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CBSE Class 8 Saaransh Lekhan Diwanon Ki Hasati

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Diwanon Ki Hasati Synopsis

सारांश


दीवानों की हस्ती कविता में कवि भगवती प्रसाद वर्मा जी ने एक मस्तमौला और बेफिक्र व्यक्ति का स्वभाव दर्शाया है। कवि के अनुसार, ऐसे दीवाने और बेफिक्र व्यक्ति जहाँ भी जाते हैं, वहाँ केवल खुशियाँ ही फैलाते हैं। उनका हर रूप मन को प्रसन्न कर देता है, फिर चाहे किसी की आँखों में आँसू ही क्यों ना हों।
कवि कभी भी एक जगह पर ज्यादा समय तक नहीं टिकते हैं। वे तो संसार को कुछ मीठी-प्यारी यादें और एहसास देकर, अपने सफर पर निकल पड़ते हैं। कवि लोग सांसारिक बंधनों में बंधे नहीं होते, इसीलिए वो दुख और सुख, दोनों को एक समान रूप से स्वीकारते हैं। यही उनके हमेशा ख़ुश रहने की प्रमुख वजह है।
कवि के अनुसार, उनके लिए संसार में कोई भी पराया नहीं होता है। वो अपने जीवन के रास्ते पर चलकर खुश रहते हैं और सदा अपने चुने रास्तों पर ही चलना चाहते है।

भावार्थ 

1.हम दीवानों की क्या हस्ती,

हैं आज यहाँ, कल वहाँ चले,

मस्ती का आलम साथ चला,

हम धूल उड़ाते जहाँ चले।

 

नए शब्द/कठिन शब्द 

दीवानों- अपनी मस्ती में रहने वाले

हस्ती- अस्तित्व

मस्ती- मौज

आलम- दुनिया

उल्लास- ख़ुशी

भावार्थ- दीवानों की हस्ती कविता की इन पंक्तियों में कवि कहते हैं कि दीवानों की कोई हस्ती नहीं होती। अर्थात, वो इस घमंड में नहीं रहते कि वो बहुत बड़े आदमी हैं और ना ही उन्हें किसी चीज़ की कमी का कोई मलाल होता है। कवि ख़ुद भी एक दीवाने हैं और बस अपनी मस्ती में मस्त रहते हैं। उनकी इस मस्ती और खुशी के आगे ग़म टिक नहीं पाता है और धूल की तरह उड़न-छू हो जाता है।

 

2.आए बन कर उल्लास अभी,

आँसू बन कर बह चले अभी,

सब कहते ही रह गए, अरे,

तुम कैसे आए, कहाँ चले?

 

नए शब्द/कठिन शब्द 

उल्लास- खुशी  

आंसू- अश्रु 

भावार्थ- दीवानों की हस्ती कविता की इन पंक्तियों में कवि ने कहा है कि दीवाने-मस्तमौला लोग जहाँ भी जाते हैं, वहाँ का माहौल ख़ुशियों से भर जाता है। फिर जब वो उस जगह से जाने लगते हैं, तो सब काफी दुखी हो जाते हैं। लोगों को उनके जाने का पता तक नहीं चलता। वो तो मन में ही अफ़सोस करते रह जाते हैं कि उन्हें मालूम ही नहीं हुआ, कवि कब आए और कब चले गए।
इस प्रकार कवि कह रहे हैं कि एक जगह टिककर रहना उनका स्वभाव नहीं है, उन्हें घूमते रहना पसंद है। इसीलिए वो अक्सर अलग-अलग जगह आते-जाते रहते हैं।

  

3.किस ओर चले? यह मत पूछो,

चलना है, बस इसलिए चले,

जग से उसका कुछ लिए चले,

जग को अपना कुछ दिए चले,

 

