहता है कि वे भी लड़की वाले हैं परंतु उसने अपनी बेटी का विवाह बड़े धूमधाम से किया। उसने अपनी बेटी के ससुराल वालों की इतनी खातिरदारी की कि सभी दंग रह गए। इसलिए लड़कीवाले होते हुए भी उनकी मूँछ ऊँची ही है। इस समय उनका बेटा रमेश उसी बेटी गौरी को विदा करवाने उसके ससुराल गया है और किसी भी समय रमेश अपनी बहन गौरी को लेकर यहाँ पहुँचता ही होगा।
प्रमोद उसके बाद अपनी बहन कमला से मिलता है और उसे सांत्वना देते हुए कहता है कि वह वापस जाकर अपना घर बेच देगा और दहेज की रकम का जुगाड़ कर लेगा। इस पर कमला अपने भाई को समझाती है कि घर बेचने की बात वह बिल्कुल न करें क्योंकि अभी उसकी छोटी बहन विमला के विवाह की जिम्मेदारी उसके सिर पर है। और क्या हुआ यदि वह पहला सावन अपने मायके में न बिता पाए। यहाँ ससुराल में उसकी सास और ननद गौरी बहुत अच्छी है। गौरी के आने से तो उसे अपनी सखियों को कमी भी नहीं खलेगी।
उसकी समय कमरे में कमला की सास राजेश्वरी का प्रवेश होता है। राजेश्वरी को अपने पति की स्वार्थी प्रवृत्ति का पता होता है। राजेश्वरी को पता होता है जब तक प्रमोद उन्हें वह पाँच हजार रुपए लाकर नहीं देगा तब तक कमला की विदा नहीं होगी। इसलिए वह स्वयं कमला को तिजोरी की चाभी देकर पाँच हजार लाने को कहती है। वह प्रमोद से कहती है कि ये रूपए वह जीवनलाल को देकर कमला को विदा कर ले जाय। प्रमोद पैसे लेने से इंकार कर देता है।
उसी समय रमेश बिना अपनी बहन गौरी को विदा किए घर पहुँचता है। गौरी के ससुरालवालों ने भी कम दहेज का बहाना बनाकर गौरी को विदा करने से मना कर दिया था। जीवनलाल को अपने बेटी के ससुराल वालों का रवैया अन्यायपूर्ण लगता है। उसे अपने बेटी के ससुराल वाले लोभी-लालची नजर आने लगते हैं क्योंकि उसके अनुसार उसने तो अपने जीवन भर की कमाई अपनी बेटी गौरी के ससुराल वालों को दे दी थी। दहेज देने के बावजूद उसकी बेटी गौरी के ससुराल वालों के उसे दहेज कम पड़ने की वजह से उसके भाई के साथ विदा न करके जीवनलाल को अपना अपमान लगता है और वे शराफत और इन्सानियत की दुहाई देते हैं।
तब राजेश्वरी ने अपने पति जीवन लाल की आँखें खोलने के लिए कहती है कि अब वे शराफत और इन्सानियत की दुहाई दे रहे हैं जबकि खुद अपनी बहू को दहेज के पाँच हजार कम पड़ने की वजह से उसके भाई को अपमानित कर विदा नहीं कर रहे थे। जीवनलाल को अपनी गलती का अहसास होता है। वह अपनी पत्नी राजेश्वरी को कहते हैं कि अंदर जाकर बहू की विदा की तैयारी करो। जीवनलाल के इस बदले व्यवहार से सभी प्रसन्न हो जाते हैं। इस तरह जीवनलाल के बदले हुए व्यवहार से कुछ देर पहले का तनावपूर्ण माहौल खुशी में बदल जाता है।