CBSE Class 8 Saaransh Lekhan Dhwani
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Dhwani Synopsis
सारांश
प्रस्तुत कविता सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ जी द्वारा रचित है। इस कविता में कवि का जीवन के प्रति आशावादी दृष्टिकोण दिखाया गया है। कवि का यह मानना है कि हमें जीवन के प्रति आशावादी रहना चाहिए अपनी उम्मीद को नहीं छोड़ना चाहिए और पूरी सकरात्मकता के साथ और पूरे जोश और उत्साह के साथ जीवन का आनन्द उठाना चाहिए।
प्रस्तुत कविता में कवि का यह मानना है कि अभी उनका अंत नहीं होगा। अभी-अभी उनके जीवन रूपी वन में वसंत रूपी यौवन आया है। कवि प्रकृति का वर्णन करते हुए कहते हैं कि चारों ओर वृक्ष हरे-भरे हैं, पौधों पर कलियाँ खिली हैं जो अभी तक सो रही हैं। कवि कहते हैं वो सूर्य को लाकर इन अलसाई हुई कलियों को जगाएँगे और एक नया सुन्दर सवेरा लेकर आएँगे। कवि प्रकृति के द्वारा निराश-हताश लोगों के जीवन को खुशियों से भरना चाहते है। कवि बड़ी तत्परता से मानव जीवन को सँवारने के लिए अपनी हर खुशी एवं सुख को दान करने के लिए तैयार हैं। वे चाहते हैं हर मनुष्य का जीवन सुखमय व्यतीत हो। इसलिए वे कहते है कि उनका अंत अभी नहीं होगा जब-तक वे सबके जीवन में खुशियाँ नहीं ला देते।
भावार्थ
- अभी न होगा मेरा अंत
अभी-अभी ही तो आया है
मेरे वन में मृदुल वसंत-
अभी न होगा मेरा अंत।
नए शब्द/कठिन शब्द
अंत- समाप्ति
मृदुल- कोमल
वसंत- फूल खिलने की ऋतु
भावार्थ- कवि प्रकृति के चित्रण के द्वारा युवा पीढ़ी को समझाना और जागृत चाहते है कि वह अपने आलस को छोड़े और नए उत्साह, साहस और जोश के साथ जीवन का आंनद ले। प्रकृति में फूलों की भरमार है और उनकी सुन्दरता और खुशबु चारों तरफ फैली हुई है। अभी इस समय का अन्त नहीं होगा। कवि कहते हैं कि यह वसंत उनके जीवन में अभी-अभी तो आया है अर्थात् जीवन में उत्साह और जोश की भरपूर क्षमता है, अभी कुछ दिन ठहरेगा अभी इसका अन्त नहीं होगा।
इन पक्तियों में कवि छिपे हुए तरीके से कह रहे हैं कि उनका मन जोश और उत्साह से भरा हुआ है। जब तक वे अपने लक्ष्य को पा नहीं लेते तब तक हार नहीं मानेंगे।
- हरे-हरे ये पात,
डालियाँ, कलियाँ, कोमल गात।
मैं ही अपना स्वप्न- मृदुल-कर
फेरूँगा निद्रित कलियों पर
जगा एक प्रत्यूष मनोहर।
नए शब्द/कठिन शब्द
पात- पत्ता
गात- शरीर
स्वप्न- सपना
मृदुल-कर- हाथ
कलियों- थोड़ी खिली कलियाँ
प्रत्यूष- सवेरा
मनोहर- सुन्दर
भावार्थ- इन पंक्तियों में कवि निराला जी ने प्रकृति का बहुत ही सुंदर चित्रण किया है। कवि कहते हैं कि चारों तरफ हरे-भरे पेड़ हैं और पौधों पर खिली कलियाँ मानो अब तक सो रही हैं। मैं सूरज को यहाँ खींच लाऊँगा और इन सोई कलियों को जगाऊँगा।
इन पंक्तियों में कवि ने हारे हुए और निराश लोगों को सोई हुई कलियाँ कहा है। जिस प्रकार सूरज के आ जाने से सभी पेड़-पौधों और कलियों में जान आ जाती है, ठीक उसी प्रकार निराला जी अपने प्रेरणा रूपी सूर्य से निराश लोगों के मन में उत्साह और उल्लास भरना चाहते हैं। इस तरह ध्वनि कविता में कवि सूर्यकांत त्रिपाठी जी जीवन से हार मान चुके लोगों को नया जीवन देना चाहते हैं।
- पुष्प-पुष्प से तंद्रालस
लालसा खींच लूँगा मैं,
अपने नव जीवन का अमृत
सहर्ष सींच दूँगा मैं
द्वार दिखा दूँगा फिर उनको।
हैं मेरे वे जहाँ अनंत-
अभी न होगा मेरा अंत।
नए शब्द/कठिन शब्द
पुष्प-पुष्प- फूल
तंद्रालस- नींद से अलसाया हुआ
लालस-: लालच
नव- नये
अमृत- सुधा
सहर्ष- ख़ुशी के साथ
सींच- सिंचाई
द्वार- दरवाज़ा
अनंत- जिसका कभी अंत न हो
अंत- खत्म
भावार्थ- इन पंक्तियों में कवि वसंत रूपी उम्मीद बनकर, सोये-अलसाए फूलों रूपी उदास लोगों से आलस और उदासी बाहर निकाल लेने की बात कर रहे हैं। वो इन सभी लोगों को नया जीवन देना चाहते हैं। इसीलिए उन्होंने कहा है कि मैं हर पुष्प से आलस व उदासी खींचकर, उसमें नए जीवन का अमृत भर दूँगा।
ध्वनि कविता की इन पंक्तियों में कवि निराला जी कहते हैं कि मैं सोये हुए फूलों यानि निराश लोगों को जीवन जीने की कला सिखा दूँगा। फिर, वो कभी उदास नहीं होंगे और अपना जीवन सुख से व्यतीत कर पाएँगे।
कवि का मानना है कि अगर युवा पीढ़ी परिश्रम करेगी, तो उसे मनचाहा लक्ष्य मिलेगा और इस आनंद का कभी अंत नहीं होगा। इस प्रकार, कवि कहते हैं कि जब तक वो थके-हारे लोगों और युवा पीढ़ी को सही राह नहीं दिखा देंगे, तब तक उनका अंत होना असंभव है।