नए शब्द/कठिन शब्द 

जग-संसार 

भावार्थ-  दीवानों की हस्ती कविता में आगे कवि कहते हैं कि मुझसे मत पूछो में कहाँ जा रहा हूँ। मुझे तो बस चलते रहना है, इसीलिए मैं चले जा रहा हूँ। मैनें इस दुनिया से कुछ ज्ञान प्राप्त किया है, अब मैं उस ज्ञान को बाकी लोगों के साथ बाँटना चाहता हूँ। इसलिए मुझे निरंतर चलते रहना होगा।

 

4.दो बात कही, दो बात सुनी।

कुछ हँसे और फिर कुछ रोए।

छककर सुख-दुख के घूँटों को

हम एक भाव से पिए चले।

 

नए शब्द/कठिन शब्द 

छककर- तृप्त होकर

भाव- एहसास

भावार्थ- भगवती चरण वर्मा दीवानों की हस्ती कविता की इन पंक्तियों में कह रहे हैं कि वो जहाँ भी जाते हैं, लोगों से खूब घुलते-मिलते हैं, उनके सुख-दुख बांटते हैं। कवि के लिए सुख और दुख, दोनों भावनाएँ एक समान हैं, इसलिए, वो दोनों परिस्थितियों को शांत रहकर सहन कर लेते हैं।
इस तरह, कवि अपने मार्ग पर चलते हुए, लोगों का दुख-सुख बाँटते हैं और उन्हें एक समान ढंग से ग्रहण करके आगे बढ़ जाते हैं।

 

5.हम भिखमंगों की दुनिया में,

स्वच्छंद लुटाकर प्यार चले,

हम एक निसानी – सी उर पर,

ले असफलता का भार चले।


नए शब्द/कठिन शब्द 

भिखमंगों- भिखारियों

स्वच्छंद- आजाद

निसानी- चिन्ह

उर- ह्रदय

असफलता- जो सफल न हो

भार- बोझ

आबाद: बसना

भावार्थ- दीवानों की हस्ती कविता की इन पंक्तियों में कवि कहते हैं कि ये दुनिया बड़ी ही स्वार्थी है। लोग स्वार्थ में इतने अंधे हैं कि बस भिखमंगों की तरह सबसे कुछ ना कुछ माँगते ही रहते हैं। मगर, कवि स्वार्थी नहीं हैं, इसलिए उन्होंने स्वार्थी दुनिया पर बिना किसी शर्त के अपना अनमोल प्यार लुटाया है। लोगों को प्यार बाँटने का खूबसूरत एहसास हमेशा कवि के दिल में रहता है।
उन्होंने जीवन में काफी बार असफलता और हार का स्वाद भी चखा है, लेकिन इसका बोझ उन्होंने कभी किसी दूसरे व्यक्ति पर नहीं डाला। इस तरह कवि ने स्वार्थी दुनिया को भरपूर प्यार दिया और अपनी नाकामयाबी का भार हमेशा स्वयं ही उठाया है।

 

6.अब अपना और पराया क्या?

आबाद रहें रुकने वाले!

हम स्वयं बँधे थे और स्वयं

हम अपने बँधन तोड़ चले।

 

नए शब्द/कठिन शब्द 

आबाद-बसना

स्वयं-खुद 

भावार्थ-  दीवानों की हस्ती कविता की इन अंतिम पंक्तियों में कवि कहते हैं कि अब उनके लिए दुनिया में कोई भी अपना या पराया नहीं है। जो लोग एक मंज़िल पाकर, वहीं ठहर जाना चाहते हैं, उन्हें कवि ने सुखी और आबाद रहने का आशीर्वाद दिया है। मगर, कवि स्वयं एक जगह बंध कर नहीं रहना चाहते हैं, इसलिए उन्होंने अपने सभी सांसारिक बंधन तोड़ दिये हैं और अब वो अपने चुने हुए मार्ग पर आगे बढ़ते जा रहे हैं। वो इसी में ख़ुश और संतुष्ट हैं।

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