EVERGREEN PUBLICATION Solutions for Class 10 Hindi Chapter 3 - Matrbhumi Ka Maan
Chapter 3 - Matrbhumi Ka Maan Exercise प्रश्न-अभ्यास
मेवाड़ नरेश महाराणा लाखा ने सेनापति अभी सिंह से बूँदी के राव हेमू के पास यह संदेश भिजवाया कि बूँदी मेवाड़ की अधीनता स्वीकार करे ताकि राजपूतों की असंगठित शक्ति को संगठित करके एक सूत्र में बाँधा जा सके, परंतु राव ने यह कहकर प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया कि बूँदी महाराणाओं का आदर तो करता है, पर स्वतंत्र रहना चाहता है। हम शक्ति नहीं प्रेम का अनुशासन करना चाहते हैं। यह सुन कर राणा लाख प्रतिज्ञा करते हैं।
महारावल बाप्पा का वंशज महाराणा लाखा प्रतिज्ञा करते है कि 'जब तक बूँदी के दुर्ग में ससैन्य प्रवेश नहीं करूँगा, अन्न जल ग्रहण नहीं करूँगा।'
मेवाड़ के सैनिकों के लिये युद्ध-भूमि में वीरता दिखाने की परीक्षा का दिन आ गया।
मेवाड़ के शासक महाराणा लाखा को नीमरा के युद्ध के मैदान में बूँदी के राव हेमू से पराजित होकर भागना पड़ा, इसलिए अपने को धिक्कारते हैं, और आत्मग्लानि अनुभव करने के कारण जनसभा में भी नहीं जाना चाहते।
महाराणा ने चारणी सुझाव पर बूँदी का नकली महल बनवाया।
महाराणा लाखा ने गुस्से में यह प्रतिज्ञा की थी कि जब तक वे बूँदी के दुर्ग में ससैन्य प्रवेश नहीं करेंगे, अन्न जल ग्रहण नहीं करेंगे। चारिणी ने उन्हें सलाह दी कि वे नकली दुर्ग का विध्वंस करके अपनी प्रतिज्ञा पूर्ण कर ले। महाराणा ने यह प्रस्ताव स्वीकार किया क्योंकि वे हाड़ाओं को उनकी उदण्डता का दंड देना चाहते थे तथा अपने व्रत का भी पालन करना चाहते थे।
महाराणा ने बिना सोचे समझे प्रतिज्ञा की थी इसलिए यह विवेकहीन थी।
प्रस्तुत एकांकी 'मातृभूमि का मान' शीर्षक सार्थक है क्योंकि यहाँ मातृभूमि के मान के लिए ही महाराणा लाखा, बूँदी के नरेश तथा वीर सिंह लड़ते है तथा वीरसिंह ने अपनी मातृभूमि बूँदी के नकली दुर्ग को बचाने के लिए अपने प्राण की आहुति दे दी।
वीरसिंह की मातृभूमि बूँदी थी। वह मेवाड़ में इसलिए रहता था क्योंकि वह महाराणा लाखा की सेना नौकरी
करता था।
वीरसिंह ने अपनी मातृभूमि बूँदी के नकली दुर्ग को बचाने के लिए अपने साथियों के साथ प्रतिज्ञा ली कि प्राणों के होते हुए हम इस नकली दुर्ग पर मेवाड़ की राज्य पताका को स्थापित न होने देंगे तथा दुर्ग की रक्षा के लिए अपने प्राण की आहुति दे दी।
वीरसिंह के बलिदान ने राजपूतों को जन्मभूमि का मान करना सिखा दिया।
इस एकांकी में यह दिखाया गया है कि मातृभूमि की रक्षा के लिए क्या-क्या बलिदान नहीं करना पड़ता, यहाँ तक कि प्राणों का बलिदान भी करना पड़ता है। इस एकांकी में वीर सिंह के माध्यम से यह बताया गया है कि राजपूत किसी भी सूरत में अपनी मातृभूमि को किसी के अधीन नहीं देख सकते हैं इसलिए राजपूत अपनी मातृभूमि के लिए अपने प्राणों की भी परवाह नहीं करते हैं। इस पूरी एकांकी में राजपूतों की मातृभूमि के प्रति ऐसी ही एकनिष्ठा को दर्शाया है।
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