Class 9 EVERGREEN PUBLICATION Solutions Hindi Chapter 3 - Mahaygya Ka Purasakar
Mahaygya Ka Purasakar Exercise प्रश्न-अभ्यास
Solution क-i
प्रस्तुत पाठ लेखक यशपाल द्वारा रचित है। प्रस्तुत पाठ में सेठ जी कुछ ख़ास विशेषताओं का उल्लेख किया है। सेठजी बड़े विन्रम और उदार थे। सेठ जी इतने बड़े धर्मपरायण थे कि कोई साधू-संत उनके द्वार से निराश न लौटता, भरपेट भोजन पाता। उनके भंडार का द्वार हमेशा सबके लिए खुला रहता। उन्होंने बहुत से यज्ञ किए और दान में न जाने कितना धन दिन दुखियों में बाँट दिया था। यहाँ तक की गरीब हो जाने के बावजूद भी उन्होंने अपनी उदारता को नहीं छोड़ा और पुन:धन प्राप्ति के बाद भी ईश्वर से सद्बुद्धि ही माँगी।
Solution क-ii
सेठ जी के उदार होने के कारण कोई भी उनके द्वार से खाली नहीं जाता था परंतु अकस्मात् सेठ जी के दिन फिरे और सेठ जी को गरीबी का मुँह देखना पड़ा। ऐसे समय में संगी-साथियों ने भी मुँह फेर दिया और यही सेठ जी के दुःख का कारण था।
Solution क-iii
उन दिनों एक प्रथा प्रचलित थी। यज्ञों के फल का क्रय-विक्रय हुआ करता था। छोटा-बड़ा जैसा यज्ञ होता, उनके अनुसार मूल्य मिल जाता। जब बहुत तंगी हुई तो एक दिन सेठानी ने सेठ को सलाह दी कि क्यों न वे अपना एक यज्ञ बेच डाले। इस प्रकार बहुत अधिक गरीबी आ जाने के कारण सेठानी ने सेठ को अपना यज्ञ बेचने की सलाह दी।
Solution क-iv
धन्ना सेठ की पत्नी के संबंध में यह अफ़वाह थी कि उसे कोई दैवीय शक्ति प्राप्त है जिससे वह तीनों लोकों की बात जान सकती है।
Solution ख-i
सेठ जी को जब पैसों को बहुत तंगी होने लगी और सेठानी ने उन्हें यज्ञ बेचने का सुझाव दिया। सेठानी की यज्ञ बेचने की बात पर पहले सेठ बड़े दुखी हुए परंतु बाद में तंगी का विचार त्यागकर सेठ अपना एक यज्ञ बेचने के लिए तैयार हो गए।
Solution ख-ii
कुंदनपुर नाम का एक नगर था, जिसमें एक बहुत सेठ रहते थे। लोग उन्हें धन्ना सेठ कहते थे। धन की उनके पास कोई कमी न थी। विपद्ग्रस्त सेठ ने उन्हीं के हाथ एक यज्ञ बेचने का का विचार किया। इस तरह सेठ जी ने कुंदनपुर के धन्ना सेठ के पास अपना यज्ञ बेचने गए।
Solution ख-iii
सेठ जी बड़े तड़के उठे और कुंदनपुर की ओर चल दिए। गर्मी के दिन थे सेठ जी सोचा कि सूरज निकलने से पूर्व जितना ज्यादा रास्ता पार कर लेगें उतना ही अच्छा होगा परंतु आधा रास्ता पार करते ही थकान ने उन्हें आ घेरा। सामने वृक्षों का कुंज और कुआँ देखा तो सेठ जी ने थोड़ा देर रुककर विश्राम और भोजन करने का निश्चय किया।
Solution ख-iv
सामने वृक्षों का कुंज और कुआँ देखा तो सेठ जी ने थोड़ा देर रुककर विश्राम और भोजन करने का निश्चय किया। पोटली से लोटा-डोर निकालकर पानी खींचा और हाथ-पाँव धोए। उसके बाद एक लोटा पानी ले पेड़ के नीचे आ बैठे और खाने के लिए रोटी निकालकर तोड़ने ही वाले थे कि क्या देखते हैं एक कुत्ता हाथ भर की दूरी पर पड़ा छटपटा रहा था। भूख के कारण वह इतना दुर्बल हो गया कि अपनी गर्दन भी नहीं उठा पा रहा था। यह देख सेठ का दिल भर आया और उन्होंने अपना सारा भोजन धीरे-धीरे कुत्ते को खिला दिया।
Solution ग-i
उपर्युक्त अवतरण की वक्ता कुंदनपुर के धन्ना सेठ की पत्नी हैं। धन्ना सेठ की पत्नी बड़ी विदुषी स्त्री थीं। उनके बारे में यह प्रचलित था कि उन्हें कोई दैवीय शक्ति प्राप्त है जिसके कारण वे तीनों लोकों की बात जान लेती हैं। इसी शक्ति के बल पर वह जान लेती हैं यज्ञ बेचने वाले सेठ अत्यंत उदार, कर्तव्यपरायण और धर्मनिष्ठ हैं।
Solution ग-ii
श्रोता धन्ना सेठ की पत्नी ने जब वक्ता सेठ जी से अपना महायज्ञ बेचने की बात की तो उन्हें आश्चर्य हुआ क्योंकि महायज्ञ की बात तो छोड़िए सेठ ने बरसों से कोई सामान्य यज्ञ भी नहीं किया था।
Solution ग-iii
धन्ना सेठ की पत्नी ने जब महायज्ञ की बात की तो सेठजी सोचने लगे कि इन्हें यज्ञ तो खरीदना नहीं है नाहक ही मेरी हँसी उड़ा रही हैं क्योंकि जिस महायज्ञ की वे बात कर रही है वो तो उन्होंने किया ही नहीं है।
Solution ग-iv
धन्ना सेठ ही पत्नी के अनुसार स्वयं भूखे रहकर चार रोटियाँ किसी भूखे कुत्ते को खिलाना ही महायज्ञ है। इस तरह यज्ञ कमाने की इच्छा से धन-दौलत लुटाकर किया गया यज्ञ, सच्चा यज्ञ नहीं है, निस्वार्थ भाव से किया गया कर्म ही सच्चा यज्ञ महायज्ञ है।
Solution घ-i
उपर्युक्त अवतरण की वक्ता सेठ की पत्नी है। सेठ की पत्नी भी बुद्धिमत्ती स्त्री है। मुसीबत के समय अपना धैर्य न खोते हुए उसने अपने पति को अपना एक यज्ञ बेचने की सलाह दी। विपत्ति की स्थिति में वह अपने पति को ईश्वर पर विश्वास और धीरज धारण करने को कहती है। इस प्रकार सेठ की पत्नी भी कर्तव्य परायण, धीरवती, ईश्वर पर निष्ठा रखने वाली और संतोषी स्त्री थी।
Solution घ-ii
सेठानी के पति जब कुंदनपुर गाँव से धन्ना सेठ के यहाँ से खाली हाथ घर लौटे तो पहले तो वे काँप उठी पर जब उसे सारी घटना की जानकारी मिली तो उनकी वेदना जाती रही। उनका ह्रदय यह देखकर उल्लसित हो गया कि विपत्ति में भी उनके पति ने अपना धर्म नहीं छोड़ा और इसी बात के लिए सेठानी ने अपने पति की रज मस्तक से लगाई।
Solution घ-iii
रात के समय सेठानी उठकर दालान में दिया जलाने आईं तो रास्ते में किसी चीज से टकराकर गिरते-गिरते बची। सँभलकर आले तक पहुँची और दिया जलाकर नीचे की ओर निगाह डाली तो देखा कि दहलीज के सहारे पत्थर ऊँचा हो गया है जिसके बीचों बीच लोहें का कुंदा लगा है। शाम तक तो वहाँ वह पत्थर बिल्कुल भी उठा नहीं था अब यह अकस्मात कैसे उठ गया? यही सब देखकर सेठानी भौचक्की-सी खड़ी हो गई।
Solution घ-iv
सेठानी ने जब सेठ को बुलाकर दालान में लगे लोहे कुंदे के बारे में बताया तो सेठ जी भी आश्चर्य में पड़ गए। सेठ ने कुंदे को पकड़कर खींचा तो पत्थर उठ गया और अंदर जाने के लिए सीढ़ियाँ निकल आईं। सेठ और सेठानी सीढ़ियाँ उतरने लगे कुछ सीढ़ियाँ उतरते ही इतना प्रकाश सामने आया कि उनकी आँखें चौंधियाने लगी। सेठ ने देखा वह एक विशाल तहखाना है और जवाहरातों से जगमगा रहा है। इस तरह सेठ को धन की प्राप्ति हुई।